950 कृषकों में बेहतर कार्य करने वाले 28 कृषकों को औद्यानिकी एडवांस का प्रशिक्षण…
रुद्रप्रयाग। कृषकों में नेतृत्व भूमिका को लेकर प्रोजेक्ट प्रगति के तहत प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिला कार्यालय सभागार में उद्यान विभाग की ओर से चिन्हित प्रगतिशील कृषकों को औद्यानिकी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण के अवसर पर जिलाधिकारी ने कहा कि प्रगति प्रोजेक्ट के तहत जनपद में कृषि, उद्यान, पशुपालन रेशम आदि विभागों द्वारा 950 कृषकों को चिन्हित किया गया है। इन्हीं 950 कृषकों में से अच्छा कार्य करने वाले 28 प्रगतिशील कृषकों को औद्यानिकी एडवांस का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रगति प्रोजेक्ट का नियोजन कृषकों द्वारा ही किया जाएगा।
कृषकों की प्लानिंग को विभाग द्वारा तकनीकी रूप से परीक्षण किया जायेगा व नियोजन को लागू करने के लिए जिला प्रशासन व विभाग द्वारा नियमानुसार सहयोग किया जाएगा। चिन्हित कृषक को विभाग द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है और कृषकों को बीज आपूर्ति, कृषि यंत्र, विपणन में अधिक सुगमता हो, इसके लिए कृषकों के क्षेत्रवार संगठन बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे कृषकों में नेतृत्व की भावना का विकास होगा व क्षेत्र में बीज की डिमांड को संगठन का अध्यक्ष नविभाग को उपलब्ध करा पाएंगे व बीज की आपूर्ति ससमय हो जाएगी। प्रशिक्षण में जिला उद्यान अधिकारी योगेंद्र सिंह ने कृषकों को औद्यानिकी की तकनीकी बारीकियों से अवगत कराया।
उद्यान अधिकारी ने बताया कि पादपों को उचित आहार मिलना सबसे महत्व की बात है। फल और तरकारी अन्य फसलों की अपेक्षा भूमि से अधिक मात्रा में आहार ग्रहण करते हैं। फलवाले वृक्ष तथा तरकारी के पादपों को अन्य पादपों के सदृश ही अपनी वृद्धि के लिए कई प्रकार के आहार अवयवों की आवश्यकता होती है, जो साधारणतः पर्याप्त मात्रा में उपस्थित रहते हैं, मगर कोई अवयव पादप को कितना मिल सकेगा। यह कई बातों पर निर्भर है। जैसे वह अवयव मिट्टी में किस खनिज के रूप में विद्यमान है। मिट्टी का कितना अंश कलिल (कलायड) के रूप में है। मिट्टी में आद्र्रता कितनी है और उसकी अम्लता (पीएच) कितनी है।
अधिकांश फसलों के लिए भूमि में नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटैसियम डालना उपयोगी पाया गया है, क्योंकि ये तत्व विभिन्न फसलों द्वारा न्यूनाधिक मात्रा में निकल जाते हैं। इसलिए यह देखना आवश्यक है कि भूमि के इन तत्वों का संतुलन पौधों की आवश्यकता के अनुसार ही रहे। किसी एक तत्व के बहुत अधिक मात्रा में डालने से दूसरे तत्वों में कमी या असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, जिससे उपज में कमी आ सकती है।