उत्तराखंड

एक सरकारी मास्टर संवार रहा सैकड़ों यतीम बच्चों की किस्मत

देहरादून का पूर्व माध्यामिक स्कूल बना मिसाल
250 यतीम बच्चों का रेजीडेंशियल स्कूल

गुणानंद जखमोला

देहरादून। देहरादून के राजपुर रोड स्थित है राजकीय पूर्व माध्यामिक विद्यालय। कभी यह स्कूल खंडहरनुमा बन चुका था और यहां पढ़ने वाले बच्चों की संख्या दस से भी कम थी। लेकिन आज इस स्कूल में 250 से भी अधिक छात्र-छात्राएं न सिर्फ शिक्षा हासिल कर रहे हैं बल्कि विभिन्न गतिविधियों भी बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। यहां बच्चों को निशुल्क रहने-खाने और पढ़ने की व्यवस्था है। पर ये व्यवस्था सरकारी नहीं है बल्कि यहां के प्रधानाचार्य के प्रयासों से संभव है। यहां पढ़ने वाले बच्चे स्लम एरिया के अलावा प्रदेश भर से हैं। ये सभी बच्चे या तो सिंगल पेंरंट्स के हैं या इनके अभिभावक ही नहीं हैं।

नौनिहालों के जीवन में रंग भरने और उन्हें स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर करने का श्रेय जाता है यहां के प्रधानाचार्य हुकुम सिंह उनियाल को। प्रधानाचार्य उनियाल के अनुसार जब उन्होंने इस स्कूल का चार्ज लिया तो यहां दस बच्चे थे। वह स्लम गये और वहां से बच्चों के अभिभावकों को बच्चे पढ़ाने के लिए प्रेरित किया। चूंकि अभिभावकों को किताबों और खाने की चिन्ता थी तो उनियाल ने उन्हें भरोसा दिलाया कि बच्चों को पढ़ाई के साथ- साथ कपड़े और भोजन भी मिलेगा। उनियाल बताते हैं कि उस दौर में मिड-डे मील की व्यवस्था भी नहीं थी, लेकिन सामाजिक सहयोग मिला और बच्चों को भोजन , किताबें और पढ़ाई का सामान मिलने लगा।

इसके बाद समस्या आई कि कई बच्चों के अभिभावक ही नहीं थे, तो मन में विचार आया कि स्कूल में हाॅस्टल भी हो। उनियाल बतातें हैं कि दर-दर की ठोकरें खाई। तत्कालीन विधायक से भी मिले कि कम से कम विधायक निधि से ही कुछ मदद कर दें, लेकिन विधायक ने उन्हें बैरंग लौटा दिया। कहते हैं कि जहां चाह-वहां राह। कुछ सामाजिक संस्थाओं और लोगों ने उनकी मदद की और यह स्कूल हाॅस्टल भी तैयार हो गया। स्कूल की ख्याति बढ़ी तो यहां प्रदेश भर से यतीम और सिंगल पेरेंट्स के बच्चे आने लगे। मददगार भी आगे आए।

आईएमए, रोटरी क्लब, आसरा ट्रस्ट व अन्य लोगों ने मदद की और अब यहां 75 लड़कियां भी शिक्षा ले रही हैं। लड़के और लड़कियों के लिए अलग हाॅस्टल हैं। आसरा ट्रस्ट शाम को स्लम व अन्य बच्चों को पढ़ाता है तो यहां योग व संगीत की शिक्षा भी चलती है। हाल में स्कूल के बच्चों ने साहित्यकार संजय खाती की कहानी पिंकी का साबुन पर बनी बाल फिल्म में भी काम किया। स्कूल में सरकार ने पांचवीं तक की व्यवस्था नहीं की है। पांचवीं तक शिक्षा व शिक्षकों के वेतन की व्यवस्था प्रधानाचार्य उनियाल ही कर रहे हैं। उनके अनुसार सामाजिक मदद के बिना यह संभव नहीं था। बच्चे पढ़-लिख जाएं यही उनका प्रयास है।

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