उत्तराखंड

स्कूल में पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप पर प्रार्थना,एक अनूठी पहल…

युवा पीढ़ी आज भी पहाड़ की परंपराओं से अनभिज्ञ…

ढोल-दमाऊं, डौंर-थाली, हुड़का, रणसिंघा, भंकोरा और मशकबीन की सुमधुर लहरों से सराबोर….

पौड़ी गढ़वाल : परंपरा और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन को लेकर बातें भले ही तमाम होती हों, लेकिन इन बातों को धरातल पर उतारने की ठोस पहल शायद ही कभी की गई हो। नतीजा, युवा पीढ़ी आज भी पहाड़ की परंपराओं से अनभिज्ञ है। पहाड़ की परंपराओं से जुड़े पारंपरिक वाद्य यंत्रों से आज की पीढ़ी को जोड़ने के लिए राजकीय इंटर कॉलेज सतपुली ने नई पहल शुरू की है, जिसमें विद्यालय की प्रात: वंदना और समूह गान पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ हो रही है। दिलचस्प तथ्य यह है कि इन वाद्य यंत्रों को बजाने का जिम्मा भी बच्चों को ही दिया गया है।

सतपुली बाजार की सुबह इन दिनों ढोल-दमाऊं, डौंर-थाली, हुड़का, रणसिंघा, भंकोरा और मशकबीन की सुमधुर लहरों से सराबोर रहती है। दरअसल, बाजार से सटे राजकीय इंटर कॉलेज में इसी शुक्रवार से पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ प्रात: वंदना व समूह गान किया जा रहा है। उद्देश्य यही है कि बच्चों को अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों के बारे में जानकारी मिल सके। विद्यालय के शिक्षक प्रताप सिंह बताते हैं कि अकादमिक शोध और प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक और जिलाधिकारी की संयुक्त पहल पर जिले में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ ही भाषा-बोली के संरक्षण की मुहिम चलाई जा रही है।

बताया कि जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान में शिक्षकों को प्रार्थना और समूह गान की रचना कर उनका स्थानीय वाद्य यंत्रों के धुन पर गायन करने का भी प्रशिक्षण दिया गया। प्रताप सिंह ने बताया कि वे स्वयं के खर्चे से विद्यालय के लिए पारंपरिक वाद्य यंत्र लाए और बच्चों को अवकाश के दिनों में इन वाद्य यंत्रों को बजाने का प्रशिक्षण दिया।

शुक्रवार से विद्यालय में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ प्रात: वंदना और समूह गान शुरू हो गया। बताया गया कि जिले में उनका विद्यालय ऐसा पहला विद्यालय है, जहां यह कार्य शुरू हुआ। बता दें कि शिक्षक प्रताप सिंह पिछले कई वर्षों से पारपंरिक वाद्य यंत्रों के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण और जल संरक्षण में जुटे हुए हैं।

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