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भरतू की ब्वारी और ग्लोबल एक्सेस !

युवा दीप पाठक

भरतू की ब्वारी को लेकर यां पनां बी भौत च्वां-च्वां हो री ठैरी बल,जब स्वहित्यकारी लोग इस बात को लेकर एकदम्म पाड़ी-कांठी ईस्टैल में स्वान्त फत्याय पत्याड़ कर रे थे कि वा वा “नवल खाली” ने क्या नया घुस के घुस्याट गाड़ दिया तो सब अंगरेजी की न्याम-ट्याम वाले बी कहने लगे हां यार पलैन (पलायन) की वजै तो औरतें ई ठैरी, तब तक भरतू की ब्वारी का आफिसियल बयान आ गया ठैरा ! जो पाड़ी नारी की महाभारी छवि जैसा था जिसमें आदमी बस ताश फतोड़ने और शराब पीने के लिए होता है, जैसे सन साठ की हिंदी फिल्मों का विलेन बस बुरा होने के लिए बुरा होता था और उसके पास कोई डिमाग नी होने वाला ठैरा ! खैर.. ताल्ली दोनों हाथों से बजने वाली ठैरी स्यैंणिं मैंस (औरत आदमी) इस ताली के दो हाथ ठैरे !

अब इस ईस्टोरी में नय्या ट्विस्ट आ गया जब ये कानी (कहानी) मास्त बाबा वाले ने पड़ी तो वो क्या करता बिंब-शैली की अति यथार्थवादी मिथभाष की वा वा करे या लोकलिटी सैईत्यिक विजन को सराहे ? मास्त बाबा वाले तो अपने अलावा न किसी के साहित्य को मानते ई नीं हैं दुनियां भर में पीपीएच ने अनुवाद कर टनों किताबें हवाई जहाज भर के भेजी कि शैदसी दुनियां में किरांति किरांती हो जाये,चीन, वियतनाम, क्यूबा,रोमानिया, में लोकल परिस्तिथियों के चलते किरांती हो गयी खैर वो कितनी स्थिर रह पायी ये ऐसा ई है जैसे बिंदुखत्ता को बसाते-कब्जाते समय जो लोग वां बसे आज उनका 10% भी वहां नी हैं सब बेच थेच के रजिस्टरी-भूमिधरी ईलाके में इकड़ दो एकड़ सांट लिये, अब कच्ची जमीन की कोई लोन भेलू बी नी होने वाली ठैरी !

खैर पलैन (पलायन) की पीड़ा पाड़ियों की बस नास्टेल्जिक प्रेगनेंट पेन जैसी ठैरी ! न पेट में बच्चा ठैरा न पेन ठैरा खाल्ली अतीतजीवीपना ठैरा,अब ईमानदारी से बताओ पलायन की सच में इत्ती चिंता है तुमको ? खाल्ली कूकाट चिचाट ठैरा ! स्याने लोग कह गये हैं “ईमानदार होना गर्भवती होने जैसा है, या तो आप हैं या नहीं हैं !” अब इत्ते बेमान हम बी नी हैं थोडा तो ईमान है” ये डैलौग ऐसाई ठैरा जैसे कोई औरत कहे थोड़ी सी गर्भवती हूं” ये थोड़ा क्या होता है भाय ?

अब सच्ची कहूं तो मर्च जैसी खौंस्याट और कच्चे पिंडालू जैसी कौंकाली लगती है, सच तो ये ठैरा कि सेरे उखड़ के बने बनाये चक तुमको सांटा बदला चकबंदी करके मिल जायें तो तुम दिल्ली दून चंडीगड़ तो क्या रंगीला ट्रंपवा के देस से बी आकर अपनी नाप पटवारी से निकालकर भाई भतीजा चाचा से केस कचैरी ख्वरफोड़ करके किसी प्लैंसी वाले को हैवन हिमालया पीस रिजोर्ट के नाम पर बेच के अमाऊंट का चक (चेक) लेकर चकचकान होकर पाड़ से निकल लोगे !

अब पलायन का तो यूनिवर्सल कौज ठैरा , ईस्लाम वाले हिजरत को लाजम मानते हैं, अंगरेज व ईं ईंगलैंड में भैटे घाम तापते रैते तो ना युनाईटेड किंगडम होता न अमरीका होता न आस्ट्रेलिया हम भी डच राज्य में कालोनी होते तो आज अंगरेजी की न्याम-ट्याम की जगह फ्रेंच में “सी तू सा वे ऊ जे ते मेन” कै रे होते सांप जैसे फ्वां फ्वां वाली फिरेंच होती वो तो क्लाईब लायड और डुप्ले की जंग में ब्रिटंस जीत गया !

पलायन सब पर गति है लागू है फर्ज है बच्चा मां के पेट से पलायन करेगा , सूरज चांद धरती सब पलायन कर रे, खैर “पल्ले में नी कौड़ी, हांके लंबी चौड़ी” इत्ती बात क्यूं करनी रात का खाना सुबे पलायन कर जाता है तब अगले दिन की धाणीं दांणीं की चूटाचूट होने वाली ठैरी !

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