उत्तराखंड

त्रिवेंद्र जी, सिद्ध करने को बस यह ‘संकल्प’ ही काफी…

योगेश भट्ट 

सरकारें आती रहेंगी, जाती रहेंगी। न भ्रष्टाचार रुकेगा, न बेगारी खत्म होगी, पहाड से मैदान में उतरने को मास्टर और डाक्टर की बेताबी भी कम नहीं होने वाली। कर्ज के ‘मर्ज’ का भी कोई इलाज नहीं ,कर्मचारियों की ‘भूख’ भी खत्म नहीं होगी। न नौकरशाहों का रवैया बदलने जा रहा है और न राजनेताओं में कुर्सी की ‘हवस’ कम होगी । दिल्ली आज भी ‘हावी’ है और कल भी ‘भारी’ रहेगी ।

मुख्यमंत्री बनेंगे, हटेंगे और समस्यायें भी हमेशा पहाड़ सी खड़ी रहेंगी । यह सिलसिला तो यूं ही चलता रहेगा, इसके बावजूद सरकार या मुख्यमंत्री याद सिर्फ किसी विशेष उपलब्धि के लिये ही किये जाएंगे। संभवत: इसीलिये सरकार और उसके मुख्यमंत्री अक्सर बड़े ‘संकल्प’ लेते हैं, घोषणाएं करते हैं। लेकिन इतिहास वही बनाते हैं जो संकल्प सिद्ध करते हैं। अब बारी त्रिवेन्द्र की है ,अक्सर सरकारों के संकल्प उनकी सियासी मजबूरी होते हैं।लेकिन सरकार इस बार एक ऐसा ‘संकल्प’ कर बैठी है जो सियासी ‘मजबूरी’ तो कतई नहीं है।

यह संकल्प है अस्थायी राजधानी देहरादून में रिस्पना नदी को वापस ‘ऋषिपर्णा’ बनाने का । कहना भले ही आसान हो लेकिन दून की रिस्पना और अल्मोड़ा की कोसी को पुनर्जीवन देने का ‘संकल्प’ कोई मामूली संकल्प नहीं । दून में रिस्पना को पुनर्जीवन का मतलब एक नदी ही पुनर्जीवित नहीं होगी, इससे पुनर्जीवित होगी एक सभ्यता, एक संस्कृति, एक विरासत। पुनर्जीवित होगा एक शहर और स्थापित होंगी नयी परंपराएं, क्योंकि मानव सभ्यताओं और नदियों का पुराना रिश्ता है। सिर्फ रिस्पना ही क्यों रिस्पना के साथ बिंदाल, सुसवा, सौंग, तमसा, टौंस, दुल्हनी, चंद्रभागा आदि को भी तो जीवन मिलेगा। रिस्पना और बिंदाल का महति जिक्र इसलिए क्योंकि आज देहरादून बसता ही नाले में तब्दील हो चुकी इन दो नदियों के बीच है।

आज अतिक्रमण प्रदूषण इन्हें लील चुका है, ये दोनो नदियां तो गंगा की भी गुनहगार हैं। कल्पना कीजिये कि आने वाले समय में रिस्पना ऋषिपर्णा में तब्दील होकर सदानीरा हो जाए, तो नदी का जो शोर आज सिर्फ मकड़ैत और शिखर फाल में ही सुनाई देता है वो काठबंगला, बाडी गार्ड, आर्यनगर, राजीव नगर भगत सिंह कालोनी से लेकर मोथरोवाला तक सुनायी देगा । ये वो इलाके हैं जहां आज रिस्पना एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। रिस्पना के पुनर्जीवित होने पर यहां गंदी बस्तियां नहीं होंगी, दुर्गंध नहीं होगी, उसमें जगह जगह गिरती गंदगी नहीं होगी। तब यहां सुंदर हरे भरे तट होंगे, पक्षियों का कलरव होगा, छोटे चैक डेम होंगे, सुंदर घाट होंगे और भी बहुत कुछ ऐसा होगा जो कल्पना से परे हो। निसंदेह रिस्पना का उद्धार होगा तो बिंदाल को भी जीवन मिलेगा ।

बिंदाल और रिस्पना को पुनर्जीवन का अर्थ है देहरादून को नया जीवन मिलना । रिस्पना के पुनर्जीवन के साथ ही एक बिखरा हुआ अव्यवस्थित सा शहर काफी हद तक व्यवस्थित हो जाएगा, तमाम बड़ी समस्याओं को हल मिलेगा। इतिहास गवाह है रिस्पना और बिंदाल दून की दो जीवन रेखाएं रही हैं, इन्हीं नदियों के कारण कभी देहरादून बसा भी होगा । रिस्पना और बिंदाल जीवित होंगी तो सुसवा नदी के दिन भी बहुरेंगे । सुसवा में साग भी लौटेगा और मछलियां भी। सुसवा आज इस कदर प्रदूषित है कि किसान उसका पानी खेत में नहीं लगाता ।

यह पूरी नदी विषैली हो चुकी है, जिस नदी क्षेत्र में होने वाली घास भी स्वादिष्ट साग हुआ करता थी, वहां होने वाली घास आज पशु भी नहीं खाते । नदी क्षेत्र में रहने वाले लोग गंभीर बिमारियों के शिकार हो रहे हैं । रिस्पना और बिंदाल के संगम से बनी यही सुसवा नदी आगे सौंग में मिलकर गंगा को भी प्रदूषित कर रही है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि रिस्पना का पुनर्जीवन कितना अहम है, त्रिवेंद्र सौभाग्यशाली हैं कि सत्ता संभालते ही उन्हें गायत्री और प्रधानमन्त्री की मन की बात ने एक मकसद दिया। आज उनके पास अवसर है ,पर्याप्त समय भी है और मजबूत जनादेश भी। एकमात्र सवाल संसाधनों का है तो सरकार के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं, बशर्ते इरादा हो मजबूत इच्छा शक्ति हो।

हालांकि जो पहल मुख्यमंत्री ने शुरू की है उसे अंजाम तक पहुंचाना इतना आसान भी नहीं, सच यह है कि एक मुहाने पर संकल्प लेने भर से रिस्पना को पुनर्जीवन नहीं मिलने वाला । संकल्प सिद्ध करने के लिये मुख्यमंत्री को खुद मैदान में डटकर मोर्चा लेना होगा, एकमात्र इस संकल्प को ही सर्वोच्च प्राथमिकता में रखना होगा । आमजन को इसके लिये जागरुक कर विश्वास में लेना होगा तो दूसरी ओर कुछ कड़े फैसले भी लेने होंगे । उन्हें वोट बैंक की सियासत और नफा नुकसान से ऊपर उठने का दम भी दिखाना होगा । रिस्पना की बदहाली के जिम्मेदारों को भी बेनकाब करना होगा, रिवर फ्रंट डवलपमेंट जैसी योजना को रोककर नए सिरे से वृहद योजना तैयार करानी होगी । यह योजना तो जहां नदी क्षेत्र कब्जे से बचा है, वहां भी रिस्पना को नाले में तब्दील कर रही है। मुख्यमंत्री के लिये यह बहुत आसान नहीं बल्कि बेहद चुनौतीपूर्ण है। सच यह है कि रिस्पना की बदहाली तो बीते डेढ दशक में ज्यादा हुई है। इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि राज्य की सर्वोच्च संस्था जहां विधान बनता है, आज वह भी रिस्पना नदी में ही है। राज्य बनने के बाद तो इस पर बेतहाशा कब्जे हुए, उच्च न्यायालय के आदेश तक ताक पर रख दिये गए।

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि रिस्पना को रौंदने वाले उस पर बस्तियां बसाने वाले उसी के दम पर विधान सभा में पहुंच रहे हैं, सरकार का हिस्सा बन रहे हैं। त्रिवेंद्र जी मजबूत इरादों के साथ आगे बढ़िये, डटकर पूरी ताकत के साथ इस संकल्प को सिद्ध कराइये। चार साल से भी अधिक समय है आपके पास, इस संकल्प की सिद्धि के लिये पर्याप्त समय है यह । छोड़ियें और सब चिंताएं एकमात्र यह कामयाबी आपकी हर नाकामी पर भारी पडेंगी। यहां भी नाकाम रहे तो इतिहास माफ भी नहीं करेगा । एकमात्र यही संकल्प आपको कामयाब एक मुख्यमंत्री साबित करने के लिए काफी है, यह संकल्प सिद्ध हुआ तो जब इतिहास लिखा जायेगा निसंदेह आप ही ‘ऋषिपर्णा के भगीरथ’ कहलायेंगे

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