उत्तराखंड

नवरात्रों के पावन पर्व पर भक्तों का उमड़ रहा सैलाब..

देश और प्रदेश से मां काली के दर्शनों के लिए पहुंच रहे भक्त..

अष्टमी की रात्रिभर होती है मां काली की पूजा..

कालीमठ में मां काली ने किया था रक्तबीज दैत्य का वध..

रुद्रप्रयाग:  सुर सरिता मंदाकिनी नदी के वाम पाश्र्व में सरस्वती के पावन तट पर स्थित सिद्धपीठ कालीमठ जहां एक ओर असीम आस्था और आध्यात्म का केन्द्र है, वहीं कालीमठ घाटी में बिखरे अलौकिक सौंदर्य को देखने के लिए देश-विदेश के पर्यटकों व तीर्थयात्रियों सहित स्थानीय लोग नवरात्रों में यहां आकर पुण्य अर्जित कर रहे हैं। चैत्र नवरात्रों के पावन पर्व पर प्रातः काल से देर सांय तक श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। स्थानीय पुजारियों एवं आचार्यों द्वारा भगवती काली के मंत्रों और आरतियों से मां काली को प्रसन्न किया जा रहा है।

 

शास्त्रों में वर्णित है कि जब असुरराज रक्तबीज द्वारा लगातार देवताओं को प्रताडित किया जा रहा था, तब ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश ने भगवती काली की उपासना कर उनसे रक्तबीज दानव की प्रताड़नाओं से मुक्ति का मार्ग पूछा। मां काली ने स्वयं नवयुवती का सौन्दर्यशाली रूप रखकर रक्तबीज को कालीशिला से उठाकर कालीमठ में पटककर उसे मृत्युदंड दिया और देवताओं को इस राक्षस की प्रताड़नाओं से बचाया। तब से लेकर आज तक सिद्धपीठ कालीमठ तथा शक्तिपीठ कालीशिला में प्रतिवर्ष लाखों की तादाद में श्रद्धालु आकर माता काली के प्रत्यक्ष दर्शन कर आस्था के वशीभूत हो जाते है।

 

पौराणिक कथा के अनुसार कालांतर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश शुक्रादि 88 हजार ऋषि मुनियों ने काली की आराधना की। तत्पश्चात ही दैत्याधिपति रक्तबीज जिसका तीनों लोकों में भयंकर आतंक व्याप्त था उसे मारकर मां भगवती ने तीनों लोकों को भयमुक्त किया। उसके बाद इसी स्थान पर आकर सभी देवताओं ने जगत कल्याण की कामना के लिए भगवती काली की लगातार उपासना की। देवताओं को तीनों लोकों का राज्य प्रदान कर भगवती काली इसी स्थान पर अन्तध्र्यान हुई थी। अन्तध्र्यान होते समय मां काली ने अपने भक्तों से कहा था कि यदि सच्चे मन से मुझे पुकारोगे तो मैं तुम्हे साक्षात दर्शन देकर तुम्हारे कष्टों का निवारण करूंगी।

 

मान्यता है कि जो भक्त कालीशिला तथा कालीमठ में आकर तीन रात्रि जागरण कर नवरात्रों में तन-मन से पूजन, नमन तथा ध्यान करता है उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। इस स्थान में आने के लिए किसी दिन, नक्षत्र तथा मुहूर्त की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यहां आकर भक्त कभी भी भगवती काली के साक्षत दर्शन प्राप्त कर पुण्य अर्जित कर सकता है, लेकिन कई रूपों में विराजमान भगवती काली के विभिन्न रूपों की पूजा करने के लिए नवरात्रों को ही उचित माना गया है। क्यूंकि काली प्रत्यक्ष फलदा, दर्शनात्स्मरणम् अर्थात शरद तथा चैत्र मास के नवरात्रों मे जो भक्त व्रत, पाठ, कुमारी पूजन, हवन, गणेश पूजन बटुकपूजन करता है वह देवी कृपा से सुखी एवं सम्पन्न हो जाता है। इस सिद्धपीठ में तीन युगों से जलती अखण्ड धूनी की भभूत को माथे पर लगाने से जहां कई चर्मरोग दूर होते हैं।

 

वहीं नजरदोष के लिए भी इसे शुद्ध माना गया है। कालीमठ में स्थित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, गौरीशंकर, सिद्धेश्वर महादेव, भैरवनाथ आदि देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं। मंदिर के पुजारियों की माने तो सिद्धपीठ कालीमठ तथा शक्तिपीठ कालीशिला में साक्षात काली अम्बे, अम्बिके, अम्बालिके सहित विभिन्न रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती है। नवरात्रों के अंतिम दिन विशाल अग्निकुण्ड में ब्राह्मणों द्वारा क्षेत्र की खुशहाली तथा विश्वकल्याण की कामना के लिए आहुतियां दी जाती है। पंचगांव कालीमठ, कविल्टा, बेडुला, जग्गी बगवान के हक-हकूकधारियों द्वारा प्रतिदिन काली की पूजा अर्चना की जाती है। कालीमठ मंदिर के पुजारी आचार्य सुरेशानंद गौड़ कहते हैं कि नवरात्रों में कालीमाई की विशेष-पूजा अर्चना की जाती है। इस दौरान जो भी भक्त यहां सच्ची सद्धा भक्ति के साथ मनौती मांगता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।

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