उत्तराखंड

पलायन की वजह से खाली हो गए गांव, बसाने के लिए सरकार ने बनाया ये प्लान..

पलायन की वजह से खाली हो गए गांव, बसाने के लिए सरकार ने बनाया ये प्लान..

उत्तराखंड: विकट भौगोलिक संरचना वाले उत्तराखंड में पलायन बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। जब से उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया है, तब से निरंतर पलायन बढ़ता ही जा रहा है. पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं। वहीं 400 से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां 10 से भी कम नागरिक हैं। पहाड़ों के बारे में एक कहावत मशहूर है कि पहाड़ का पानी और जवानी कभी वहां के काम नहीं आती।

रोजगार के मौकों की कमी, शिक्षा की समुचित व्यवस्था का अभाव और खेती में आने वाली मुश्किलों ने हमेशा से यहां के लोगों को अपनी जड़ों को छोडऩे के लिए मजबूर किया है। उत्तराखंड में पलायन अब इस हद तक पहुंच गया है कि यहां के गांव तेजी से वीरान होते जा रहे हैं।विधानसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने माना है कि पहाड़ों में गैर आबाद गांवों की संक्चया 1200 पहुंच गई है। गैर आबाद गांवों का मतलब है ऐसे गांव जहां अब कोई भी नहीं बचा।

 

 

हालांकि सरकार का कहना है कि इन गांवों को फिर बसाने की कोशिशें हो रही हैं। एक रिपोर्ट में राज्य में 1200 गांव और अकेले अल्मोड़ा  में 274 गांव खाली हो चुके हैं. अब जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान इन खाली गांवों के पारम्परिक घरों को पर्यटन की संभावना तलाशने में जुटा है। भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पंत  के खूंट गांव और सुमित्रानंदन पंत के कौशानी गांव में पर्यटकों को लुभाने की योजना बनाई जा रही है, जिससे आने वाले पर्यटन इतिहास को जाने और पारंपरिक घरों में रुकें।

राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन के तहत संस्थान के वैज्ञानिक लोगों की आजीविका बढ़ाने के लिए इस तरह के प्रोजेक्ट चला रहे हैं, जिससे लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिल सके। दरअसल, पहाड़ के गांव मूलभूत सुविधाओं के अभाव में खाली हो रहे हैं। अगर खाली गांवों के पारम्परिक भवनों को पर्यटन के लिए विकसित किये जाय तो लोगों को अपने ही पैतृक गांवों में ही रोजगार मिलेगा। जिससे रोजगार के लिए पहाड़ से पलायन कम होगा और पर्यटकों को कुमाऊंनी संस्कृति देखने को मिलेगी।

 

 

अब पलायन की समस्या का इलाज हो सकेगा..

बता दें कि एक मई को खबर सामने आई थी कि उत्तराखंड में अब पलायन की समस्या का इलाज हो सकेगा। पांच महीने के भीतर पलायन आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमन्त्री को सौंपी है। इस रिपोर्ट में ये बताया गया है कि लगभग एक हजार गांव खाली हो गए हैं। मगर कई गांव ऐसे भी हैं जहां लोग वापस आकर रहने लगे हैं। बताया जा रहा है कि सरकार जल्द ही ये रिपोर्ट सार्वजनिक करने की तैयारी में है। 30 विकास खंडों में पलायन की बात सामने आई है

पहाड़ के घरों में लटकते ताले और गांव में दूर दूर तक फैला सन्नाटा ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह से उत्तराखंड के गांव पलायन की समस्या के कारण पूरी तरह खाली हो गए हैं। राज्य पलायन आयोग ने पांच महीनों के अध्ययन के बाद कई मुद्दों पर रिपोर्ट तैयार कर मुख्यमन्त्री को सौंप दी है। 84 पन्नों की इस रिपोर्ट में प्रदेश की सात हजार ग्राम पंचायतों से आंकड़े जुटाए गए हैं। 6 पर्वतीय जिलों के 30 विकास खंडों में पलायन की बात सामने आई है।

 

 

वापस भी लौटे हैं और स्वरोजगार कर रहे हैं..

सूत्रों की मानें तो रिपोर्ट में लगभग एक हजार ऐसे गांवों का जिक्र किया गया जो खाली हो गए हैं. ऐसे गांवों को पहाड़ में भुतहा गांव की संज्ञा दी गई है। हालांकि राज्य पलायन आयोग के उपाध्यक्ष ने बातचीत में कहा था कि कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जिनसे पता चलता है कि बड़ी संख्या में पहाड़ छोड़कर गए लोग वापस भी लौटे हैं और स्वरोजगार कर रहे हैं।

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