बन गया मशरूम उत्पादक..
उत्तराखंड : देश भर में युवाओं को स्वरोजगार करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। हालंकि वित्तीय संस्थानों से सहायता और तकनीकी मार्गदर्शन मिलने के बाद भी ज्यादा सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं लेकिन उत्तराखंड के इस युवा हॉकी खिलाड़ी ने खुद के दम पर न केवल स्वरोजगार किया है बल्कि दूसरों को राह भी दिखा रहा है।
कोरोनाकाल में हॉकी एकेडमी बंद होने पर गांव लौटने के बाद इस युवा खिलाड़ी के भीतर स्वरोजगार की ऐसी ललक जगी कि मशरूम का उत्पादन शुरू कर दिया। पहले ही प्रयास में उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली तो अब उन्होंने हॉकी छोड़ने का मन बना लिया। अब वह गांव में ही रहकर मशरूम उत्पादन करना चाहते हैं। उनकी कोशिश है कि गांव के अन्य युवा भी उनके साथ जुड़कर अपने पैरों पर खड़े हों।
मसूरी से तकरीबन 30 किमी दूर जौनपुर विकासखंड में थत्यूड़ के पास स्थित बंगसील गांव के रहने वाले सुमित साधारण कृषक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। परिवार में सबसे छोटे सुमित हॉकी के बेहतरीन खिलाड़ी हैं। वह सब जूनियर और जूनियर वर्ग की कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। सुमित ने प्राइमरी से कक्षा दस तक की शिक्षा सेंट लॉरेंस हाई स्कूल से और इंटरमीडिएट की परीक्षा राजकीय घनानंद इंटर कॉलेज से उत्तीर्ण की। सेंट लॉरेंस में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। उनके खेल से प्रभावित होकर स्कूल के व्यायाम शिक्षक सैम्युअल चंद्र ने उन पर विशेष ध्यान दिया तो दिन-ब-दिन उनका खेल बेहतर होता गया और इसी प्रतिभा के बूते उन्हें प्रदेश की अंडर-14 टीम में खेलने का मौका मिला।
इसके बाद वह प्रदेश के लिए अंडर-17 और अंडर-19 भी खेले। हॉकी के लिए छोड़ दी थी पढ़ाई सुमित का स्वरोजगार के लिए हॉकी छोड़ने का फैसला किसी अचरज से कम नहीं है। हॉकी प्रेम के चलते सुमित ने स्नातक की पढ़ाई छोड़ दी थी। स्नातक के लिए सुमित ने मसूरी के एमपीजी कॉलेज में दाखिला लिया था। लेकिन, पढ़ाई के चलते खेल के लिए ज्यादा समय न मिल पाने के कारण उन्होंने बीए द्वितीय वर्ष उत्तीर्ण करने के बाद पढाई छोड़ दी। इसके बाद वह देहरादून आ गए और यहां उत्तराखंड देवभूमि हॉकी अकादमी में प्रशिक्षण लेने लगे।
कोरोनाकाल से पहले उत्तराखंड की टीम से खेलने के सुमित लिए महाराष्ट्र गए थे। वहां से लौटने के कुछ दिन बाद प्रदेश में लॉकडाउन लागू हो गया तो हॉकी एकेडमी भी बंद हो गई, जहां वह प्रशिक्षण ले रहे थे। ऐसे में वह भी अपने गांव बंगसील लौट आए। दो महीने घर में रहने के बाद अचानक एक दिन उन्होंने इंटरनेट पर मशरूम उत्पादन के बारे में पढ़ा।
हालांकि, खेल आदि बंद था, ऐसे में उन्होंने सोचा क्यों न खाली समय का सदुपयोग करने के लिए मशरूम उगाई। घर में एक कमरा भी खाली पड़ा था। इसके बाद सुमित ने इंटरनेट की मदद से मशरूम उत्पादन के बारे में पूरी जानकारी जुटाई और लग गए अपने मिशन में। मेहनत रंग लाई और कुछ ही दिनों में फसल तैयार हो गई।
सुमित का कहना है कि मशरूम उत्पादन का प्रयोग सफल होने के बाद अब वह इसकी गुणवत्ता पर ध्यान दे रहे हैं। फिलहाल वह अपनी मशरूम गांव और ब्लॉक मुख्यालय थत्यूड़ में ही बेच रहे हैं। सुमित का कहना है कि सरकार की स्वरोजगार योजनाओं का लाभ लेने के लिए कागजी प्रक्रिया इतनी ज्यादा है कि अधिकांश लोग इसका लाभ नहीं ले पाते। सरकार को इसका सरलीकरण करना चाहिए।