उत्तराखंड

किसी को अधिक तनाव देकर उसकी बेस्ट क्षमता का उपयोग ना करें: सीताराम..

किसी को अधिक तनाव देकर उसकी बेस्ट क्षमता का उपयोग ना करें: सीताराम..

ब्रहमकुमारी विश्वविद्यालय ईश्वरी की ओर से स्ट्रेस फ्री एडमिनिस्ट्रेशन विषय पर कार्यशाला का आयोजन..

पूर्व आईएएस ने किया अपने प्रशासनिक जीवन के अनुभवों को साझा..

 

रुद्रप्रयाग:  पूर्व आईएएस (रिटायर्ड) सीताराम मीणा एवं अपर जिलाधिकारी दीपेंद्र नेगी की संयुक्त अध्यक्षता में जिला सभागार में ब्रहमकुमारी विश्वविद्यालय ईश्वरी की ओर से आयोजित स्ट्रेस फ्री एडमिनिस्ट्रेशन (तनावमुक्त प्रशासन) विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में अपने शुभारंभ संदेश में ब्रहमकुमारी विश्व विद्यालय से संबंधित पूर्व आयुक्त (आईएएस) सीताराम मीणा ने अपने प्रशासनिक जीवन के अनुभवों के साथ ही सार्वजनिक जीवन तथा आध्यात्मिक चीजों से जुड़ने के पश्चात् अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि सरकारी कामकाज के दौरान अधिकारी व कार्मिक किस-किस तरह के तनाव झेलते हैं और वे कौन से तरीके होते हैं, जिनको अपनाने से प्रशासनिक कामकाज करते समय तनावमुक्त व खुशहाल जीवन जिया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि उनका अनुभव कहता है कि कभी भी किसी भी व्यक्ति को अधिक तनाव देकर-परेशान करके उसकी बेस्ट क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सकता तथा जब भी कोई व्यक्ति बेहतर कार्य करता है तो उतनी तारीफ जितने के वह काबिल हो, की जाय तो उसका बेहतर आउटकम निकाल सकता है।

उन्होंने कहा कि तनाव से बचने के लिए एक बेहतर तरीका यह भी है कि जो चीजें हमारे क्षेत्राधिकार में हैं हम उसमें ही बदलाव की कोशिश करें तथा जो हमारे क्षेत्राधिकार से बाहर की चीजें हैं, उसमें केवल सिफारिश के अतिरिक्त कुछ न करें। बल्कि उसको उसी रूप में स्वीकार किया जाय।

क्योंकि हम नियम बनाने के पार्ट नहीं, बल्कि निर्णयों को लागू करने (एग्जीक्यूटिव) के पार्ट हैं। जो निर्णय हो चुके हैं, हम उनको अपनी बेहतर क्षमता से अधिकतम लोगों को उसका लाभ देने का प्रयास करें। स्ट्रेस मुक्ति का उन्होंने उपाय बताते हुए कहा कि हम अपने को जब तक केवल शरीर समझते रहेंगे, तब तक हमारे पास जो भी ऊर्जा है।

वह भी कम होती जाती है, बल्कि हमें अपने आपको आत्मा समझना चाहिए और उसका कनेक्शन सर्वशक्तिमान परमात्मा से करना होगा। चूंकि आत्मा शक्तिशाली है, ज्ञानवान है, ऊर्जावान है, इसलिए आत्मा के अनुसरण से हममें ऊर्जा का लगातार संचार बना रहेगा तथा हम ऊर्जावान बने रहेंगे-तनाव मुक्त रहेंगे। उन्होंने कहा कि कितनी अजीब बात है कि हम अपने गैजेटस (मोबाइल की बैटरी) को रोजना चार्ज करते हैं,

मगर अपनी आत्मा को चार्ज नहीं करते। आत्मा को चार्ज करने का मतलब है कि हम 24 घंटे में कम से कम 1 घंटा अपने लिए दें। उस एक घंटे में हम अपने आपको अकेला करके अपने आपसे बातें करें, अपने अन्दर झांके कि हम इस दुनियां में क्यों हैं, हम क्या चाहते हैं, हम क्या कर रहे हैं, हमें क्या करना चाहिए? इसी को मेडिटेशन (ध्यान) कहते हैं। इससे हम अपने को नियंत्रित कर पायेंगे, हमारा मन भटकेगा नहीं, हमारा काम में मन लगेगा और काम करते समय आनंद आयेगा। इस दौरान ब्रह्मकुमारी विश्व विद्यालय के महरचंद ने कहा कि आज दुनिया की 70 प्रतिशत बीमारियां तनाव के चलते हो रही हैं। दुनिया का कोई भी जीव चिन्ता नहीं करता, जबकि मनुष्य सबसे ज्यादा सक्षम-बुद्धिजीवी होने के बाद भी चिंता-तनाव से मरा जा रहा है।

उन्होंने कहा कि चिन्ता और तनाव का ये कारण मनुष्य का अपने को समय ना देना बताया। मनुष्य यदि अपने अंदर झांके तो वह तनाव का मैनेजमेंट कर सकता है क्योंकि ईश्वर ने आत्मा को सारी शक्ति दी हैं, जरूरत है बस उसको जगाने की और वह जागेगी मेडिटेशन से, योग-ध्यान से।

ब्रह्यकुमारी विश्वविद्यालय के हरीश कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि समस्या हर एक के जीवन में है, लेकिन हम उसको किस तरह देखते हैं। यदि नजरिया तय करता है कि हम तनाव में रहेंगे या तनावमुक्त। उन्होंने कहा कि हम इस जीवन में अपने-अपने रोल (अभिनय) करने आये हैं और हमें अपने अभिनय को उसी तक सीमित रखना चाहिए, जो हमें दायित्व मिला है। यदि उस अभिनय को हम अपने से चिपका लेंगे या हम पद के मद में चूर हो जाएंगे तो खुद भी तनाव में रहेेंगे और दूसरों को भी तनाव देंगे।

उन्होंने पुलिस अधिकारी का उदाहरण देते समझाया कि पुलिस को अभिनय अपराध पर लगाम रखने के लिए मिला है, लेकिन वही अभिनय पुलिस अधिकारी यदि परिवार में भी करने लगेगा तो व अपने साथ-साथ अपने परिवार को भी तनाव में डालेगा। उन्होंने कहा कि सब ऊर्जा का खेल है, जो ऊर्जावान है दुनिया उसकी सुनती है उसके आगे नतमस्तक होती है और ऊर्जा बाहर से नहीं अपने अंदर देखने से मिलती है।

आज हमारी ऊर्जा इसलिए बुझती जा रही है कि हम अपने मोबाइल की बैटरी तो चार्ज करना नहीं भूलते, लेकिन अपने शरीर की देखभाल (मानसिक-शारीरिक स्वास्थ्य) करना भूल जाते हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए उसे बौद्विक खुराक, शारीरिक श्रम, पौष्टिक भोजन के साथ-साथ आध्यात्मिक चिन्तन की भी जरूरत होती है। इस दौरान अपर जिलाधिकारी ने कहा कि प्रयास करने वाले (देने वाले) और ग्रहण करने वाले के बीच यदि तालमेल होगा। एक सुर होगा तो स्ट्रेस नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी को एक बस कन्डक्टर (परिचालक) की भांति व्यवहार करना चाहिए। जिस प्रकार परिचालक का बस में यात्रा करने वालों से कोई संबंध नहीं होता फिर भी यात्रियों से सही पैसे लेता है, सही पैसे देता हैै और जो पैसे प्राप्त करता है उसका भी वह अपने को स्वामी नहीं मानता बल्कि उसकी सुरक्षा करके उसे राजकोष में जमा करता है और यात्रियों को सुरक्षित और सहजता से उनके गंतव्य तक पहुंचाता है, ठिक उसी तरह एक अधिकारी को भी सरकार व शासन द्वारा जो नियम निर्धारित किये गये हैं उसका खुशी-खुशी अनुपालन करते हुए पादर्शिता व निष्ठा से अधिकमत लोगों के कल्याण की भावना से काम करना चाहिए।

उन्होंने कहा कि नजरिये का भी बहुत फर्ख पड़ता है। हमारा नजरिया दूसरों के साथ सदभाव, विनम्र, हंसमुख होना चाहिए। उन्होंने इसको उदाहरण द्वारा समझाया कि जैसे सौ लोगों की पंक्ति में यदि सबसे आगे वाला ब्यक्ति सेवा प्रदाता से भला-बुरा कहेगा तो वह सेवा प्रदाता पंक्ति के शेष सभी 99 लोगों के साथ उसी तहष में पेश आयेगा। जबकि यदि पहला व्यक्ति उसके साथ हंसमुख और विनम्रता से पेश आएगा तो सेवा प्रदाता व्यक्ति बाकि 99 लोगों के साथ भी हंसमुख और विनम्रता से ही पेश आयेगा।

जीवन में ऐसे बहुत से अनुकरणीय उदाहरण मिल जाऐंगे जिनको अपनाने से तनावमुक्त रहते हुए एक प्रशासक बेहतर ऊर्जा से और क्षमता से अच्छे परिणाम दे सकता है। कार्यशाला में में ब्रह्यकुमारी विश्व विद्यालय की बहन कुमारी सुमन ने प्रैक्टिकली तरिके से सभागार में उपस्थित सभी अधिकारियों और कार्मिकों से मेडिटेशन-ध्यान का अभ्यास करवाया तथा उपस्थित लोगों की जिज्ञासा का जवाब दिया।

कार्यशाला के समापन संबोधन में अपर जिलाधिकारी ने कहा कि तनाव से बचने के लिए हमें अपना नजरिया बदलना होगा। इस अवसर पर परियोजना निदेशक रमेश चन्द्र, जिला विकास अधिकारी मनविंदर कौर, क्च्त्व् आर एस असवाल, कृषि अधिकारी दीपक पुरोहित, उद्यान अधिकारी योगेंद्र चैधरी, जिला सेवायोजन अधिकारी कपिल पाण्डे, राजयोग शिक्षिका नीलम, नीतीश, जगमोहन, ज्योति सहित अन्य अधिकारी व कार्मिक उपस्थित थे।

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