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उत्तराखंड सरकार के खिलाफ मुहीम छेड़ेगा VHP..

उत्तराखंड सरकार

उत्तराखंड सरकार के खिलाफ मुहीम छेड़ेगा VHP..

देश-विदेश : उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री जैसे चार धामों और अन्य 47 मंदिरों के अधिग्रहण के लिए राज्य सरकार की ओर देवस्थानम बोर्ड बनाए जाने के मुद्दे पर विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) कड़ा रुख अपनाने का संकेत दिया है. वीएचपी का कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सहयोग राशि जुटाने का अभियान मार्च में खत्म हो जाने के बाद उत्तराखंड के मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त कराने के लिए मुहिम छेड़ी जाएगी.

 

 

कब बना उत्तराखंड में चार धाम देवस्थानमा बोर्ड..

दिसंबर 2019 में उत्तराखंड सरकार ने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री समेत प्रदेश के 51 मंदिरों का प्रबंधन हाथ में लेने के लिए एक्ट के जरिए चार धाम देवस्थानम बोर्ड बनाया. इस एक्ट को मंजूरी मिलने से पहले से ही मंदिरों के पुरोहितों ने इस बोर्ड और मंदिरों के सरकारीकरण का विरोध शुरू कर दिया था. उत्तराखंड सरकार के इस कदम को हिन्दुओं की आस्था में दखल करार देते हुए साधु-संत समाज ने भी पुरोहितों का साथ देने का एलान किया. यहां तक कि साधु समाज, पंडा समाज और पुरोहित समाज की ओर से उत्तराखंड विधानसभा का घेराव तक किया गया.

 

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को बताया था संवैधानिक..

पुरोहितों और संत समाज की मांग है कि राज्य सरकार 51 मंदिरों के अधिग्रहण के फैसले को वापस ले. इस सरकारी फैसले के ख़िलाफ़ पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में अपील की. लेकिन 21 जुलाई 2020 को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के एक्ट को संवैधानिक करार देते हुए डॉ स्वामी की अपील को नामंजूर कर दिया. हाईकोर्ट के इस फैसले पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राहत की सांस ली थी. मुख्यमंत्री का मानना है कि लाखों की संख्या में श्रद्धालु प्रदेश में आते हैं, ऐसे में देवस्थानम बोर्ड के गठन से उनको बहुत सी सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाएंगी और आसपास के क्षेत्र में विकास तेज होगा.

 

 

सुप्रीम कोर्ट में पांच याचिकाएं लंबित..

डॉ स्वामी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को पिछले साल 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. डॉ स्वामी की याचिका के अलावा इसी मुद्दे पर चार और याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.

 

लगातार विरोध कर रहे हैं पुरोहित और साधु संत दूसरी और पुरोहितों और संत समाज की ओर से इस मुद्दे पर विरोध लगातार जारी है. इनका कहना है कि ये मंदिर पुरोहित समाज के पूर्वजों के बनाए हैं और उन्हीं की पीढ़ियां वर्षों से यहां की देखभाल और पूजा अर्चना करती आ रही हैं. गंगोत्री धाम के पुरोहित रजनीकांत सेमवाल ने आजतक को बताया कि इस मुद्दे पर उन्होंने अपना विरोध विश्व हिन्दू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामने भी दर्ज कराया.

 

मंदिरों के सरकारीकरण के खिलाफ है विश्व हिन्दू परिषद..

उत्तराखंड में मंदिरों के सरकारीकरण के विरोध की कमान संभाल रहे बद्रीनाथ धाम के पुरोहित ब्रजेश सती के मुताबिक वीएचपी के अंतर्राष्ट्रीय महामंत्री जुगल किशोर और संयोजक दिनेश जी का साफ तौर पर कहना है कि वे उत्तराखंड सरकार के इस फैसले के खिलाफ हैं. सती के मुताबिक वीएचपी के इन दोनों नेताओं ने बताया कि वीएचपी पहले से ही मंदिरों के सरकारीकरण के विरोध में रही है. वीएचपी नेताओं ने बताया कि वे मार्च तक श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए सहयोग राशि जुटाने की मुहिम में लगे हुए है. इसके संपन्न होने के बाद सभी तीर्थ पुरोहितों से बात करके संयुक्त रणनीति बनाई जाएगी. वीएचपी की उत्तराखंड तब तक इस विषय पर नजर बनाए रखेगी.

 

वीएचपी के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ सुरेंद्र जैन के मुताबिक हिन्दू धर्म आचार्य सभा की बैठक पिछले दिनों दिल्ली में हुई थी, उसमें एकमत में कहा गया कि मंदिरों का सरकारीकरण नहीं होना चाहिए. डॉ जैन ने कहा कि मठ और मंदिर हिन्दुओं की आस्था के केंद्र हैं और उनमें किसी तरह का सरकार की ओर से दखल हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ जैसा है. डॉ जैन ने कहा कि मंदिरों के सरकारीकरण के नाम पर इसके चढ़ावे के दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है. मंदिरों का संचालन नौकरशाहों के हाथ में आ जाता है जो राजनेताओं के इशारे पर चलते हैं और राजनेताओं को अपने वोट बैंक की फिक्र रहती है.

 

वीएचपी नेता ने कहा कि जिन मंदिरों को सरकारीकरण किया जा चुका है उन्हें समाज को सौंप देना चाहिए, अगर कहीं अधिकारियों की जरूरत है भी तो उन्हें निर्णायक नही सहायक की भूमिका में होना चाहिए. डॉ जैन ने इसी संदर्भ में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ट्रस्ट के निमणि पर केंद्र सरकार ने जो रुख अपनाया उसे स्वागतयोग्य बताया. मंदिर चलाना संतों का काम है, ये कहते हुए दस्ट में मुख्य भूमिका संक्षों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को दी गई, डॉ जैन ने कहा कि यही दृष्टिकोण देशभर में सभी राज्यों को अपनाना चाहिए.

 

 

डॉ जैन ने ये भी कहा कि “जिन मंदिरों पर बहुत ज्यादा चढावा आता है, विकास के नाम पर उन्हीं की फिक्र क्यों की जाती है. जो मंदिर गांवों में जीर्ण हालत में हैं उनकी फिक्र क्यों नहीं की जाती हैं ,डॉ जैन ने ये सवाल भी किया कि अनियमितताओं की बात कहकर मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथ में लिया जाता है तो फिर मस्जिदों या चर्च के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जाता. क्या वहां किसी तरह की अनियमितता नहीं होतीं.

 

 

पुरोहितों को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का समर्थन..

पुरोहितों की मुहिम को शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का भी समर्थन हासिल है. पुरोहित समाज का जब एक प्रतिनिधि मंडल उनसे मिला तो उन्होंने आश्वासन दिया कि वे चारधाम देवस्थानम बोर्ड के ख़िलाफ़ गवाही भी देने के लिए तैयार हैं.

 

उत्तराखंड सरकार ने चारधाम देवस्थानम बोर्ड के लिए जिस तरह का कानून बनाया, इस तरह के कानून देश के कई और ब़ड़े तीर्थस्थानों के लिए पहले से लागू हैं जैसे- जगन्नाथ पुरी (1955), वैष्णोदेवी (1988), श्रीनाथजी नाथद्वारा (1959), महाकाल उज्जैन (1982), काशी विश्वनाथ (1983) और तिरुपति बालाजी मंदिर (1987).

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