उत्तराखंड

इस गांव को देखकर आपकी भूली-बिसरी यादें ताजी हो जाएंगी

दीपककीरोशनीसे जगमग हुई सौड गांव की वीरान मकानों की दीवारें

चित्रों के जरिये दीवारों में नजर आई गांव की पुरानी यादें 

संजय चौहान

पलायन ने पहाड़ को खोखला कर दिया है। साल दर साल यहाँ से पलायन बदस्तूर जारी है। हालत इस कदर भायवह है की गांव के गांव खाली हो चलें हैं। ऐसा ही एक गांव है टिहरी जनपद में चंबा ब्लाक के चंबा-धनोल्टी मार्ग पर सडक से कुछ दूरी पर बसा सौड गांव। कुछ साल पहले तक गांव में 80 से अधिक परिवार निवास करते थे। जिस कारण गांव की रौनक देखने को मिलती थी। स्कूलों की छुटियों में हर रोज छोटे छोटे बच्चों का हुजूम एक घर से लेकर दूसरे घर, खेत खलियानों से लेकर गांव की पगडंडियाँ में अठखेलियाँ खेला करती थे। लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गांव के लोगों ने मूल गांव से इतर सुविधाजनक जड़ीपानी, कनाताल, धनोल्टी सहित अन्य स्थानों पर बसना शुरू कर दिया। जिसकी परिणती ये हुई की आज मूल गांव में महज 12 परिवार ही निवास कर रहें हैं। जिस कारण से इस गांव के अधिकतर मकान आज जीर्ण शीर्ण स्थिति में पहुँच गएँ हैं। कहें तो देखभाल के आभाव में खंडर में तब्दील हो चुकें हैं।

आजकल ये गांव चर्चा का विषय बना हुआ है। विगत एक महीने से गांव में लोगों का जमवाड़ा लगा है। वीरान पड़े गांव में लोगों की चहलकदमी से गांव में पसरा सन्नाटा टूट गया है। क्योंकि गांव में इन दिनों देश के विभिन्न हिस्सों से आये युवा और बेहतरीन चित्रकारों की एक पूरी टीम वीरान पड़े गांव के मकानों की दीवारों पर गांव की पुरानी यादों को चित्रों से उकेर रहें हैं और इस मिशन को अंजाम दिया है चम्बा ब्लाक के कोट गांव निवासी होनहार युवा दीपक रमोला के “प्रोजेक्ट फ्यूल” ने।

जिसके तहत गांव के वीरान मकानों की दीवारों पर चित्रकारी की जा रही है। जो चित्रकारी की जा रही है वो पूरे देश से चयनित लोगों द्वारा की जा रही है। जिसका उद्देश्य लोगों को गांव से हुए पलायन के असर से अवगत कराना है। जिससे लोग पलायन से जूझते अपने गांवों को एक नयी दृष्टि व अंतर्दृष्टि से देख सकेंगे। इस चित्रकारी के माध्यम से लोगों को दिखाया जाएगा की पलायन से पहले ये गांव कितना खुशहाल हुआ करता था। चित्रों के द्वारा गांव के जीवन के पाठ का दस्तावेजीकरण किया जा रहा हैं। यह उत्तराखंड का पहला गांव है जहाँ इस तरह की पहल की जा रही है।  जिसका मकसद है पहाड़ में पलायन को रोकने के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देना। वर्तमान में कई लोग इन घरों को देखने आ चुके हैं। हर किसी ने इस प्रयास की भूरी भूरी प्रशंसा की है। सौड गांव में ये प्रोजेक्ट 1 जून से 30 जून तक चलेगा।

अभी तक गांव के 50 से अधिक मकानों पर गांव की पुरानी यादों को चित्रों के माध्यम से उकेरा गया है। जिसमे एक दिवार पर फूलों के चित्र बनाए गए, जो ये दर्शातें है की कभी इस घर के आस पास बहुत संख्या में फूल उगते थे जिन्हें पूरे गांव के लोग पूजा के लिए ले जाते थे। एक घर की दिवार पर फुरसत के समय हुक्का पीते एक पुरुष और पास में ही बैठी एक महिला की तस्वीर है जो एक दूसरे से गुफ्तगू करते नजर आ रहें हैं। एक घर की दिवार पर पेड़ों की छांव में एक महिला विश्राम कर रही है का चित्र है जो पेड़ों की महता को चरितार्थ करता है। तो एक दिवार पर गांव में रोपाई से पहले अपने बैलों की जोड़ी को भरपेट घास खिलाती महिला का चित्र है। जबकि एक दिवार पर गांव की महिला अपने सिर पर घास लाती हुई दिखाई दे रही है। वही एक मकान की दिवार पर गांव में सूखे की स्थिति में गांव के आराध्य देवता मां सुरकंडा देवी पास जा रहे हैं, ताकि बारिश हो। एक घर की दीवार पर आकाशवाणी के जरिये समाचार सुनते के कुछ लोग दिखाए गए। बताया गया कि उस घर में सबसे पहले रेडियो आया था। एक दीवार पर पालकी में दूल्हा और डोली पर दुल्हन दिखाई गई। इस घर में दशकों पहले शादी हुई थी। उसी शादी की यह झलकी दर्शाने की कोशिश की गई। गांव में स्कूल जाते बच्चे भी कलाकारों ने चित्रों के माध्यम से दिखाए। एक चित्र में यह भी दिखाया गया कि लंबे समय से गांव में बारिश नहीं हुई।

गांव में इस तरह उकेरी जा रही हैं कलाकृतियां

कुल मिलाकर इन चित्रों के माध्यम से गाँव के पौराणिक इतिहास, जीवन शैली, दिनचर्या और कार्यों को इंगित किया गया है, जिससे पता चल सके की पलायन से पहले गांव की तस्वीर क्या थी। और अब क्या है। सौड गांव निवासी सूर्या रमोला कहतें है की सुविधाओं के आभाव में लोगों ने अपने मूल गांव से अन्यत्र बसना शुरू किया। अधिकतर लोग सडक के आस पास बस गएँ है लेकिन गांव को छोड़ा नहीं है। पहले 80 परिवार गांव में रहते थे। अब 12 परिवार ही मूल गांव में रहते है। किंतु आज भी हमने  गांव की खेती नहीं छोड़ी हैं। अब गांव सडक से जुड़ गया है और उम्मीद है की लोग वापस अपने गांव के मकानों की पुनः मरम्मत करेंगे और गांव लौटेंगे। गांव में दीपक रमोला के सहयोग से ‘’प्रोजेक्ट फ्यूल’’ के तहत वीरान पड़े मकानों की दीवारों पर गांव की पुरानी यादों को संजोया जा रहा है जो की अपने आप में एक अनोखी पहल है। पूरे गांव वाले बेहद खुश है, इन दिनों गांव के वीरान मकानों में छाया सन्नाटा टूट जो गया है। गांव के हर मकान की दिवार गांव के इतिहास को चित्रों के माध्यम से खुद बंया कर रही है। इससे न केवल गाँव छोड़ चुके लोगो को वापस गांव लौटने को प्रेरित करेगी, अपितु विलेज टूरिज्म को भी बढ़ावा मिल सकता है। इस तरह के अभिनव प्रयास जरुर पलायन के कारण खाली हो चुके गांव के लिए वरदान साबित हो सकतें है।

जबकि इस प्रोजेक्ट का हिस्सा बने युवा प्रवीण कलुरा कहतें हैं कि गांव की दीवारों पर चित्रकारी करने से एक फायदा ये भी मिल सकता है कि इस गाँव को होम स्टे की तर्ज पर भी विकसित किया जाय। जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके और लोगों को स्वरोजगार। अभी ये शुरुआत भर है। दीपक रमोला ने हमें एक रास्ता दिखाया है हम इसे एक मॉडल बना कर बाकी गाँव तक भी पंहुचा सकते है। गाँव वाले इस प्रोजेक्ट में रूचि दिखा रहे हैं और उन्होंने भी चित्रकारी बनाने में मदद की है।

गौरतलब है की बहुमुखी प्रतिभा के धनी दीपक रमोला मुंबई विश्वविद्यालय से मास मीडिया स्टडीज में एक टेड स्पीकर, एक शिक्षक, एक लेखक, अभिनेता, गीतकार और एक पत्रकार है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, कैसर थिएटर प्रोडक्शंस और नो लाइसेंस के साथ काम करने के बाद दीपक ने थियेटर में अनुभव हासिल किया है और प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाउस (गढ़वाल पोस्ट और सीएनएन आईबीएन) दोनों के साथ काम भी किया है। एक अभिनेता के रूप में दीपक ने राजश्री प्रोडक्शन के “आइ लाइ लाइफ में” काम किया है। जबकि सलमान खान के साथ “बॉडीगार्ड” में और धारावाहिक “ससुराल सिमर का” में भी काम किया है। दीपक नें हिंदी फिल्म मांझी सहित कई फिल्मो के लिए गीत में लिखे हैं। दीपक को ”प्रोजेक्ट फ्यूल” के लिए विचार और प्रेरणा अपनी मां से आई थी। आज उनकी प्रेरणा से दीपक का ‘प्रोजेक्ट फ्यूल’ पूरे देश में अपनी चमक बिखेर रहा है।

वास्तव में दीपक के ‘’प्रोजेक्ट फ्यूल’’ के तहत पलायन से वीरान हो चुके सौड गांव के मकानों की दीवारों पर गांव के इतिहास को चित्रों के माध्यम से संजोना अपने आप में एक अभिनव प्रयास और अनुकरणीय कार्य है। दीपक ने इस प्रोजेक्ट के जरिये कार्य करके दिखाया है कि यदि कार्य करने की ललक, जुनून, और जज्बा हो तो कोई भी कार्य कठिन नहीं होता है। जहाँ एक और सरकार पलायन रोकने के लिए लोगों से सुझाव मांग रही है वहीँ दीपक जैसे युवा पलायन रोकने के अभिनव प्रयासों को धरातल पर साकार कर रहें हैं।  अगर आपके पास भी समय हो तो जरुर एक बार जाइएगा। टिहरी जनपद के चंबा ब्लाक में चम्बा-धनोल्टी सडक मार्ग पर चंबा से 12 किमी की दूरी पर स्थित सौड गांव, सौड गांव में ये प्रोजेक्ट 1 जून से 30 जून तक चलेगा।

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