उत्तराखंड

उत्तराखंड के लिए ‘काल’बन सकता है पंचेश्वर बांध..

उत्तराखंड के लिए ‘काल’बन सकता है पंचेश्वर बांध..

उत्तराखंड: चमोली में प्राकृतिक आपदा से हुई भारी तबाही के बाद एक बार फिर विकास की आड़ में प्रकृति से खिलवाड़ को लेकर बहस शुरू होने लगी हैं। यहां बड़े बांधों के निर्माण पर चर्चा होने लगी हैं। टिहरी के विशालकाय बांध के बाद भारत-नेपाल बॉर्डर पर काली नदी में पंचेश्वर बांध भी प्रस्तावित हैं। दुनिया के सबसे ऊंचे पंचेश्वर बांध के बनने से सिंचाईं और ऊर्जा की जरूरतें भले ही पूरी हो जाएं, लेकिन इसकी कीमत पहाड़ों में रहने वालों को और पर्यावरण को जरूर चुकानी पड़ेगी। यह अतिसंवेदनशील जोन फाइव का इलाका है, यहां बांध बनने से भूकम्प के झटकों में इजाफा हो सकता हैं। लेकिन साथ ही 116 वर्ग किलोमीटर की महाझील भी एक साथ कई खतरों का सबब बन सकती हैं।

 

जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में प्रस्तावित पंचेश्वर बांध विश्व का सबसे ऊंचा बांध होगा। 311 मीटर ऊंचा यह बांध दुनिया के उस हिस्से में प्रस्तावित है, जहां की हिमालया श्रृंखला सबसे कम उम्र की हैं। जोन फाइव में इतने बड़े बांधों को भू-गर्भीय और पर्यावरण के नजरिये से विनाशकारी माना जा रहा हैं। जानकारों की मानें तो बांध बनने से हिमालय की तलहटी में 116 वर्ग किलोमीटर एरिया में पानी का भारी दबाव बनेगा। साथ ही इस इलाके में पहले से ही भू-गर्भीय खिंचाव बना हुआ हैं। जिस कारण भारतीय प्लेट यूरेशिया की ओर लगातार खिंच रही हैं। धरती के गर्भ में हो रही इस हलचल में मानवीय हस्तक्षेप जले पर नमक डालने का काम कर सकता हैं।

 

पर्यावरण मामलों के जानकार चारू तिवारी का कहना है कि पंचेश्वर बांध पूरे उत्तराखंड के साथ ही यूपी के पर्यावरण को प्रभावित करेगा। यही नहीं तिवारी का ये भी कहना है कि अतिसंवेदनशील हिमालय में विशालकाय बांध बनाने से ही आपदाओं में हर साल इजाफा हो रहा हैं।

पर्यावरण को प्रभावित करेगी महाझील..

भू-गर्भीय हलचलों को बढ़ाने के साथ ही पंचेश्वर बांध की महाझील पर्यावरण को भी खासा प्रभावित कर सकती हैं। इससे पहले उत्तराखंड में 2013 में आई आपदा के लिए जानकार बड़े बांधों को ही जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि टिहरी से तीन गुना बड़ी पंचेश्वर बांध की झील किस तेजी से पर्यावरण को प्रभावित करेगी। बांधों के प्रभाव का बारीक अध्ययन करने वालों की मानें तो इससे जहां पहाड़ों में भू-स्खलन की घटनाओं में इजाफा होगा, वहीं झील से पैदा होने वाले मॉनसून से बादल फटने की घटनाएं भी कई गुना बढ़ जाएंगी।

 

कांग्रेस से राज्यसभा के सांसद प्रदीप टम्टा का कहना है कि वे शुरू से ही टिहरी और पंचेश्वर जैसे विशाल बांधों का विरोध करते आ रहे हैं। ऐसे में अब सरकारों को भी जाग जाना चाहिए। चमोली में आई त्रासदी पहाड़ों में जरूरत से ज्यादा छेड़छाड़ का ही नतीजा हैं। इसलिए नीति निर्माता ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ ही पर्यावरणीय खतरों के बारे में भी चिंता करते रहें।

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