उत्तराखंड

मैती आंदोलन को सफल बनाने में जुटे शिक्षक भंडारी…

मैती आंदोलन को सफल बनाने में जुटे शिक्षक भंडारी
नव दम्पति की ओर से लगाये जा रहे फलदार वृक्ष
माता-पिता और नव दम्पति को पौधे की संरक्षण की जिम्मेदारी

रुद्रप्रयाग। मैती आन्दोलन के जनक कल्याण सिंह रावत से प्रेरणा लेकर शिक्षक एवं पर्यावरण प्रेमी सतेन्द्र भंडारी जिले में अभियान को सफल बनाने में लगे हुए हैं। उनकी माने तो मैती एक भावनात्मक पर्यावरण आंदोलन है। आंदोलन के संस्थापक श्री रावत की सोच से इस मुहिम की शुरुआत हुई और आज यह आंदोलन पूरे प्रदेश में फैल चुका है। शादी के समय दूल्हा-दुल्हन की ओर से फलदार पौधों का रोपण किया जाता है।। मैती शब्द का अर्थ होता है मायका, यानि जहां लड़की जन्म से लेकर शादी होने तक अपने मां-बाप के साथ रहती है। जब उसकी शादी होती है, तो वह ससुराल अपने मायके में गुजारी यादों के साथ-साथ विदाई के समय रोपित पौधे की मधुर स्मृति भी ले जाती है।

श्री भंडारी ने कहा कि भावनात्मक आंदोलन के साथ शुरू हुआ पर्यावरण संरक्षण का यह अभियान विश्व में व्याप्त कई गंभीर समस्याएं जो पर्यावरण से जुड़ी हैं, को खत्म करने में अहम भूमिका निभा रहा है। अभियान के तहत बावई गांव में नव दम्पति अनामिका एवं प्रदीप ने पर्यावरण प्रेमी एवं शिक्षक सतेन्द्र भंडारी के नेतृत्व में फलदार पौधे का रोपण किया। घरातियों एवं बरातियों की मौजूदगी में वर प्रदीप एवं वधु अनामिका ने मैती आंदोलन में भाग लेकर एक फलदार पौधे का रोपण कर ताउम्र इसके पोषण का भरोसा दिलाया। इस शुभ अवसर पर दूल्हा एवं दूल्हन को मैती से संबंधित विभिन्न जानकारियां दी गई। मैती आंदोलन से जुड़े श्री भंडारी ने बताया कि मैती आंदोलन के तहत रोपे गये पौधों के रोपण की जिम्मेदारी वर-वधू के साथ ही बालिका के माता-पिता की होती है, जिस पेड़ को वे लगाते हैं उनकी सुरक्षा भी उन्हें ही करनी है। कहा कि पचास वर्ष उम्र का पेड़ प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 17 लाख रूपये तक की सेवायें प्रदान करता है।

शादी की यादगार में लगाया गया पेड़ पितृ ऋण से भी मुक्ति दिलाता है। उन्होंने बताया कि शादी, जन्मदिन सहित अन्य खुशियों के मौके पर मैती आंदोलन का आयोजन किया जाता है। उन्होंने कहा कि पौधों के रोपण करने का मकसद पर्यावरण को बचाना है और लोगों को जागरूक करना है। मैती आंदोलन ने वृहद रूप ले लिया है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि एक वृक्ष लगाना सौ कन्याओं को दान देने के बराबर है। मैती आंदोलन की शुरूआत वर्ष 1994 से शुरू हुई, तब से यह अनवरत जारी है। इस आंदोलन से युवतियों का भावनात्मक एवं रचनात्मक लगाव है। उन्होंने कहा कि उनके द्वारा जिले में मैती अंादोलन कार्यक्रम तीन साल से लगातार चलाया जा रहा है। शादी-ब्याह के सीजन में वे दुल्हन के घर पहुंचकर पौधों का रोपण करवाते हैं, जिससे बिटिया की यांद में माता-पिता पौधें का संरक्षण करें और पर्यावरण को भी लाभ पहुंचे।

शिक्षक भंडारी ने बताया कि आज के दौर में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है और इस गंभीर समस्या के भावी खतरों से पूरा विश्व खौफजदा हो चुका है। मैती जैसे पर्यावरणीय आंदोलन कुछ लोगों के लिए सिर्फ रस्मभर है, जबकि इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में जाएं तो पता चलता है कि यह एक ऐसा भावनात्मक पर्यावरणीय आंदोलन है जिसे व्यापक प्रचार मिले तो पर्यावरण प्रदूषित ही ना हो। आज प्राकृतिक संपदा खतरे में है। ऐसे में मैती आंदोलन वैश्विक होते हुए पर्यावरणीय समस्या का एक कारगर उपाय हो सकता है। बशर्ते इसके लाभों को व्यापक रूप से देखा जाए। सरकार पर्यावरण संरक्षण के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च कर रही है, लेकिन समस्या दूर होने के बजाए बढ़ती जा रही है। ऐसे में पर्यावरण को बचाने के लिए मैती को एक सफल कोशिश कहा जा सकता है। इस मौके पर भुवनेश्वरी बत्र्वाल, रघुवीर सिंह रावत, भगत सिंह बत्र्वालख् बीरेन्द्र भण्डारी, विक्रम सिंह भण्डारी, मान्वेन्द्र नेगी, प्रमिला भण्डारी, गुलशन बत्र्वाल, अखिलेश बत्र्वाल सहित कई मौजूद थे।

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