उत्तराखंड

जोशीमठ में जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण शुरू..

जोशीमठ में जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण शुरू..

जमीन की भीतरी परत खोलेगी जोशीमठ के भू-गर्म में छुपे राज..

 

 

 

 

 

 

जोशीमठ में भूस्खलन पर किए जा रहे सभी शोधों में सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण है। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि जोशीमठ का भूमिगत जल किस दिशा में बहता है।

 

 

 

उत्तराखंड: जोशीमठ में भूस्खलन पर किए जा रहे सभी शोधों में सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण है। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि जोशीमठ का भूमिगत जल किस दिशा में बहता है। यह किस प्रकार का दबाव उत्पन्न कर रहा है और कहां फूटकर जमीन से बाहर निकलने की संभावना है।

जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वेक्षण का काम जोशीमठ में वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, आईआईटी रुड़की, राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) हैदराबाद के वैज्ञानिकों की टीम की ओर से किया जाएगा। जियोफिजिकल जांच से जमीन में मौजूद पानी में सिल्ट और क्ले स्थिति का भी पता चलेगा।

इस संबंध में भूवैज्ञानिक डॉ. एके बियानी का कहना हैं कि जैसा कि पूर्व में हुए वैज्ञनिक शोधों में स्पष्ट हो गया है कि जोशीमठ ग्लेशियर मड के ऊपर बसा है। यह स्पष्ट है कि स्थान के आधार पर इस मिट्टी की मोटाई अलग-अलग होगी। यदि यह गतिमान है तो इसकी गति की दिशा क्या है? एनजीआरआई हैदराबाद इस विषय की विशेषज्ञता है।

आपको बता दे कि बीते दिनों इसरों ने भी इस संबंध में सेटेलाइट इमेजरी के माध्यम से बताया था कि जोशीमठ में जमीन 27 दिसंबर से आठ जनवरी के बीच 12 दिनों में 5.4 सेंटीमीटर धंसी है, लेकिन इस रिपोर्ट में धंसने की दिशा का उल्लेख नहीं किया गया था। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि जोशीमठ में भू-धंसाव क्षैतिज है या सामांतर।

वहीं, जियोटेक्निकल सर्वेक्षण में मिट्टी और चट्टानों का अलग-अलग परीक्षण होता है। लैब में परीक्षण से प्राप्त नतीजों के अधार पर भू वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि परीक्षण स्थल की भार वहन क्षमता कितनी है। इस प्रकार के सर्वेक्षण जियोलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाडिया भू वैज्ञनिक संस्थान, आईआईटी रुड़की, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की और डीबीएस पीजी कॉलेज देहरादून की ओर से किए जाते हैं।

क्या होता है जियोफिजिकल सर्वे..

भौतिक विज्ञान के सिद्धांत इस सर्वेक्षण के आधार के रूप में कार्य करते हैं। इसमें जमीन के भीतर की स्थिति का आंकलन किया जाता है। जैसे कि वह किस प्रकार की चट्टान या मिट्टी से बना है। कहां पर इसमें गुफाएं, छिद्र या दरारें हैं। इसके अलावा कोई तालाब या पानी कहाँ पर और कितना गहरा है? पानी किस दिशा में बहता है? गहराई बढ़ने पर चट्टानों और मिट्टी में किस प्रकार की भिन्नता दिखाई देती है। भू-विज्ञान की यह शाखा आजकल बहुत उन्नत हो चुकी है। यह ज्यादातर प्राकृतिक गैस और तेल का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार के सर्वे में विषय वस्तु विशेषज्ञ घनत्व, चुंबकीय गुणों, विद्युत प्रतिरोधकता और नम्यता (इलास्टिसिटी) जैसे गुणों के आधार पर करते हैं।

क्या होता है जियोटेक्निकल सर्वेक्षण..

धरती की सतह और कम गहराई में पाई जानी वाली मिट्टी और चट्टानों की जांच जियोटेक्निकल सर्वे में की जाएगी। इसमें विभिन्न तथ्यों जैसे उनका वास्तविक और आभासी घनत्व क्या है, इतने प्रतिशत रंध्रता (पोरोसिटी) है। रंध्रों में कितने एक-दूसरे से जुड़े हैं, जिसके कारण पानी धरती के भीतर प्रवाह करता है। चट्टानों और मिट्टी की भार वहन क्षमता क्या है, किस दबाव के कारण उनमें फ्रैक्चर होने लगता है और जब वे टूटते हैं तो क्या होता है? यदि मिट्टी और चट्टान पहले से ही कमजोर हैं तो उन्हें कैसे मजबूत बनाया जा सकता है? यदि मिट्टी और चट्टानों का दबाव बढ़ जाता है, तो इस अवस्था में अल्प और दीर्घकाल में किस तरह के परिवर्तन होंगे। भूकंप के प्रभावों को झेलने की क्षमता कितनी है। जैसे परीक्षण इस तकनीक में किए जाते हैं।

 

जोशीमठ की वर्तमान स्थिती को देखते हुए पूरे क्षेत्र का बहु-विविधता (मल्टी डिसीप्लीनरी) सर्वेक्षण आवश्यक है। इसमे भू विज्ञान जिओफिजीकल, हाइड्रोलॉजिकल, जियोडेटिक सर्वेक्षण, सुदर संवेदन का समावेश होना आवश्यक है। इन सर्वेक्षणों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर काफी हद तक जोशीमठ में उपजे संकट का पता लगाने के साथ ही उनके निदान की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।

 

जोशीमठ में भू-धंसाव के साथ ही पूरे क्षेत्र का जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वे किया जाएगा। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और आईआईटी रुड़की के विशेषज्ञों ने जियोफिजिकल सर्वे शुरू कर दिया है, जबकि राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) की टीम भी जोशीमठ पहुंच गई है। इसके साथ ही जोशीमठ में भौगोलिक सर्वेक्षण पहले ही शुरू हो चुका है। इस सब कामों में अभी समय लगेगा। क्योंकि मिट्टी के नमूनों को जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा जाएगा। विश्लेषण के बाद ही डेटा तैयार हो पाएगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

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