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नशामुक्ति केंद्रों के लिए जारी एसओपी पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक..

शामुक्ति केंद्रों के लिए जारी एसओपी पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक..

 

 

 

उत्तराखंड: एसओपी में कहा गया है कि जिला देहरादून में नशामुक्ति केंद्रों के खिलाफ बार बार शिकायत आ रही है। जांच करने पर केंद्रों द्वारा मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। खान-पान और साफ सफाई का भी उचित ध्यान नहीं दिया जाता है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने देहरादून जिले में संचालित 15 नशामुक्ति केंद्रों के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के बाद जिलाधिकारी देहरादून की ओर से जारी एसओपी पर रोक लगाते हुए याचिकाकर्ताओं के प्रत्यावेदन को छह सप्ताह के भीतर निपटाने के निर्देश दिए हैं।

नशामुक्ति केंद्रों के संचालन के लिए जारी एसओपी को दी थी चुनौती
न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।  जागृति फाउंडेशन, संकल्प नशामुक्ति, मैजिक नर्फ, इनलाइटमेन्ट फेलोशिप, जीवन संकल्प सेवा समिति, नवीन किरण, इवॉल्व लीव्स, जन सेवा समिति, ज्योति जन कल्याण सेवा, आपका आश्रम, सेंट लुइस रेहाब सोसायटी, एसजी फाउंडेशन, दून सोबर लिविंग सोयायटी रथ टू सेरिनिटी और डॉक्टर दौलत फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जिलाधिकारी देहरादून के 13 नवंबर 2021 को नशामुक्ति केंद्रों के संचालन के लिए जारी एसओपी को चुनौती दी थी।

 

 

एसओपी में कहा गया है कि जिला देहरादून में नशामुक्ति केंद्रों के खिलाफ बार बार शिकायत आ रही है। जांच करने पर केंद्रों द्वारा मरीजों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है। खान-पान और साफ सफाई का भी उचित ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके फलस्वरूप केंद्र संचालक व मरीजों के साथ टकराव की स्थिति बनी रहती है।

जिलाधिकारी ने 13 नवंबर 2021 को एक एसओपी जारी की, जिसमें जिले के सभी नशामुक्ति केंद्रों का पंजीयन व नवीनीकरण क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट एक्ट व मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के तहत किया जाना जरूरी किया गया। केंद्र के पंजीकरण के लिए 50 हजार व नवीनीकरण के लिए 25 हजार रुपये सालाना शुल्क जमा करना होगा।

पंजीकरण होने के बाद सीएमओ द्वारा एक टीम गठित कर केंद्र की जांच की जाएगी। एसओपी के अनुरूप होने के बाद ही केंद्र को लाइसेंस जारी किया जाएगा। 20 से 25 बेड वाले केंद्र 60 स्क्वायर ्फुट क्षेत्रफल में होने चाहिए। इससे अधिक वालों में सभी सुविधाएं  होनी चाहिए। 20 प्रतिशत बेड जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला प्रशासन व पुलिस द्वारा रेस्क्यू किए गए मरीजों के लिए आरक्षित रखे जाएं।

 

 

प्रति मरीज अधिकतम 10 हजार रुपया माह से अधिक शुल्क नहीं लिया जाएगा। सभी केंद्रों में फिजिशियन, गायनाकॉलोजिस्ट, मनोचिकित्सक, 20 लोगों पर एक काउंसलर, मेडिकल स्टाफ, योगा ट्रेनर व शुरक्षा गार्ड की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए।

जिला अस्पताल में तैनात मनोचिकित्सक द्वारा माह में मरीजों की जांच की जाएगी। माह में अपने केंद्र की ऑडियो वीडियो की रिपोर्ट संबंधित थाने में देनी आवश्यक है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जिलाधिकारी ने उन पर इतने अधिक नियम लगा दिए हैं, जिनका पालन करना मुश्किल है। याचिका में कहा गया कि 50 हजार रुपया पंजीकरण फीस व 25 हजार नवीनीकरण फीस  देना न्यायसंगत नहीं है।

 

सभी केंद्र समाज कल्याण विभाग के अधीन आते हैं। केंद्र दवाई, डॉक्टर, स्टाफ, सुरक्षा व अन्य खर्चे कहां से वसूल करेंगे, जबकि अधिकतम 10 हजार फीस लेनी है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि 22 नवंबर को उन्होंने एसओपी वापस लेने के लिए जिलाधिकारी को प्रत्यावेदन भी दिया लेकिन उस पर कोई सुनवाई नहीं हुई।

 

 

 

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