देश/ विदेश

नक्सली हमले में पैर खो चुके अफसर ने निभाया वादा, अब दुनिया से जुड़ सकेंगी सुकमा की आदिवासी छात्राएं..

नक्सली हमले में पैर खो चुके अफसर ने निभाया वादा, अब दुनिया से जुड़ सकेंगी सुकमा की आदिवासी छात्राएं..

नक्सली हमले में पैर खो चुके अफसर ने निभाया वादा, अब दुनिया से जुड़ सकेंगी सुकमा की आदिवासी छात्राएं..

 

देश – विदेश  :  ‘सीआरपीएफ कोबरा’ 205 के सहायक कमांडेंट वैभव विभोर, फरवरी में नक्सलियों के आईईडी हमले में बुरी तरह जख्मी हो गए थे। सहायक कमांडेंट विभोर ने अपनी दोनों टांगें खो दीं। एक हाथ की दो अंगुलियां भी काटनी पड़ीं…

ये कहानी है देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल, सीआरपीएफ के जांबाज ‘सहायक कमांडेंट’ वीर ‘विभोर’ की। तीन साल पहले वे नक्सलियों का गढ़ कहे जाने वाले ‘सुकमा’ में तैनात थे। ड्यूटी के दौरान विभोर की मुलाकात रामाराम के गांव तेलावर्ति स्थित कन्या आश्रम में छात्राओं से हुई। उन्होंने पूछा, क्या वे उनके लिए कुछ कर सकते हैं। बालिकाओं ने कहा, उनके स्कूल में टीवी नहीं है। उन्हें देश-दुनिया की खबर नहीं रहती। इसके बाद विभोर का तबादला हो गया। इस साल फरवरी में गया, बिहार में नक्सलियों के आईईडी हमले में विभोर बुरी तरह जख्मी हो गए। उनके दोनों पांव, शरीर से अलग करने पड़े। इतना कुछ होने पर भी विभोर अपना वादा नहीं भूले। अब उन्होंने आजादी के अमृत महोत्सव में रक्षाबंधन के पावन अवसर पर स्कूल को टीवी और डीटीएच मुहैया करा दिया। आदिवासी बालिकाओं और स्कूल के स्टाफ ने सीआरपीएफ के ग्राउंड कमांडर वीर विभोर को ‘थैंक्यू’ कहा है।

‘सीआरपीएफ कोबरा’ 205 के सहायक कमांडेंट वैभव विभोर, फरवरी में नक्सलियों के आईईडी हमले में बुरी तरह जख्मी हो गए थे। औरंगाबाद ‘बिहार’ के मदनपुर थाना क्षेत्र में उन्होंने नक्सलियों को उनकी मांद में घुस कर ललकारा था। विभोर के अलावा हवलदार सुरेंद्र कुमार भी घायल हुए थे। जिस वक्त जंगल में सीआरपीएफ का ‘ऑपरेशन’ चल रहा था, वहां आसपास के किसी भी बेस पर हेलीकॉप्टर मौजूद नहीं था। ‘गया’ तक पहुंचने के लिए घायलों को एंबुलेंस में चार घंटे का सफर करना पड़ा। जब ये एंबुलेंस गया पहुंची, तो रात को हेलीकॉप्टर उड़ाने की मंजूरी नहीं मिली। ऐसे में घायलों को 19 घंटे बाद दिल्ली एम्स में लाया गया। नतीजा, सहायक कमांडेंट विभोर ने अपनी दोनों टांगें खो दीं। एक हाथ की दो अंगुलियां भी काटनी पड़ीं।

इतने बड़े हादसे के बाद भी विभोर को अपना वादा याद रहा। उन्होंने रक्षाबंधन पर अपनी फर्स्ट यानी सेकंड बटालियन के तहत आने वाले रामाराम के गांव तेलावर्ति के कन्या आश्रम स्कूल में खुद के पैसे से एक टीवी और डीटीएच लगवा दिया है। हालांकि वे अपना यह वादा पहले ही पूरा कर देते, लेकिन बीच में कोरोना संक्रमण आ गया। तब उनका तबादला भी कोबरा 205 ‘गया’ में हो चुका था। विभोर ने आदिवासी बालिकाओं के जीवन और उनकी पढ़ाई लिखाई को बहुत करीब से समझा। जब वे बालिकाओं से उनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछते तो उनकी एक ही शिकायत रहती थी कि उन्हें देश दुनिया के बारे में कुछ नहीं मालूम। कहां खेल में कौन जीत रहा है, विज्ञान के क्या आविष्कार हो रहे हैं। बालिकाओं की यह पीड़ा, विभोर के मन को छू गई। अब उन्होंने अपना वही वादा पूरा कर दिया है। कन्या आश्रम स्कूल की छात्राएं एवं अध्यापक बहुत खुश हैं। इन सभी का कहना है कि अब जंगल में स्थित इस स्कूल की बालिकाएं, बाहरी दुनिया से संपर्क कर सकेंगी। ये कदम उनके करियर में मील का पत्थर साबित होगा।

 

 

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top