उत्तराखंड

चंपावत में दलित भोजनमाता विवाद खत्म..

चंपावत में दलित भोजनमाता विवाद खत्म..

स्कूली बच्चों ने एक साथ बैठकर खाया खाना..

 

 

 

चंपावत जिले के सुखीढांग स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में चल रहा भोजन माता विवाद आखिरकार सुलझता है नजर आ रहा हैं।आपको बता दे कि कल जिला शिक्षा अधिकारी और अन्य अधिकारियों ने स्कूल पहुंचकर विद्यालय के बच्चों के साथ बैठकर भोजन किया।

 

 

उत्तराखंड: जातिगत व्यवहार एक सामाजिक बुराई ही है। इसके कारण संकीर्णना की भावना का प्रसार होता है और सामाजिक , राष्ट्रिय एकता मे बाधा आती है। कहा जाता हैं कि आज की सदी में शिक्षा के प्रसार से यह सामाजिक बुराई दूर होती जा रही है। लेकिन देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में तो कुछ और ही नजर आ रहा हैं। जिस उम्र में छोटे बच्चे बिना किसी भेदभाव के एक साथ पढ़ते-लिखते, खेलते-कूदते और मिलजुल कर रहते हैं।

 

उसी उम्र में चंपावत में सूखीढांग के एक स्कूल में कुछ बच्चों ने जाति के आधार पर बर्ताव करना शुरू कर दिया हैं। आपको बता दे कि कुछ दिन पहले स्कूल में कथित उच्च जातियों के बच्चों ने सिर्फ इसलिए खाना खाने से मना कर दिया कि उसे बनाने वाली महिला अनुसूचित जाति की थी। इसके बाद इस मसले पर हंगामा मचा और दलित ‘भोजन माता’ को हटा कर उच्च कही जाने वाली जाति की महिला को बहाल किया गया। इसकी प्रतिक्रिया में दलित बच्चों ने भी खाना खाने से मना कर दिया और वे अपने घर से टिफ़िन लाने लगे।

 

लेकिन अब चंपावत जिले के सुखीढांग स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में चल रहा भोजन माता विवाद आखिरकार सुलझता है नजर आ रहा हैं।आपको बता दे कि कल जिला शिक्षा अधिकारी और अन्य अधिकारियों ने स्कूल पहुंचकर विद्यालय के बच्चों के साथ बैठकर भोजन किया। इसके साथ ही अधिकारियों ने स्कूली बच्चों को आपसी सौहार्द बनाए रखने को भी कहा हैं।

 

आपको बता दें कि कुमाऊं डीआईजी नीलेश आनंद भरणे ने भोजन माता विवाद में दोनों पक्षों को साथ बैठाकर मामला सुलझाने की बात कहीथी। उसी के तहत कल सोमवार को विद्यालय में अध्ययनरत सभी वर्ग के छात्र छात्राओं के साथ मुख्य शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी और एपीडी ने बैठकर भोजन किया हैं।

 

 

 

स्कूल के सभी बच्चों ने साथ बैठकर खाया खाना..

मुख्य शिक्षा अधिकारी चंपावत आरसी पुरोहित के नेतृत्व में उप खंड शिक्षा अधिकारी अंशुल बिष्ट और एपीडी विम्मी जोशी की 3 सदस्य टीम भोजन माता मामले की जांच को सोमवार को विद्यालय पहुंची। इस दौरान कक्षा 6 से 8 तक उपस्थित 66 में से 61 बच्चों ने एक साथ बैठकर भोजन माता विमला उप्रेती के हाथों से बना भोजन किया। वहीं, 5 बच्चे अनुपस्थित रहे। इस दौरान कुछ अनुसूचित जाति के बच्चे घर से खाना बनाकर लाए थे लेकिन मुख्य शिक्षा अधिकारी व अन्य शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बच्चों को समझा-बुझाकर उन्हें स्कूल में बना भोजन खिलाया।

 

वहीं, बीते गुरुवार और शुक्रवार को एससी वर्ग के बच्चों ने स्कूल में सामान्य वर्ग की भोजन माता के हाथ से बना भोजन नहीं खाया था। क्योंकि, इससे पहले एससी वर्ग की भोजन माता द्वारा भोजन बनाया गया भोजन भी सामान्य वर्ग के बच्चों ने नहीं किया था। ऐसे में जिलाधिकारी चंपावत के निर्देश पर एसडीएम टनकपुर हिमांशु कफल्टिया के नेतृत्व में जिला शिक्षा अधिकारी और सीओ अशोक कुमार सहित अन्य अधिकारियों ने दोनों पक्षों के लोगों को बैठा कर मामले को सुलझा दिया था।

साथ ही दोनों पक्ष के लोग जातिवाद की भावना को त्यागकर विद्यालय विकास एवं बच्चों के हित में कार्य करने पर सहमत हो गए थे। जबकि कल सोमवार को विद्यालय में समरसता का माहौल इसी बैठक का नतीजा था। वहीं, जिला शिक्षा अधिकारी के नेतृत्व बनी कमेटी ने भोजन माता की नियुक्ति में तकनीकी खामियों की नए सिरे से जांच भी शुरू कर दी है।

 

 

 

ये था मामला..

चंपावत के सुखीढांग स्थित राजकीय इंटर कॉलेज में अनुसूचित जाति की महिला सुनीता देवी को विमला उप्रेती जो भोजनमाता हैं, उनकी सहायिका नियुक्त किया गया था। जिसके बाद छात्र-छात्राओं ने सुनीता के हाथ से भोजन करने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जांच कर सहायक भोजनमाता की नियुक्ति को अवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। जिसके बाद यह मामला खूब चर्चाओं में रहा।

इस मामले में फिर एक नया मोड़ तब आया। जब स्कूल ने सुनीता देवी के स्थान पर पुष्पा भट्ट को सहायिका भोजनमाता नियुक्त किया। जिसके बाद दलित छात्रों ने उनके हाथ से बना खाने से मना कर दिया है। हालांकि, पहले सवर्ण वर्ग के छात्रों ने दलित के हाथ से बने खाने को खाने से मना कर दिया था।

 

मामले के तूल पकड़ने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुमाऊं डीआईजी नीलेश आनंद भरणे को मामले की जांच के आदेश दिए। साथ ही इस पूरे मामले पर दुष्प्रचार करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश भी दिए गये।

 

 

 

 

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