उत्तराखंड

हिमालय में बसा ऐसा गांव जहां नहीं चलता भारत का संविधान…

हिमालय की गोद में कहां होती है अकबर की पूजा…?

जिसको कहा जाता है “हिमालय का एथेंस”…!

से सटे राज्य देवभूमि हिमाचल प्रदेश की | इस बात पर जल्दी यकीन कर पाना भले ही मुश्किल है, लेकिन यही असल में हकीकत है |

हिमालयी श्रृंखला और पर्वतीय आंचल हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में बसा एक खुबसूरत गांव “मलाणा” | जहां के लोग भारत के संविधान को न मानकर अपनी हजारों साल पुरानी परंपरा को मानते हैं | कहा जाता है कि दुनिया को सबसे पहले लोकतंत्र की सीख यही से मिली थी |

कहते है दुनिया की कई सभ्यताओं से भी पुराना “मलाणा” गांव का इतिहास रहा है | बहुत समय पहले यहां ‘जमलू’ ऋषि नामक तपस्वी रहा करते थे | जिन्होंने यहां नियम कानून बनाये थे | बाद में इन नियमों को संसदीय कार्य प्रणाली के अनुरूप बदल दिया गया था |

 “मलाणा” गांव से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य और शासन व्यवस्था की संरचना…

हिमाचल के उत्तरी भौगोलिक निर्देशांक, अक्षांश और देशांतर — 32.0617196, 77.2613488 पर स्तिथ कुल्लू जिले का दर्शनीय गांव मलाणा में रहने वाले निवासी आर्यों के वंशज माने जाते हैं | कहते हैं कि जब भारत पर मुगल सामराज्य स्थापित हो चूका था तब एक बार मुग़ल-शासक अकबर यहां अपनी बीमारी का इलाज करवाने हेतु आया  था | जब अकबर बिल्कुल स्वास्थ्य हो गया तो बख्शीश के रूप में उसने यहां के निवासियों को कर मुक्त कर दिया | वैसे भी मलाणा गांव के लोग बहुत निर्धन थे, क्योंकि यहां कृषि व्यवस्था उस अनुरूप नहीं थी कि कर भी चुकाया जा सके और अपने आय-व्यय के साथ साथ अपना और परिवार का पालन पोषण पूर्ण रूप से हो सके |

मालणा गांव के यदि शासन व्यवस्था की बात करें तो इस गांव की कार्य व्यवस्था इसी अनुरूप है जैसे किसी लोकतान्त्रिक देश की होती है | यहां गांव के अपने खुद के दो सदन हैं जिसमें एक छोटा सदन और एक बड़ा सदन | बड़े सदन सदस्यों की संख्या 11 होती है तो वहीं छोटे सदन में सदस्यों की संख्या 8 सदस्य होती है | दोनों  सदनों में गांव के निवासी ही चुने जाते हैं | इनके अलावा भी तीन अन्य कारदार, गुरु और पुजारी स्थायी सदस्य होते है | इन दोनों सदनों की अनोखी बात यह है कि गांव के प्रत्येक सयुंक्त परिवार में से एक सदन का सदस्य जरूर होता है |ज्यादातर परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति ही प्रतिनिधित्व करता है | वहीं, ऊपरी सदन में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो ऊपरी सदन का गठन दुबारा किया जाता है | वैसे यहां मात्र सदन ही नहीं बल्कि मलाणा गांव का अपना प्रशासन व्यवस्था भी है | कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं | यहां गांव में दरोगा भी होते हैं, जिसमें राज्य सरकार ना के बराबर हस्तक्षेप करती है | यहां लोकसभा और राज्य सभा की तरह यहां के सदन में सुनवाई भी होती है | सदन में हर तरह के मामलों को देखा और निपटाया जाता है | यहां फैसले देवनीति से तय होते हैं | संसद भवन के रूप में ऐतिहासिक चौपाल लगाई जाती है | जहां ऊपरी सदन के सदस्य ऊपर और निचली सदन के सदस्य नीचे बैठते हैं |

यूं तो हर तरह के मामलों फैसलों का यहीं पर निपटारा हो जाता है, लेकिन अगर कोई जटिल मामला फंस जाए जिसको समझ पाना मुश्किल हो रहा हो,  तो ऐसे में ये मामला सबसे अंतिम पड़ाव पर भेज दिया जाता है अर्थात  अब इस फैसले को जमलू देवता (ऋषि) के सुपुर्द कर दिया जाता है | उसके बाद जमलू देवता ही फैसला सुनाते हैं |

जमलू देवता का अजीब-ओ-गरीब फैसला…

ये गांव वाले जमलू ऋषि को अपना ईष्ट मानते हैं | इन्ही का फैसला सच्चा और अंतिम माना जाता है | जमलू देवता है फैसला भी अजीब-ओ-गरीब तरह का होता है |कहते हैं कि जिन दो पक्षों का मामला होता है उन लोगों से दो बकरे मंगाए जाते हैं | उसके बाद दोनों बकरों की टांग में चीरा लगाकर बराबर मात्रा में खून में मिलने वाला जहर भर दिया जाता है | उसके बाद बकरों के मरने का इंतजार किया जाता है, और जिस पक्ष का बकरा पहले मर जाता है, वही पक्ष दोषी करार कर दिया जाता है |

इसके बाद अंतिम फैसले पर कोई सवाल भी नहीं खड़े कर सकता है, क्योंकि इनका मानना है कि यह फैसला स्वयं जमलू देवता का है |

कहते हैं कि इस गांव की राजनीतिक व्यवस्था कुछ हद तक प्राचीन ग्रीस की व्यवस्था से मेल खाती है | इस गांव को “हिमालय का एथेंस“ भी कहा जाता है |

यहां होती है ‘फागली महोत्सव’ में अकबर की पूजा…

जमलू देवता के साथ साथ यहां अकबर की भी पूजा होती है | मलाणा में अकबर से जुड़ी एक रोचक कहानी भी है. मलाणावासी अकबर को पूजते हैं | यहां साल में एक बार होने वाले ‘फागली’ उत्सव में ये लोग अकबर की पूजा करते हैं | पौराणिक मान्यता के आधार पर बादशाह अकबर ने ऋषि जमलू की परीक्षा लेनी चाही थी, जिसके बाद ऋषि जमलू ने ताप करके दिल्ली में बर्फबारी करवा दी थी | एक दिलचस्प मान्यता यह भी है कि यहां के लोग खुद को सिकंदर का वंशज बताते हैं | इतिहास से जुड़े इनके पास कोई सबूत तो नहीं हैं, परन्तु इनके अनुसार जब सिकंदर भारत पर आक्रमण करने आया था, उस दौरान कुछ सैनिकों ने सिकंदर की सेना से अलग हो थे |वही सैनिक हिमालयी क्षेत्र के इस वीरान जगह आ बसे और इनके द्वारा ही मलाणा गांव बसाया गया, वैसे आम तौर पर देखा आये तो यहां के लोगों का हाव-भाव और नैन-नक्श भी पहाड़ी या भारतीयों जैसे नहीं हैं | बोली से लेकर बनावट तक ये लोग पहाड़ी समुदाय से थोडा अलग ही नजर आते हैं | आम तौर पर मलाणा की स्थानीय भाषा में कुछ ग्रीक शब्दों का भी इस्तेमाल होता है |

मद-उन्माद और नशे का सबसे बड़ा गढ़…

वैसे तो पर्वतीय आंचल में नशे का व्यापार खूब फलता-फूलता दिखाई दे रहा है, लेकिन यह गांव कई वर्षो से नशे का व्यापार में अग्रिम है | कहते हैं कि मलाणा गांव की चरस पूरी दुनिया में मशहूर है, जिसे मलाणा क्रीम कहा जाता है | यहां पैदा होने वाली चरस में उच्च गुणवत्ता का रोग़न होता है | जिसकी वजह से यह राज्य सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ है | प्रशासन को नशे के व्यापार पर रोक लगाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है | नशामुक्ति ले लिए कई अभियान चलाए जाते रहे हैं, लेकिन फिर भी यहां से भारी मात्रा में चरस और अफीम की तस्करी होती है | यहां की मलाणा क्रीम गुप्त तरीके से देश-विदेश भी भेजी जाती थी | जिस पर अब सरकार के पैनी नजर है | इस नशे के शिकार बड़े ही नहीं बल्कि कम उम्र के बच्चे ज्यादा होते हैं | जो कि राज्य और देश के लिए बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है |

यदि नशे को छोड़ दिया जाए तो हिमाचल के पहाड़ों में बसे इस गांव ने कई रहस्य के जाल इतिहास की गर्त में छुपा रखे हैं जिन पर शोध किया जा सकता है और किया भी जा रहा है | अभी भी ऐसे बहुत से पौराणिक रहस्य इसकी गर्भ में छुपे होने की आशंका है | जो इस गांव के इतिहास का साक्षी बन सके |

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