उत्तराखंड

191 साल पुराना कुआं बुझा रहा प्यास..

191 साल पुराना कुआं बुझा रहा प्यास..

समुद्र तल से 7000 फीट की ऊंचाई पर हैं ये कुआं..

उत्तराखंड: पहाड़ों पर कुआं बनाना बेहद श्रमसाध्य और खर्चीला है। अगर बन भी जाए तो इससे लगातार पानी मिलने की गारंटी नहीं है। क्योंकि पहाड़ में भूजल तो बहुत गहराई पर मिलता है। लेकिन हैरत की बात यह है कि पहाड़ों की रानी मसूरी के हाथी पांव क्षेत्र में समुद्र तल से 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित एक कुआं 191 साल बाद भी लोगों की प्यास बुझा रहा है। इस कुएं का निर्माण 1829 में किया गया था।

 

अंग्रेजों की प्यास बुझाने के बाद अब इस कुएं से स्थानीय लोग पानी भर रहे हैं। माना जाता है कि मसूरी के हर चौक और गली में अतीत का गौरवशाली इतिहास छुपा है। इसी का एक नमूना मसूरी शहर से करीब पांच किलोमीटर दूर पार्क स्टेट में 7000 फीट की उंचाई पर स्थित यह कुआं है। कहा जाता है कि जब अंग्रेज इस क्षेत्र में आए तो हाथी पांव क्षेत्र में कहीं भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं थी।

 

इस समस्या को देखते हुए 1829 में तत्कालीन अंग्रेज जनरल विश ने इस कुंए का निर्माण कराया। भारत के सर्वेयर जनरल जार्ज एवरेस्ट ने भी इस कुएं के पानी का इस्तेमाल किया। सर जार्ज की प्रयोगशाला इसी क्षेत्र में थी। उन्होंने देश-दुनिया की ऊंची चोटियों का सर्वे भी यहीं से किया। हाथी पांव निवासी 83 वर्षीय रुप सिंह कठैत कहते हैं कि अंग्रेजों के जमाने से लोग कुएं के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

 

कठैत कहते हैं कि पहाड़ में इतनी ऊंचाई पर कुएं बहुत कम देखने को मिलते हैं। समय के साथ अब कुएं में पानी भी कम हो गया है। उन्होंने कहा कि अगर कुएं का रखरखाव सही से हो तो सदियों तक यह ऐसे ही लोगों की प्यास बुझा सकता है। मान्यता है कि इस कुएं में पीछे मुड़कर सिक्का डालने से मनोकामना पूरी होती है। रूप सिंह कठैत ने बताया कि वह छोटी उम्र से इसे देखते आ रहे हैं।  आज भी लोग उनकी दुकान से कुएं में डालने के लिए सिक्के लेकर जाते हैं।

 

वहीं, मसूरी के अंग्रेजी लेखक गणेश सैली भी इस बात का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि पुरानी मान्यता है कि कुएं में कोई अंगूठी या सिक्का डालने से मनोकामना पूरी होती है। आज भी इस कुएं में लोग पीछे मुड़कर सिक्का डालते हैं। इससे कुएं का नाम विशिंग वेल भी पड़ गया है।

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