उत्तराखंड

उत्तराखंड की शायरा बानो के संघर्ष की बदौलत हुआ तीन तलाक का खात्मा

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन तलाक पर छह महीने की रोग लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने इस फैसले को असंवैधानिक ठहराते हुए केंद्र सरकार से छह महीने के भीतर इस मुद्दे पर नया कानून बनाने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट से आया यह फैसला भारतीय न्याय इतिहास में मील का पत्थर बन गया है। इस फैसले ने जहां देशभर की लाखों मुस्लिम महिलाओं को बहुत बड़ा अधिकार दे दिया है वहीं तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं के लिए भी न्याय मिलने का रास्ता तैयार हो गया है। इस फैसले के आधार पर अब वे तमाम महिलाएं अपने साथ हुए अन्याय की भरपाई की मांग कर सकती हैं, जिनका जीवन एकतरफा तलाक ने नर्क बना दिया था।
इस पूरे मामले में एक बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि देशभर की मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की रक्षा करने वाले इस फैसले का उत्तराखंड से सीधा संबंध है। दरअसल जिन शायरा बानो नाम की महिला की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर रोक लगाई है, वे उत्तराखंड की निवासी हैं।
शायरा बानो के संघर्ष की कहानी
शायरा बानो उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले के काशीपुर की रहने वाली हैं। साल 2002 में उनका निकाह इलाहाबाद के एक व्यक्ति रिजवान अहमद से हुआ। शायरा के मुताबिक शादी के बाद से ही उनके पति और अन्य ससुराल वाले उन्हें दहेज को लेकर प्रताड़ित करते थे। ससुराल वालों की मार-पीट की वजह से शायरा बीमार हो गई, जिसके बाद उनके पति ने साल 2015 में उन्हें उनके मायके भेज दिया और कुछ समय बाद ही उन्हें तलाक दे दिया।
इस एकतरफा तलाक के खिलाफ शायरा सुप्रीम कोर्ट पहुंची और इस फैसले को चुनौती देते हुए न्याय की अपील कर दी। अपनी अपील में उन्होंने तीन तलाक को अमानवीय और अन्याय का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह महिलाओं के अधिकारों को खत्म करता है। शायरा बानो ने अदालत के सामने यह दलील भी रखी कि तीन तलाक ना ही इस्लाम का हिस्सा है और ना ही आस्था से जुड़ा है। शायरा ने यह तथ्य भी अदालत के सामने रखा कि दूसरे धर्मों में बहुविवाह की कुप्रथा समाप्त हो चुकी है और ऐसा करना दंडनीय अपराध है। शायरा की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
हफ्तेभर तक लगातार चली सुनवाई
तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में इस साल 11 मई से 18 मई तक लगातार आठ दिन तक सुनवाई चली। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर हर पक्षकार को अपना पक्ष रखने की अनुमति दी। इस मुद्दे पर लगभग तीस पक्षों ने अदालत के सामने अपना पक्ष रखा। सभी पक्षों को सुनने के बाद पांच जजों, मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस नरीमन, जस्टिम यूयू ललित, जस्टिस अब्दुधल नजीर और जस्टिस कुरियन जोसफ की संवैधानिक पीठ ने यह फैसला सुनाया। इस फैसले को लेकर मुस्लिम महिलाओं में बेहद खुशी का माहौल है। तमाम राजनीतिक दलों से लेकर सामाजिक संगठनों ने इस फैसले पर खुशी जताई है।

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