उत्तराखंड

अल्प वेतन भोगी कर्मचारियों के साथ यह कैसा मजाक ?

पीएफ़ और अन्य कटौतियों को लेकर वन विभाग और आउट्सोर्स एजेंसी झाड़ रही है पल्ला

मामूली वेतन पर काम कर रहे कर्मचारियों का भविष्य संकट में
रुद्रप्रयाग। आउटसोर्सिंग के जरिए रुद्रप्रयाग वन प्रभाग में तैनात कर्मचारियों का भविष्य संकट में है। स्थिति यह है कि कर्मचारियों की सैलरी से हो रही कटौती की न तो वन विभाग को जानकारी है और ना ही आउटसोर्सिंग कंपनी को। दोनों एक-दूसरे के पाले में गेंद फेंक रहे रहे है। ऐसे में कर्मचारी खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं।

दरअसल, रुद्रप्रयाग वन प्रभाग में आउटसोर्सिंग के जरिए करीब 25 कर्मचारियों की नियुक्ति डाटा इंट्री ऑपरेटर, वाहन चालक और अन्य पदों पर हुई है। इन कर्मचारियों की सैलरी से ईपीएफ, बीमा, सेवाकर, सेवा शुल्क के रूप में धनराशि निकाली जा रही है। लेकिन यह पैसा कहां जा रहा है, इसका कोई रिकार्ड है भी या नहीं, इसकी जानकारी कर्मचारियों को नहीं है। इसे इस तरह समझा जा सकता है।

वर्ष 2015 में एक डाटा इंट्री ऑपरेटर की सैलरी ऑन रिकार्ड 11,940 रुपए थी। इसमें मूल वेतन 6240, महंगाई भत्ता 1000 और बोनस 242 रुपए मिलता था। जिसका कुल योग 7532 रुपए बैठता है। इसके साथ ही कर्मचारियों की सैलरी से कर्मचारी भविष्य निधि 25.36 प्रतिशत (1910 रुपए), कर्मचारी बीमा निगम 6.50 प्रतिशत (490 रुपए), सेवा शुल्क 7 प्रतिशत (695 रुपए), सेवाकर के नाम पर 12.36 प्रतिशत (1313 रुपए) कुल 4408 रुपए की धनराशि काटी जा रही है। इस तरह कर्मचारियों को हाथ में सिर्फ 7532 रुपए ही मिलते हैं। बाकी के पैसे की जानकारी किसी को नहीं है।

कर्मचारी इस बात की दुविधा में हैं कि सैलरी से कटौती तो की जा रही है, लेकिन भविष्य निधि के नाम पर काटी जा रही धनराशि ईपीएफ खाते में जमा हो भी रही है या नहीं। इसका रिकार्ड कर्मचारियों के पास नहीं है। जबकि नियमानुसार आउटसोर्स एजेंसी या फिर वन विभाग को कर्मचारियों के रिकार्ड की जानकारी देनी थी। लेकिन वे भी इस तरह के किसी रिकार्ड न होने की बात कहकर सीधे तौर पर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कर्मचारियों की सैलरी से की गई कटौतियों की धनराशि कहां गायब हो गई या फिर इसमें बड़ा खेल खेला जा रहा है ?
यही नहीं कर्मचारियों को समय पर सैलरी भी नहीं मिल रही है। कभी-कभी तो चार-पांच माह तक कर्मचारियों को सैलरी का इंतजार करना पड़ता है। कई वर्षों से अल्प दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी सात हजार या फिर छह हजार रुपए की मामूली सैलरी में किसी तरह गुजारा कर रहे हैं। कर्मचारी सरकार से उम्मीद पाले हुए हैं कि उन्हें संविदा पर नियुक्ति मिलेगी। लेकिन जिस तरह से कर्मचारियों के साथ अन्याय और भेदभाव किया जा रहा है, उससे उनकी उम्मीदों पर तुषारापात होता दिखाई दे रहा है। इतनी लंबी अवधि तक सेवा देने के बावजूद कर्मचारियों को अंधेरे में रखा गया। कर्मचारी इसे अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ मानते हैं। सरकार ने एक नियम जारी किया है कि आउटसोर्सिँग में कार्य कर रहे कर्मचारियों की सेवा को सात साल पूरे होने पर उन्हें संविदा पर नियुक्ति दी जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि जब कर्मचारियों के रिकार्ड ही नहीं है तो उन्हें कैसे संविदा पर नियुक्ति मिलेगी।

कर्मचारियों ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि अगर हम विभाग या फिर आउटसोर्स एजेंसी के खिलाफ बोलते हैं तो हमें बाहर का रास्ता भी दिखाया जा सकता है। इसलिए हम चुप हैं और घुट-घुटकर नौकरी करने को मजबूर हैं। हमारा भविष्य चौपट हो गया है। जितनी सैलरी मिलती है, उससे परिवार का गुजारा करना बेहद मुश्किल है। सैलरी से की जा रही कटौतियों की हमें कोई जानकारी नहीं है। हम इस उम्मीद में काम कर रहे हैं कि भविष्य में संविदा पर नियुक्ति मिलेगी, लेकिन जब हमारे पास सैलरी से संबंधित रिकार्ड ही नहीं है तो संविदा पर नियुक्ति की भी दूर-दूर तक उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

वहीं, जब हमने आउट्सोर्स एजेन्सी से इस सम्बंध में वार्ता की तो उनका कहना था कि कर्मचारी वन विभाग में सेवाएँ दे रहे हैं। इसलिए पीएफ़ और अन्य कटौतियों का रिकॉर्ड भी वन विभाग के पास होना चाहिए। हमने डिमांड के आधार पर विभाग को कर्मचारी उपलब्ध कराए हैं। हमारे पास कर्मचारियों के पीएफ़ और अन्य कटौतियों के सम्बंध में कोई रिकॉर्ड नहीं है। वहीं वन विभाग के अधिकारी भी पल्ला झाड़ते हुए कहते हैं कि आउट्सोर्स एजेंसी को विभाग से कर्मचारियों की सैलरी भेजी जाती है। सैलरी से कटौतियों का रिकॉर्ड एजेंसी के पास है।

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