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निगमों-परिषदों में शुरू हो सकती प्रश्नकाल-शून्यकाल की परंपरा..

निगमों-परिषदों में शुरू हो सकती प्रश्नकाल-शून्यकाल की परंपरा..

निगमों-परिषदों में शुरू हो सकती प्रश्नकाल-शून्यकाल की परंपरा..

ओम बिरला स्पीकर कॉन्फ्रेंस में रखेंगे प्रस्ताव..

देश/ विदेश : लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि देश में संसद की तरह विधानसभाएं, निगम और परिषद स्वायत्त हैं। ऐसे में स्पीकर कांफ्रेंस में एक प्रस्ताव के जरिए नगर निगमों और जिला परिषदों में प्रश्नकाल और शून्यकाल की परंपरा पर सहमति बनाने की कोशिश होगी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए इसकी जड़ों को मजबूत करने की जरूरत है।

नगर निगमों और जिला परिषदों में संसद और विधानसभाओं की तरह प्रश्नकाल और शून्यकाल की परंपरा शुरू हो सकती है। लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला अगले महीने संभावित स्पीकर कॉन्फ्रेंस में इस आशय का प्रस्ताव रखेंगे। उनका मानना है कि निगमों-परिषदों में यह परंपरा शुरू होने के बाद कार्यवाही के दौरान होने वाले हंगामे से निजात मिलने के साथ ही कार्यपालिका जवाबदेह बनेगी।

राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के 8वें सम्मेलन में यहां आए बिरला ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि देश में संसद की तरह विधानसभाएं, निगम और परिषद स्वायत्त हैं। ऐसे में स्पीकर कांफ्रेंस में एक प्रस्ताव के जरिए इस पर सहमति बनाने की कोशिश होगी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए इसकी जड़ों को मजबूत करने की जरूरत है। निगम, पंचायत और परिषद लोकतंत्र की जड़ें हैं, मगर पूरे देश में इन संस्थाओं में कामकाज से अधिक हंगामे की खबरें आती हैं।

शून्यकाल के मुद्दे पर स्पीकर गंभीर..

स्पीकर ने लोकसभा में शून्यकाल के मुद्दों पर भी चर्चा की। उन्होंने स्वीकार किया, इसमें सदस्य कई ऐसे मुद्दे उठाते हैं जो संसद के अनुरूप नहीं होते। बजट सत्र में उन्होंने सदस्यों को इस संबंध में कई बार आगाह किया है। भविष्य में शून्यकाल में संसद की गरिमा के अनुरूप ही मुद्दों को उठाने की इजाजत मिलेगी।

प्रश्नकाल बेहद जरूरी..

स्पीकर ने कहा कि संसद और विधानसभाओं का प्रश्नकाल बेहद अहम हिस्सा है। इससे कार्यपालिका जवाबदेह बनती है। विभिन्न मुद्दों पर देश की स्थिति का पता चलता है। विपक्ष इसके जरिए सरकार के कामकाज के कमी को भी उजागर कर सकता है।

योजना बनाकर कार्यवाही में बाधा स्वीकार नहीं..

संसद और विधानसभाओं में शोर-शराबे के जरिये कार्यवाही को बाधित करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने चिंता जताई है। राष्ट्रमंडल संसदीय संघ सीपीए की बैठक के बाद उन्होंने कहा कि सोच-विचार कर कार्यवाही में बाधा डालने और असहमति दर्ज कराते समय मर्यादा भूलने से संसद और विधानसभाओं की विश्वसनीयता कम होगी। सीपीए के समापन भाषण में बिरला ने राजनीति सहित अन्य क्षेत्रों में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया।

अंतिम दिन दो प्रस्ताव पास..

सम्मेलन के अंतिम दिन दो प्रस्ताव पास किए गए। तय किया गया कि कॉमनवेल्थ देशों की संसद और विधानसभाएं इस दिशा में लगातार प्रयास करेंगी। असम के राज्यपाल जगदीश मुखी ने प्रस्ताव पर प्रसन्नता जताई। बिरला ने कहा कि अलग-अलग चुनावों में मत प्रतिशत में बढ़ोतरी मजबूत लोकतंत्र की निशानी है, लेकिन युवाओं और महिलाओं को सही भागीदारी नहीं मिल रही। इस स्थिति में व्यापक बदलाव की जरूरत है।

 

 

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