देश/ विदेश

आज भी गर्व से याद करते हैं लोग ,देश को तिरंगा देने वाला बेटे को..

आज भी गर्व से याद करते हैं लोग ,देश को तिरंगा देने वाला बेटे को..

आज भी गर्व से याद करते हैं लोग ,देश को तिरंगा देने वाला बेटे को..

 

देश –  विदेश :  दो अगस्त को वेंकैया की 146वीं जयंती पर गांव में भव्य आयोजन हुआ। ग्रामीणों ने गांव के चारों ओर 300 फीट का तिरंगा लहराया, जबकि जिला प्रशासन ने ध्वजारोहण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया।

इतिहास की किताबों में आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हरे भरे खेतों के बीच एक छोटे से गांव भाटलापेनुमरु के बारे ज्यादा कुछ नहीं है। हालांकि यह वही जगह थी, जहां देश को तिरंगा देने वाले पिंगली वेंकैया का जन्म हुआ था। कुछ साल पहले ग्रामीणों और कुछ परोपकारी लोगों ने पैसे जमाकर दो मंजिला इमारत बनवाई, जिसका उपयोग ज्यादातर सामुदायिक हॉल के रूप में किया जाता है, यह एकमात्र स्मारक है, जो भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के वास्तुकार पिंगली वेंकैया के नाम पर है।

महात्मा गांधी के साथ वेंकैया की आदमकद प्रतिमा, गांव के केंद्र में आगंतुकों का स्वागत करती है। महात्मा गांधी के करीबी अनुयायी रहे पिंगली वेंकैया के बनाए गए तिरंगे को 1921 में विजयवाड़ा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर मंजूरी दी गई।

वेंकैया के परिवार और अन्य परिजन दशकों पहले गांव छोड़कर अन्य जगहों पर जा चुके हैं। भटलापेनुमरु के साथ उनके संबंध महज स्मृतियों तक सीमित हैं। हालांकि, ग्रामीणों के लिए वेंकैया भले ही कई पीढ़ियों पहले जन्मे, लेकिन वे उनके लिए अब भी गर्व और भक्ति के साथ पूजनीय हैं।

धूमधाम से मनाई पिंगली की 146वीं जयंती..

दो अगस्त को वेंकैया की 146वीं जयंती पर गांव में भव्य आयोजन हुआ। ग्रामीणों ने गांव के चारों ओर 300 फीट का तिरंगा लहराया, जबकि जिला प्रशासन ने ध्वजारोहण और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया। कुछ साल पहले विजयवाड़ा के तत्कालीन सांसद लगदापति राजगोपाल ने पिंगली वेंकैया की याद में और भाटलापेनुमरु को राष्ट्रीय मानचित्र पर एक गौरवपूर्ण स्थान देने के लिए एक तिरंगा दौड़ का आयोजन किया था। गांव को सुर्खियों में लाने का शायद यही एकमात्र प्रयास था, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं हुआ।

 

 

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