उत्तराखंड

हाईकोर्ट के फैसले से 20 हजार से अधिक गुरिल्लों को राहत..

हाईकोर्ट के फैसले से 20 हजार से अधिक गुरिल्लों को राहत..

हाईकोर्ट ने दिया नौकरी और सेवानिवृत्ति लाभ देने के आदेश..

 

 

 

 

 

 

 

 

 

प्रदेश में लंबे समय से संघर्षरत गुरिल्लों को नैनीताल हाईकोर्ट ने तीन माह के भीतर नौकरी देने के आदेश दिए हैं। साथ ही गुरिल्लाओं को सेवानिवृत्ति के लाभ और मृत गुरिल्लाओं की पत्नियों को भी सभी लाभ तीन माह के भीतर देने के आदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ ने दिए हैं।

 

 

 

उत्तराखंड: प्रदेश में लंबे समय से संघर्षरत गुरिल्लों को नैनीताल हाईकोर्ट ने तीन माह के भीतर नौकरी देने के आदेश दिए हैं। साथ ही गुरिल्लाओं को सेवानिवृत्ति के लाभ और मृत गुरिल्लाओं की पत्नियों को भी सभी लाभ तीन माह के भीतर देने के आदेश हाईकोर्ट की एकल पीठ ने दिए हैं। न्यायमूर्ति शरद शर्मा की पीठ के इस आदेश से उत्तराखंड के करीब 20 हजार गुरिल्लाओं को लाभ होगा।

इस मामले में टिहरी की अनुसूइया देवी, पिथौरागढ़ के मोहन सिंह और 29 अन्य ने याचिका में कहा था कि गुरिल्ला, आईटीबीपी से सशस्त्र प्रशिक्षण प्राप्त हैं। पूर्व में सरकार ने उनसे मानदेय पर वॉलंटियर के रूप में काम भी लिया। साल 2003 में उनसे काम लेना बंद कर दिया गया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि मणिपुर के गुरिल्लों ने इस संबंध में वहां के हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मणिपुर हाईकोर्ट ने इन गुरिल्लों को नौकरी पर रखने और सेवानिवृत्ति की आयु वालों को पेंशन और सेवानिवृत्ति के लाभ देने के निर्देश दिए थे। इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था। इसके बाद मणिपुर सरकार ने वहां के गुरिल्लों को सेवा में रखा।

तभी से वहां सेवानिवृत्ति की उम्र के गुरिल्लों और दिवंगत हुए गुरिल्लों की विधवाओं को सेवानिवृत्ति के लाभ दिए जा रहे हैं। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की एकलपीठ ने केंद्र सरकार को उत्तराखंड के गुरिल्लों को मणिपुर की भांति सुविधाएं देने के निर्देश दिए।

आपको बता दे कि पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में गुरिल्लों ने 2004 में संगठन बनाकर सेवायोजित करने और पेंशन देने की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया। अल्मोड़ा में गुरिल्ले पिछले करीब 12 साल से अधिक समय से धरना दे रहे हैं। देहरादून से लेकर दिल्ली के जंतर मंतर तक गुरिल्लों ने आंदोलन किया लेकिन किसी भी सरकार ने उनकी मांग पूरी नहीं की। गुरिल्लों का दावा है कि उत्तराखंड में एसएसबी से शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण प्राप्त करीब 20 हजार से अधिक गुरिल्ले हैं।

चीन युद्ध के समय सामने आई कमजोरियों से सबक लेते हुए युद्ध समाप्त होने के बाद 1963 में अस्तित्व में आए सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) का प्राथमिक कार्य रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए सशस्त्र सहायता प्रदान करना था। इसके तहत सीमा क्षेत्र के लोगों में राष्ट्रीय भावना का प्रसार और प्रतिरोध के लिए अपनी क्षमताओं को विकसित करने में उनकी सहायता करना था।

यह बल गांव के लोगों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देता था। इस बेसिक कोर्स से चुने गए युवक-युवतियों को 45 दिन की कठिन गुरिल्ला ट्रेनिंग दी जाती थी। हर बार के प्रशिक्षण में गुरिल्लों को प्रशिक्षण अवधि का एक निश्चित मानदेय दिया जाता था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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