चमोली आपदा: एक और भयानक आपदा ला सकता है ग्लेशियर के पास जमा मलबा..
उत्तराखंड: चमोली की ऋषिगंगा नदी में सात फरवरी काे ग्लेशियर टूटने से जो तबाही मची थी, उसी जल प्रलय जैसी आपदा की स्थिति राज्य में फिर से पैदा हो सकती है। पर्यावरणविद् लगातार उत्तराखंड सरकार को इस विषय पर सचेत कर रहे हैं। सरकार को भी इस ओर पुख्ता कदम उठाने की जरूरत है।गंगोत्री ग्लेशियर अन्य ग्लेशियरों के मुकाबले बहुत तेजी से पिघल रहा है। वर्ष 2017 में ग्लेशियर टूटने से आया भारी मलबा गोमुख के आसपास ही जमा हुआ है, जो कभी भी भारी बारिश या ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर आपदा की स्थिति पैदा कर सकता है।
नदी एवं पर्यावरण संरक्षण अभियान में जुटे पर्यावरणविद् ने पत्रकार वार्ता में कहा कि हिमालय में जलवायु परिवर्तन के बहुत सारे कारक ऐसे हैं। जो हमारे नियंत्रण से बाहर हैं, लेकिन संवेदनशील हिमालय पर जिस तरह का विकास थोपा जा रहा है, वह जानलेवा साबित हो रहा है। ऋषिगंगा में मची तबाही इसका स्पष्ट दिखाई देने वाला उदाहरण है। मैदानी मानकों की तर्ज पर हिमालयी क्षेत्र में किए जा रहे निर्माण त्रासदी का कारण बनते जा रहे हैं। पर्यावरणविद् ने कहा कि परियोजना निर्माण से पूर्व पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभाव आकलन की रिपोर्ट बनाई जाती है। अंग्रेजी भाषा में तैयार की जा रही रिपोर्ट को ग्रामीण समझ नहीं पाते, जिससे तमाम दुष्प्रभावों के बावजूद परियोजनाओं को स्वीकृति मिल जाती है।
केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक विशेषज्ञ समिति बनाई थी। वर्ष 2014 में आई इस समिति की रिपोर्ट पर अपने हिसाब से गलत बयानबाजी कर बांध निर्माता निर्भय होकर आपदा को न्योता देने वाले बांध, सुरंग आदि बना रहे हैं। ऊपरी अदालतें तो जनता का साथ दे रही हैं, लेकिन सियासी दल चुपचाप नए-नए बांधों की फाइलें खोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 में राज्य सरकार को वैकल्पिक जल नीति सौंपने के बाद से ही हम सुरंग, बांध, बैराज आधारित परियोजनाओं को बंद करने की मांग कर रहे हैं।