उत्तराखंड

हिमालय के सुदूर इलाकों में भी काम करेगा रेस्क्यू मोबाइल सिस्टम..

हिमालय के सुदूर इलाकों में भी काम करेगा रेस्क्यू मोबाइल सिस्टम..

 

 

 

 

 

 

किसी भी आपदा की स्थिति में जब सारी संचार व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएं, तब ‘रेस्क्यू मोबाइल सिस्टम’ कारगर सिद्ध हो सकता है। से इजाद करने वाली कंपनी का दावा है कि यह सिस्टम हिमालय के सुदूर इलाके में भी काम करेगा।

 

 

 

 

 

 

उत्तराखंड: किसी भी आपदा की स्थिति में जब सारी संचार व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएं, तब ‘रेस्क्यू मोबाइल सिस्टम’ कारगर सिद्ध हो सकता है। से इजाद करने वाली कंपनी का दावा है कि यह सिस्टम हिमालय के सुदूर इलाके में भी काम करेगा। इस तकनीक की सहायता से न केवल आपदा प्रबंधन पर काम करने वाली टीम की सहायता की जाएगी, बल्कि आपदा प्रभावित व्यक्तियों को खोज कर उन्हें समय रहते रेस्क्यू कर अस्पताल या सुरक्षित ठिकाने पर पहुंचाया जा सकेगा।

मसूरी रोड स्थित एक होटल में उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में हरियाणा गुड़गांव की एक कंपनी विहान नेटवर्क लिमिटेड (वीएनएल) की ओर से इस यंत्र का प्रस्तुतीकरण दिया गया है। लगभग 50 लाख रुपये की लागत से तैयार किया गया यह प्रोटेबल सिस्टम 20 मिनट में कहीं भी ले जाकर इंस्टाल किया जा सकता है।

कंपनी के प्रबंधक राहुल दूबे और टेक्निकल मैनेजर फुलविंदर सिंह का कहना हैं कि यह सिस्टम अपनी तरह का एक मोबाइल नेटवर्क तैयार करता है, जो 500 मीटर से 10 किमी के दायरे में काम करता है। आपदाग्रस्त क्षेत्र में इस सिस्टम को इंस्टाल करने के साथ ही यह मौके पर मौजूद आपदा प्रबंधन तंत्र को एक नेटवर्क के जरिए आपस में जोड़ देता है। इस नेटवर्क से सभी लोग आपस में बातचीत करने के साथ ही वीडियो कॉलिंग और एसएमएस के जरिए भी बात कर सकते हैं। जहां यह सिस्टम इंस्टाल किया जाता है, सेटअप पर लगा कैमरा वहां कि 360 डिग्री का लाइव वीडियो भी जिला मुख्यालय के अलावा नेटवर्क से जुड़े मोबाइल पर भेजता है।

ऐसे काम करता है सिस्टम..

उत्तराखंड में वर्ष 2013 में आई केदारनाथ आपदा के दृश्य लोगों के जेहन मेें आज भी ताजा हैं। जलप्रलय ने केदारघाटी को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया था और सारे संपर्क टूट गए थे। ऐसे में यदि ‘रेस्क्यू मोबाइल सिस्टम’ होता तो सबसे पहले सभी रेस्क्यू टीमें एक नेटवर्क के जरिए आपस में जुड़ जातीं। केदारनाथ की लाइव तस्वीरें सेटेलाइट के माध्यम से जिला मुख्यालय पर दिखाई देती। जो लोग मलबे में दब गए थे या आसपास के जंगलों में भटक गए थे, यदि उनके पास मोबाइल होता तो सिग्नल नहीं होने की स्थिति में भी उन्हें ढूंढ़ा जा सकता था।

मलबे में दबे लोगों को ऐसे ढूंढता है सिस्टम..

यदि कोई बिल्डिंग गिर जाए, भूस्खलन में बहुत सारे लोग दब जाएं, तब यह सिस्टम उस एरिया के सभी मोबाइल को डिटेक्ट कर लेता है। इसके बाद सभी मोबाइल में एक मैसेज भेजता है, जिसमें तीन ऑप्शन होते हैं। पहले ऑप्शन में मलबे में दबा व्यक्ति एक नंबर दबाता है, जिसका मतलब होता है मैं ठीक हूं। दो नंबर दबाने का मतलब है मदद चाहिए और यदि कोई रिस्पांस नहीं मिले तो समझो व्यक्ति या तो बेहोश है या मर चुका है।

 

 

 

 

 

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