उत्तराखंड

केदारनाथ: भय पर भक्ति की जीत

आस्था का उमड़ा सैलाब
अब तक केदारधाम पहुंच चुके हैं साढ़े तीन लाख से अधिक श्रद्धालु

केदारनाथ। बिहार के समस्तीपुर से रामशरण यादव अपनी बूढ़ी मां, अपनी पत्नी और मात्र एक वर्ष के दो जुड़वा बच्चों को लेकर बाबा केदार के द्वार जा पहुंचा। वह पैदल ही गौरीकुंड से 19 किलोमीटर की यात्रा कर केदारनाथ पहुंचा। बारिश की बूंदों के बीच वह व उसकी पत्नी प्लास्टिक के पतले से रेनकोट में अपने बच्चों को बचाने की कोशिश कर रहे थे। इसके बावजूद उसके चेहरे पर एक अदुभुत तेज था, परेशानी की झलक नहीं थी। उसके अनुसार मां ने मनौती मांगी थी कि बाबा केदार के पास आऊंगी, तो आ पहुंचा।

राजस्थान के नसीराबाद (अजमेर) निवासी कल्याणमल गूर्जर अपने परिवार के सात सदस्यों के साथ केदारबाबा के दर्शनों के लिए आए हैं। वह हेलीकाॅप्टर से आना चाहते थे लेकिन दो दिन इंतजार करने के बाद भी जब उनका नम्बर नहीं आया तो पैदल ही बाबा के द्वार जा पहुंचे। उनके परिवार में चार महिलाएं थीं जिनमें दो 60 वर्ष के आसपास थीं। इसी तरह से तेलंगाना से सत्यनारायण, जम्मू से कुलवंत की भी यही कहानी है। तमाम परेशानियों के बावजूद सिर पर लाल पट्टी बांधे, हाथ में लाठी और मुंह पर बाबा केदार की जय बोलते हुए रोजाना आठ से दस हजार श्रद्धालु बाबा केदारनाथ पहुंच रहे हैं।  यही तो है भक्ति में शक्ति और भय पर भक्ति की जीत। केदारनाथ आपदा के बाद पहली बार यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा है। केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद अब तक यहां साढ़े तीन लाख से भी अधिक श्रद्धालु आ चुके हैं। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह के अनुसार इस बार रिकार्ड श्रद्धालुओं के केदारनाथ पहुंचने के आसार हैं। वह कहते हैं कि बदरीनाथ-केदारनाथ की यात्रा पूरी तरह से सुरक्षित है।

तप्त व तर्पण कुण्ड बदहाल
यह विडम्बना है कि गौरीकुंड में गरम पानी के स्रोत तर्पण कुंड बदहाल है। यहां के पुजारी फाटा के आनंद तिवारी और सिगोटी के भी आनंद तिवारी हैं। उनका कहना है कि आपदा के दौरान कुंड नष्ट हो गया था। इसके बाद पानी के स्रोत पर कुंड बनाने का प्रयास नहीं हुआ। यहां श्रद्धालुओं को किसी नाली की तर्ज पर ही गरम पानी से नहाना पड़ रहा है।

केदारनाथ मंदिर का पिछला हिस्सा

निम यात्रा में दे रहा सहयोग
केदारनाथ में जीएमवीएन ने रुद्रा में टेंट काम्पलैक्स बनाया है। इसके अलावा निम के 25 प्री-फेब्रिकेटिड काटेज बनाई हैं जहां यात्री ठहर रहे हैं। इसके अलावा यूपी राज्य निर्माण निर्माण द्वारा केदारनाथ काटेज बनाई जा रही हैं जहां यात्री ठहर रहे हैं। हालांकि यूपी निर्माण निगम के द्वारा बनाई गई स्ट्रक्चर में अभी से कई खामियां नजर आ रही हैं। निगम ने यहां 160 करोड़ रुपये से भी अधिक खर्च किया है लेकिन इसमें भी अनेक अनियमितताएं नजर आ रही हैं। टाइल्स टूट चुकी हैं और फाल्स सीलिंग कई स्थानों पर लटक रही हैं। चूंकि केदारनाथ में कड़ाके की ठंड है और पिछले सप्ताह भी यहां बर्फबारी हुई है, इसलिए जीएमवीएन और निम के पास स्थान की कमी होने पर यूपीराज्य निर्माण निगम के निर्माणाधीन स्थलों में यात्रियों को ठहराया जा रहा है। निम के कई कर्मचारी भी श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था करने में जुटे हैं। निम कर्मचारी अपने गेस्ट हाउस में भी श्रद्धालुओं को निशुल्क ठहरा रहे हैं और भोजन भी करा रहे हैं। निम यहां इन दिनों तीर्थपुरोहितों के लिए भवन निर्माण का कार्य कर रहा है। निम के कर्मठ रंजीत नेगी के अनुसार हमारी कोशिश है कि यथासंभव श्रद्धालुओं की मदद की जाए ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो।

मंदिर समिति की व्यवस्थाएं चकाचक
बदरीनाथ-केदारनाथ समिति ने यहां अपनी व्यवस्थाएं सुचारू की हैं। यहां समिति मंदिर की देखरेख करने के साथ ही यात्रियों को कोई दिक्कत न हो। समिति के अनिल शर्मा बताते हैं कि इस बार यात्रा बहुत उत्साहित करने वाली है। उम्मीद से बेहतर हो रहा है। हमारा प्रयास है कि श्रद्धालुओं को दर्शनों में किसी तरह की परेशानी न हों। हालांकि भक्तों की लंबी लाइन है। हमारा प्रयास है कि श्रद्धालुओं को आराम से बाबा के दर्शन हो सकें। इसके लिए पुजारियों व कर्मचारियों की ड्यूटी अधिक समय के लिए लगाई गई है।

केदारनाथ में दूधगंगा का सुंदर नजारा

प्रकृति ने केदारपुरी को  दी है अद्वितीय व अनुपम सौगात
आसमां से बर्फ की फोहे गिर रहे हैं। हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बावजूद लोग भक्ति के सागर में गोते लगा रहे हैं। लगभग एक किमी लंबी लाइन में लगे लोग बाबा केदार की जय-जयकार कर रहे हैं। आस्था का यह सैलाब 11755 फीट ऊंचे केदारनाथ में उमड़ा है। केदारनाथ आपदा के बाद पहली बार ऐसा सैलाब यहां उमड़ा है। केदारनाथ में तीन मई को कपाट खुलने के बाद अब तक करीब साढ़े तीन लाख श्रद्धालु आ चुके हैं। यह संख्या भय पर भक्ति की जीत दिखा रही है। एक साल के बच्चे से लेकर 80 साल के लोग यहां पैदल यात्रा के साथ ही डंडी-कंडी, हेलीकाॅप्टर और घोड़े-खच्चरों के माध्यम से आ रहे हैं।

केदारनाथ को प्रकृति ने यदि कभी न भरने वाले आपदा के घाव दिये हैं तो बेपनाह सौदर्य भी दिया है। तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी केदारपुरी बरबस ही रोमांचित कर देती है। 19 किमी पैदल यात्रा की थकान यहां आते ही पल भर में गायब हो जाती है। चांदी सी चमकती बर्फ से ढकी चोटियां हरे बुग्याल, कल-कल बहती पांच नदियां। मासूम सी मंदाकिनी, जिसे देखकर दिल यह मानने को तैयार ही नहीं होता कि यह नदी विनाशलीला की कहानी भी गढ़ सकती है। केदारनाथ में पांच नदियों का अनूठा संगम है। मंदिर के दाएं भाग में मंदाकिनी है तो बाएं में सरस्वती। ठीक सामने से दूधगंगा पहाड़ी से गिरती है तो पिछले भाग में मुधगंगा जैसे हौले से घूंघट की आड़ में बाबा केदार के दर्शनों के लिए मचलती दिखाई देती है। मंदिर के ठीक पीछे स्वर्गद्वारी नदी है जिसमें श्रद्धालु पितृों का तर्पण करते हैं। यह शांत सी नदी चुपके से सरस्वती में मिल जाती है और घाट पर पांचों नदियों का संगम मंदाकिनी के रूप में हो जाता है। केदारनाथ के क्षेत्रपाल भैरव दूर पहाड़ी से सब पर नजर रखते हैं तो रैतसकुंड में आवाज देने पर अद्भुत रूप से पानी में उठते बुलबुले आपको हर्षित कर देते हैं। यहां श्रद्धा का सैलाब उमड़ रहा है। आपदा से उजड़े केदारपुरी को नये सिरे से बसाने का श्रेय कर्नल अजय कोठियाल और नेहरू माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट की टीम को जाता है। कर्नल कोठियाल को टाइगर के नाम से जाना जाता है और टाइगर की टीम रात को भी केदारपुरी में इन दिनों पुनर्निर्माण के कार्यों के साथ ही श्रद्धालुओं की देखभाल करने में भी जुटी हुई है।

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top