उत्तराखंड

पूर्णाहूति के साथ 11 दिवसीय शिवपुराण संपंन

रोहित डिमरी

दो कक्षांे के निर्माण के लिए विधायक ने की पांच लाख की घोषणा
362 गांवों के ईष्ट देव हैं कार्तिकेय, उत्तर भरत में एक मात्र सिद्धपीठ है क्रांैच पर्वत
रुद्रप्रयाग। विकासखण्ड अगस्त्यमुनि के बाड़व गांव में कार्तिक स्वामी के मंदिर में 11 दिवसीय शिवपुराण तथा महायज्ञ का अनुष्ठान किया गया। बीस मार्च से आरम्भ हुए इस धार्मिक अनुष्ठान के समापन पर 51 जल कलशों की भव्य यात्रा निकाली गई।

16 साल बाद आयोजित धार्मिक अनुष्ठान में बाड़व गांव समेत आस-पास के गांवों के हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान का आशीष लिया। वहीं धियाणियां एवं प्रवासियों ने गांव में आकर धार्मिक कार्य में जुटे रहे। अनुष्ठान के समापन पर देवीधार से कार्तिक स्वामी मंदिर तक 51 जल कलश के साथ भव्य यात्रा निकाली गई। इस अवसर पर केदारनाथ के विधायक मनोज रावत ने शिवपुराण में शिरकत की। विधायक ने मंदिर में दो कक्षों के निर्माण के लिए पांच लाख रुपये देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां आधुनिकता की चकाचैंध और पश्चिमी सभ्यता की ओर पहाड़ के लोग भी धीरे-धीरे ढल रहे हैं, वहीं पहाड़ के भीतर सैकड़ों गांव ऐसे भी हैं जो अपनी धार्मिक संस्कृति देव अनुष्ठानों परम्पराओं और लोक मान्यताओं के जरिए प्रवासी उत्तराखडियों को एक मंच पर लाने और सामाजिक ताने बाने को बनाये रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। रुद्रप्रयाग और चमोली जिले के 362 गांवों के ईष्ठ देवता के रूप में विख्यात भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय भगवान का मंदिर उत्तर भारत के एक मात्र सिद्धपीठ क्रांैच पर्वत पर स्थित है।

इन गांवों के लोग भगवान कार्तिकेय को अपना आराध्य देव मानते हैं। क्रौंच पर्वत स्थित भगवान कार्तिकेय के लिंग के स्वरूप रुद्रप्रयाग जनपद के बाड़व गांव में भी स्थित है, इसलिए बाड़व गांव स्थित भगवान कर्तिकेय के मंदिर में पूजा अर्चना एवं धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। 16 वर्ष बाद गांव में 11 दिवसीय शिवपुराण एवं महायज्ञ का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर आशीर्वाद लिया। कार्तिक स्वामी मंदिर समिति के अध्यक्ष शत्रुघ्न सिंह नेगी ने कहा कि आधुनिकता के इस दौर में जहां आज लोग पश्चिमी सभ्यता में ढल गए हैं और अपनी संस्कृति रिति-रिवाज, लोक मान्यताएं तथा धार्मिक अनुष्ठानों की ओर मुंह मोड़ रहे हैं, वहीं बाड़़व समेत इस क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में आज भी इन धार्मिक अनुष्ठानों में धियाणियों तथा पहाड़ छोड़कर बाहर गए प्रवासी गांव आने पर मजबूर हो जाते हैं और मेल-मिलाप, आपसी भाईचारा और सौहान्र्द का केन्द्र बन जाते हैं। इस प्रकार के अनुष्ठान जहां आस्था के प्रतीक हुआ करते हैं, वहीं पहाड़ी की संस्कृति और परम्पराओं को जीवित रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

सामाजिक नेत्री माधुरी नेगी ने कहा कि ऐसे धार्मिक अनुष्ठान जहां हमारी आस्था के केन्द्र हुआ करते हैं, वहीं ये हमारी संस्कृति परम्पराएं, लोक मान्यताएं और रिति-रिवाज को जीवित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। जबकि बाहर गए परवासियों, धियाणियों को अपने गाँव आने पर मजबूर कर देते हैं तथा मेल मिलाप के अवसर भी प्रदान होते हैं। कथावाचक वासुदेव प्रसाद थपलियाल ने कहा कि यह अनुष्ठान विश्व की शांति एवं कल्याण का प्रतीक है। इस अवसर पर सैकड़ों भक्तों ने भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद लेकर मनोतियां मांगी। इस अवसर पर माधुरी नेगी, केवल सिंह नेगी, ताजबर सिंह नेगी, रीता देवी, राजेश्वरी बासकंड़ी, निशा बासकंडी आदि शामिल थे।

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