इस छोटे से कस्बे के काश्तकारों ने पलायन को दिया मुंहतोड़ जवाब..
उत्तराखंड: पलायन की मार झेल रहे पहाड़ को टिहरी के छोटे से कस्बे आगराखाल के आसपास बसे गांवों के काश्तकारों ने नई राह दिखाई है। गांवों के लोगों ने छोटे-मोटे रोजगार के लिए गांव छोड़ने के बजाय अपनी जमीन पर भरोसा किया और स्थानीय उत्पादों की खेती को आजीविका का जरिया बनाया। आज क्षेत्र के काश्तकार न केवल आजीविका चलाने में सफल हुए हैं, बल्कि स्थानीय उत्पादों को भी उन्होंने पुनर्जीवन दिया है।
आगराखाल नई टिहरी जिले में ऋषिकेश-गंगोत्री राजमार्ग पर छोटा सा कस्बा है। आगर गांव के पास बसे होने के कारण इसका नाम आगराखाल पड़ा। यह छोटा सा कस्बा आज पहाड़ी दालों, सब्जियों और फलों के लिए प्रसिद्ध है। बाजार में एक दर्जन से अधिक दुकानों में यह उत्पाद बेचे जाते हैं। साथ की कुछ व्यापारी इन उत्पादों को बाहर भी भेजते हैं। आगराखाल में प्रतापनगर, चंबा, धनोल्टी सहित आसपास स्थित धर्मांदस्यू व कुंजनी पट्टी के लगभग सौ से अधिक गांवों के काश्तकार अपने उत्पाद बेचते हैं।
क्या-क्या हैं स्थानीय उत्पाद:
स्थानीय उत्पादों में अदरक, अरबी, राजमा, उड़द, मसूर,जखिया, गहत, माल्टा, कोदा, झंगोरा आदि शामिल हैं। स्थानीय व्यापारियों का अनुमान है कि, हर साल आगराखाल में 200 मीट्रिक टन अदरक, 300 मीट्रिक टन पहाड़ी दालें, 100 मीट्रिक टन अरबी बेची जाता है।
सरकार से नहीं मिली खास मदद..
स्थानीय निवासी सुरेद्र सिंह कंडारी कहते हैं कि, 70 के दशक में उनके दादा रतन सिंह ने स्थानीय उत्पादों को बेचने का काम शुरू किया था। उसके बाद उनके पिता धर्म सिंह ने इस काम आगे बढ़ाया। आज तो आगराखाल स्थानीय उत्पादों की बिक्री का हब बन गया है। वे बताते हैं कि, पूर्व में सहकारिता मंत्री रहे मंत्री प्रसाद नैथानी के कार्यकाल में यहां दो सहकारिता समितियां खोली गई। इसके अलावा सरकार की ओर से आगराखाल को कभी कोई मदद नहीं मिली।
आगराखाल में दशकों से ओपन मार्केट में स्थानीय उत्पादों की बिक्री होती है। आज सरकार ने नये कृषि कानूनों में किसान को आजादी दे दी है कि वह अपने उत्पाद को जहां चाहे बेच सकता है। आगराखाल में पहले ही ओपन मार्केट की थीम विकसित हो गई थी। ऐसे में आगराखाल के उत्तराखंड का विकास मॉडल बनने की पूरी संभावना है।