उत्तराखंड

पहाड़ के उन माँझियों को सलाम, चट्टान काटकर बना दी सड़क

तंत्र को दिखाया आईना, आजादी के 70 साल बाद सडक से जुड़ा गांव

संजय चौहान
कुछ साल पहले आई एक हिंदी फिल्म द माउन्टेन मांझी ने दुनिया को दिखाया था की किस प्रकार बुलंद हौसलों के बलबूते अकेले ही पहाड़ को काटकर सड़क बनाई जा सकती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया सीमांत जनपद चमोली के दशोली ब्लाक के बंड पट्टी के रैतोली गांव के ग्रामीणों ने। जिन्होंने बुलंद हौसलों से महज 15 दिन में पहाड़ को काटकर sसड़क बना डाली और अपने गांव को सडक से जोड़ दिया। गांव में सडक पहुँचने के बाद ग्रामीणों में ख़ुशी का ठिकाना नहीं हैं। और हो भी क्यों नहीं आखिर आजादी के 70 साल बाद गांव सडक से जो जुड़ गया है।

दरअसल, रैतोली गांव के लोग लम्बे समय से गांव को सडक से जोड़ने की मांग कर रहे थे। ग्रामीणों ने तंत्र से लेकर नीति नियंताओं से इस संदर्भ में गुहार लगाईं। लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। आस पड़ोस के सभी गांव सडक से जुड गये थे।आखिरकार अंत में थक हारकर गांव वालों ने खुद ही गांव को सडक से जोड़ने का जिम्मा अपनें हाथों में लिया। इसके लिए गांव वालों ने गांव में सामूहिक बैठक की। गांव के 69 परिवारों ने अपने अपने तरफ से धनराशी एकत्रित की। कुल 69 हजार की धनराशी एकत्रित हुई। जिसके बाद जेसीबी और ग्रामीणों के श्रमदान से पहाड़ को काटकर महज 15 दिनों में 800 मीटर सडक तैयार कर दी। जबकि इतनी सडक के लिए विभाग को 50 लाख रूपये चाहिए होते हैं।

वास्तव में बरसों से सडक की आस लगाए ग्रामीणों की उम्मीदें टूटती जा रही थी। ऐसे में उन्होंने अपना हौंसला नहीं खोया और जिद और जज्बे से खुद सडक बनाने का बीड़ा अपने हाथों में लिया। साथ ही तंत्र को आईना भी दिखाया की यदि दृढ इच्छाशक्ति हो तो पहाड़ को भी काटकर सपनों को हकीकत में बदला जा सकता है। साथ ही विकास की बात करने वाले नीति नियंताओं के जुमलों का जवाब भी दिया है। ग्रामीणों के इस अनुकरणीय पहल की चारों और भूरी भूरी प्रशंसा हो रही है।

आपको बताते चलें की इसी तरह से द माउन्टेन मांझी फिल्म में भी बुलंद हौंसले वाले दशरथ मांझी की कहानी को जीवंत किया गया था। दशरथ मांझी जो बिहार में गया के करीब गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे। इनकी शादी फाल्गुनी देवी हुई थी। एक दिन अपने पति के लिए खाना ले जाते समय उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। अगर फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद वो बच जाती। यह बात उनके मन में घर कर गई। उन्होनें केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों के परीश्रम के बाद, दशरथ की बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 किलोमीटर से 15 किलोमीटर कर दिया।

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