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बशीर बद्र की शायरी संसद में गूंजी, मोदी और खड़गे ने पढ़े उनके शेर

काव्य एक ऐसी विधा है जिसमें भावों को शब्दों के माध्यम से लयबद्ध किया जाता है। इस लय से विभिन्न अवसरों पर सामंजस्य बैठाया जा सकता है। संसद में तर्क-वितर्क का दौर चलता रहता है इसलिए यहां भी अक्सर अपनी बात पर ज़ोर देने के लिए शेर ओ शायरी की मदद ले ली जाती है। इसी क्रम में ताजा उदाहरण है नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का, जिन्होंने बशीर बद्र के शायरी के माध्यम से अपनी बात कही, शेर था

‘दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों’

इस पर आज संसद में जवाबी तंज देते हुए प्रधामंत्री मोदी ने कहा कि काश ! बशीर साहब का जो शेर पढ़ा गया, उस शेर के पहले वाली लाइन को पढ़ लिया गया होता। इसके बाद प्रधानमंत्री ने बशीर साहब के उस शेर को पढ़ा-

‘जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता’

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