उत्तराखंड

जब कर्नल कोठियाल ने बच्चे के कंकाल के सामने खाई थी कसम

केदारपुरी बसाने के लिए देवदूत बने कर्नल कोठियाल
बृजमोहन बिष्ट जैसे रीयल हीरोज को भूल गया शासन-प्रशासन
18 जून, 2013। हेरीटेज हेली सेवा का एक चाॅपर कुछ श्रद्धालुओं को लेकर केदारनाथ उड़ा। गौरीकुंड के ऊपर से देखा तो गौरीकुंड नजर नहीं आया। आगे बढ़ा तो रामबाड़ा गायब था और केदारनाथ में तो भयावह नजारा था। जलप्रलय से केदारपुरी तहस-नहस हो चुका था। और ऊंचे स्थानों पर सैकड़ों लोग जो आपदा में बच गये थे, घायल और बुरी दशा में थे। हेरीटेज कंपनी के प्रबंधक बृजमोहन बिष्ट ने इसकी सूचना डीएम व देहरादून दी। बृजमोहन बिष्ट के अनुसार उन्होंने कैप्टन भूपेंद्र और योगेंद्र राणा के साथ उड़ान भरी और जंगलों में फंसे लोगों को निकाला। कैप्टन भूपेंद्र ने तो कई बार हेली को हवा में रोेका, क्योंकि चाॅपर लैंड नही हो सकता था। आपदा के बाद सब भूल जाते हैं, शिकायती लहजे में बिष्ट ने मुझे कहा, कि प्रशासन ने एक लेटर उनके घर भिजवा कर आभार जता दिया।

कर्नल अजय कोठियाल

आपदा के बाद केदारनाथ तक रास्ता बनाना सबसे मुश्किल काम था। एनआईएम के कर्नल कोठियाल ने दुनिया के सबसे मुश्किल काम की ठान ली थी। जब रामबाड़ा से आगे का रास्ता बनने लगा तो लाशों और बदबू ने टीम की मुश्किलें बढ़ाईं। मजदूर भूतों के डर से काम से भागने लगे। एनआईएम के एक इंस्ट्रक्टर ने बताया कि रामबाड़ा के निकट एक बच्चे के सिर का कंकाल मिला तो कर्नल कोठियाल ने इस कंकाल को अपने टेंट में रख लिया। इंस्ट्रक्टर के अनुसार दूसरे दिन कर्नल कोठियाल ने सभी मजदूरों को एकजुट किया और कंकाल लेकर वहां पहुंचे। उन्होंने सबसे कहा, आओ, हम कसम खाएं कि यदि आगे कभी केदारनाथ में आपदा आए तो इसमें किसी बच्चे की जान न जाएं, ऐसा काम कर जाएं। आज मैं पूरे गर्व व विश्वास के साथ कह सकता हूं कि कर्नल कोठियाल ने अपनी कसम निभाई। आज केदारपुरी थ्रीटियर प्रोटेक्शन वाॅल से सुरक्षित हैं। ऐसे साहसी, दृढ़प्रतिज्ञ, जुझारू और कुशल सेनानी को सैल्यूट तो बनता ही है।

आपदा को याद कर आज भी शरीर में होती है सिहरन: बिष्ट

हेरिटेज हेली सेवा के प्रबंधक बृजमोहन बिष्ट के अनुसार 16-17 जून 2013 को आई आपदा के बाद सबसे पहले हमारा हेलीकाॅप्टर केदारनाथ के लिए उड़ा। गौरीकुंड तो दिखा ही नहीं। रास्ते में रामबाड़ा पता नहीं था। इसकी खबर हमने डीएम रुद्रप्रयाग को दी और फिर अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा को। 18 जून को हमने फिर केदारनाथ के लिए उड़ान भरी। रास्ते में लोग फंसे हुए थे। केदारनाथ में तीन नदियां बन गई थी। मंदिर के बाहर बूढ़े-बच्चे घायल पड़े थे। जंगलों में लोग फंसे थे। अगले दिन मैं, पायलट कैप्टन भूपेंद्र और योगेंद्र राणा ने रामबाड़ा में किसी तरह से हेली उतारा तो वहां 250 लोग पहुंच गये। कई दिनों से भूखे हेली में सवार होने के लिए टूट पड़े। हमने घायलों, बच्चों व महिलाओं को प्राथमिकता दी।

बृजमोहन बिष्ट

रामबाड़ा में चारों ओर भीषण सडांध फैली थी। कई घायल थे, एक व्यक्ति हेली से वापस लाते समय दम तोड़ गया। उसके मुंह, कानों में रेत भरी हुई थी। तीन दिनों तक हमने जंगलचट्टी में फंसे लोगों को निकाला। एक दिन पंजाब और सिंघ आवास पहुंचा तो एक महिला की टांग टूटी थी। वहां चाॅपर नहीं उतर सकता था तो हमने चाॅपर को हवा में ही रोका और मैं महिला को गोद में उठा कर चाॅपर में ले गया। रामबाड़ा में एक फैमली फंसी थी और बच्चे का पांव टूट गया था। इस फैमली को भी हमने सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया। इस बीच आईटीबीपी भी सहायता के लिए पहुंच गई थी। आपदा का वीभत्स नजारा था।

प्रशासन से शिकवा यह अक्सर होता है कि जो लोग निस्वार्थ और ईमानदारी से अपने फर्ज को अंजाम देते हैं वे उपेक्षित रह जाते हैं। ऐसा ही जांबाज सिविलियन बृजमोहन बिष्ट के साथ हुआ। जब आपदा में मददगार लोगों को सरकार ने सम्मानित किया तो प्रशासन बिष्ट को भूल गया। रुद्रप्रयाग में सम्मान समारोह हुआ तो उन्हें नहीं बुलाया गया, हां, इतना जरूर किया कि एक प्रशस्ति पत्र उनके घर पहुंचा दिया गया। बिष्ट के अनुसार जब केदारनाथ में मदद के लिए कोई नहीं था तो वो सबसे आगे थे। फौज, आईटीबीपी, डीएम, एसडीएम सब बाद में पहुंचे थे, लेकिन सम्मान में सबसे पीछे।

 

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top