उत्तराखंड

अभद्रता की वजह से बदनाम हो रहा शिखरफॉल

अभद्रता की वजह से बदनाम हो रहा शिखरफॉल

उत्तराखंड: देहरादून के राजपुर से शुरू होता है शिखरफॉल जाने का रास्ता। शिखरफॉल वो जगह है, जो देहरादून के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, पर देहरादून जिला प्रशासन ने इस पर ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझी। शिखर फॉल, प्रकृति की सौगात पर इंसानी हमले तथा पर्यटन या पिकनिक के नाम पर हुड़दंग, मौजमस्ती, स्थानीय निवासियों के साथ अभद्रता की वजह से बदनाम हो रहा है। यह सब इसलिए है, क्योंकि व्यवस्था, खासकर अफसरों ने इस अहम स्थान को हर दृष्टि से नजरअंदाज किया है। चाहे पर्यटन को स्थानीय लोगों की आजीविका से जोड़ने की बात हो या फिर सुरक्षा का मुद्दा हो। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री-अफसर, पर्यटन से रोजगार व स्वरोजगार की बात हर मंच पर करते हैं। पर, राजधानी से सटे इलाकों में पर्यटन और रोजगार की तस्वीर कुछ और ही है।

 

राजपुर से करीब चार या पांच किमी की दूरी पर हैं यह प्राकृतिक झरना, जो बेहद खूबसूरत है और हम सबके लिए बहुत विशेष भी। करीब दो किमी. पैदल चलना होगा, वो भी ऊंचाई वाले उबड़खाबड़ संकरे रास्ते पर, जिसके एक तरफ पहाड़ है और दूसरी तरफ बहुत गहराई में बह रही रिस्पना नदी। छोटी बड़ी चट्टानों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ रही है रिस्पना। पर, शहर में, हमने इस खूबसूरत नदी का जेंडर बदल दिया। शहर में इस नदी में इतनी गंदगी फेंकी गई, इतने नाले बहाए गए, यहां तक सीवेज लाइन भी बिछा दी, कि यह नाला बन गई। अगर आप देहरादून शहर में रिस्पना की हालत देखोगे तो आप मना कर दोगे कि शिखरफॉल से होकर बह रही यह सुंदर नदी रिस्पना ही है, जिसे कभी ऋषिपर्णा कहा जाता था। दरअसल, शिखरफॉल ही रिस्पना का उद्गम है।

 

शिखरफॉल क्यों महत्वपूर्ण है..

शिखरफॉल के पानी को टेप करके बड़े पाइपों के जरिये देहरादून में जलापूर्ति की जा रही है। इस पानी का ट्रीटमेंट करके ही आपूर्ति किया जाता है। कुल मिलाकर यहां से देहरादून की बड़ी आबादी तक पानी पहुंचाया जाता है। आप पूरे रास्ते बड़े पाइपों को देख सकते हैं। कुछ जगह तो संकरे रास्ते के बीच से होकर पाइप बिछे हैं। लोग, कभी पाइप के इस तरफ होकर चलते हैं औऱ कभी दूसरी तरफ। रास्तेभर में पाइपों का जाल सा बिछा है। कहा जा सकता है कि दून को पानी पिलाने के लिए सरकारी मशीनरी ने बड़ी प्लानिंग की है।

 

पर, पर्यटन या पिकनिक के नाम पर जश्न मनाने के लिए आ रहे लोग शिखरफॉल के पानी को दूषित कर रहे हैं। वहां तक, क्या नहीं ले जाया जा रहा है, शराब, बीयर, हुक्का, खाने-पीने का सामान, प्लास्टिक की बोतलें, पाउच और भी न जाने क्या – क्या। पर, वहां कोई सुरक्षा नहीं, कोई व्यवस्था नहीं, सबकुछ मनमर्जी का। खाया- पिया और जो भी कुछ बचा, शिखरफॉल की खूबसूरती को बिगाड़ने के लिए छोड़ दिया। शराब की बोतलें और कांच बिखरा मिलेगा। शिखरफॉल से लेकर उस स्थान तक, जहां शहर को जलापूर्ति के लिए पानी टेप किया जा रहा है, वहां तक पिकनिक प्रेमियों की भीड़ दिखेगी।

 

आप शिखरफॉल के पास तक जाते हुए सबसे पहले उस स्थान पर पहुंचते हैं, जहां पानी टेप होकर पाइपों में जा रहा है। इससे आगे शिखरफॉल तक जाने के लिए आपको बड़ी चट्टानों पर चढ़कर जोखिम उठाना पड़ेगा। शिखरफॉल तक बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं, इनमें देहरादून के साथ ही, दिल्ली, हरियाणा, यूपी से मसूरी आने वाले पर्यटक भी शामिल हैं। शनिवार और रविवार को तो यहां बहुत भीड़ रहती है। इतनी ज्यादा संख्या में लोगों की आवाजाही होने के बाद भी मौके पर सुरक्षा के लिहाज से कोई व्यवस्था नहीं होना, वाकई चिंताजनक बात है।

 

कुल मिलाकर, शिखरफॉल तक अव्यवस्था की भेंट चढ़ा तथाकथित पर्यटन, यहां न तो स्वरोजगार पर फोकस करता है और न ही इसे किसी स्थानीय निवासी की आजीविका से जोड़ता है। हालांकि कुछ स्थानीय लोगों ने शिखर फॉल तक आने वाले लोगों के लिए फास्टफूड, खाना, कोल्ड ड्रिंक, पानी की बोतलों से रोजगार जुटाया है, वो भी उस व्यवस्था का हिस्सा नहीं हैं, जिसे विभागीय सहयोग या योजना से लाभान्वित किया गया हो।

 

शिखरफॉल को सभी बुनियादी व्यवस्थाओं के साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए। वहां तक आने जाने में जोखिम को कम करने के उपाय हो, अवैधानिक गतिविधियों पर रोक लगाने की व्यवस्था हो, इस पर्यटन स्थल को स्थानीय लोगों के लिए आजीविका संसाधन के रूप में देखा जाए।

पर्यटकों को स्थानीय खाद्य उत्पाद भोजन के रूप में परोसे जाने की व्यवस्था हो, पर्यटन गतिविधियों की निगरानी के लिए तंत्र स्थापित हो, स्थानीय निवासियों को इस पूरी व्यवस्था में शामिल किया जाए, यहां के पर्यावरण और पारिस्थितिकीय तंत्र के संरक्षण में स्थानीय भागीदारी को महत्व दिया जाए, तो शिखऱफॉल का महत्व पहले से कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।

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