पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव है श्राद्ध, देवप्रयाग में तर्पण करने से मिलता है फल..
श्रीराम ने देवप्रयाग में तप किया और विश्वेश्वर शिवलिंगम की स्थापना की..
उत्तराखंड: श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की आत्मशांति के लिए 16 दिनों तक नियम पूर्वक कार्य करने का विधान है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ होता है। समापन 6 अक्टूबर को होगा। इस पक्ष में अपने पितरों का स्मरण किया जाता है, उनकी आत्म तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं। वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण समेत अन्य शास्त्रों में भी श्राद्ध के महत्व के बारे में बताया गया है।
पितरों की आत्म तृप्ति से व्यक्ति पर पितृ दोष नहीं लगता है। पितृ पक्ष का प्रारंभ 20 सितंबर से हो रहा है और समापन 6 अक्टूबर को होगा। पितृ पक्ष में पूर्णिमा श्राद्ध, महाभरणी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या का विशेष महत्व होता है। श्राद्ध पितृ ऋण चुकाने की प्रक्रिया है। इसके लिए पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव जरूरी है। जिनके मन में पुरखों के प्रति श्रद्धा नहीं होती वे श्राद्ध करने के अधिकारी नहीं होते हैं।
देवप्रयाग में पितृकार्य और पिंडदान का विशेष महत्व भागीरथी और अलकनंदा नदी के संगम स्थल देवप्रयाग को संगम नगरी कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष में देवप्रयाग में पितृकार्य और पिंडदान का विशेष महत्व है। यहां पड़ोसी देश नेपाल समेत देश के विभिन्न प्रदेशों से लोग अपने पितरों का तर्पण करने पहुंचते हैं।
स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख है कि त्रेता युग में ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति के लिए श्रीराम ने देवप्रयाग में तप किया और विश्वेश्वर शिवलिंगम की स्थापना की। इस कारण यहां रघुनाथ मंदिर की स्थापना हुई। यहां श्रीराम के रूप में भगवान विष्णु की पूजा होती है। भगवान राम की इस तपस्थली में आज भी पितृ पक्ष में राजा दशरथ के तर्पण की परंपरा मुख्य पुजारी निभाते चले आ रहे हैं। आनंद रामायण में यह भी उल्लेख है कि भगवान राम ने यहां अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। नेपाली भाषा के धर्मग्रंथ हिमवत्स खंड में लिखा गया है कि देवप्रयाग में पितरों के निमित पिंडदान व तर्पण का सर्वाधिक महत्व है।