क्या BJP कोंग्रेश को दलगद राजनीति से ऊपरउठ कर क्षेत्रीय लोगों के साथ खड़ा नही रहना चाहिए.?
कौन है जो दोषी डॉ ओर 108 कर्मचारियों को बचाने के लिए एडिचोटी का जोर लगा रहा है.?
क्यों रिखणीखाल तहसिलपरिसर में सिर्फ कोंग्रेस को श्रद्धांजलि देने की अनुमति मिली और स्वाति के परिवार वालों को नही.?
कौन है जिस ने रिखणीखाल के समूचे मुद्दों का केंद्रीकरण अपने हाथ में रखा है.?
कौन है जिस के निर्देश पर रिखणीखाल का सारा तंत्र घूमता है.?
उत्तराखंड : बहुचर्चित रिखणीखाल बएला गाँव की स्वाति ध्यानी व उन के नवजात शिशु की मौत के मामले में जहां समूचा उत्तराखण्ड समाज एकत्रित हो गया वहीं रिखणीखाल में ब्लॉक कोंग्रेस BJP नदारत रहे। प्रदेशभर में कोंग्रेस ने मृतक को श्रद्धांजलि दी और सरकार से निष्पक्ष जांच की मांग किया। वहीं रिखणीखाल में कोंग्रेसी गुनहगार को बचाने की कोई कोरकसर नही छोड़ रही है। सायद यही वजह रही कि श्रद्धांजलि हेतु तहसिल परिसर में कोंग्रेस को अनुमति मिली जब कि स्वाति ध्यानी के परिवाद वालों को अनुमति नही मिली बावजूद इस के परिवार वालों ने सामजिक संगठनों के साथ जबरन धरना दिया और श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद तहसीलदार को ज्ञापन सौंपा।
कोंग्रेस हो या BJP दोनों राष्ट्रीय पार्टी के पदाधिकारी नही चाहते कि क्षेत्र में विकास हो दोनों पार्टियों में बैठे घागों का आज असली चेहरा सामने आया। रिखणीखाल में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में बिना परिवार को साथ लिए जहाँ कोंग्रेसी जनप्रतिनिधि तहसील परिसर में मोमबत्तियां जला कर खानापूर्ति करने में कामयाब हुई वहीं क्षेत्र के समाजसेवी आम लोग परिवार के साथ खड़े दिखे।
यहां श्रद्धांजलि भी 2 गुटों में दी गई। कोंग्रेसी यहां भी अपना वर्चस्ववादी सोच लेकर पहुचें थे। उपजिलाधिकारी को कोंग्रेसी जनप्रतिनिधियों द्वारा जो पत्र दिया गया उस पर किसी भी व्यक्ति के दस्तखत नही थे। न साथ में कोई पीड़ित परिवार का सदस्य मौजूद रहा।
सामाजिक लोगों व पारिवारिक लोगों ने उपजिलाधिकारी को 50 सदस्यों के सदतख्त के साथ 1 बजे पत्र सौंपा तो राष्ट्रीय पार्टी कोंग्रेस ने 12 बजे पत्र सौंपा। अन्य कोई भी राजनीतिक दल इस मामले में मुहं में दही जमाकर बैठा है। क्या कभी BJP समर्थकों पर ऐसी आपत्ति नही आसक्ति है क्या यह हॉस्पिटल सिर्फ आम लोगों के लिए ही है पार्टी पदाधिकारियों के लिए कोटद्वार देहरादून ही है।
सायद इसी लिए आज हॉस्पिटल के यह हाल है सम्पन्न प्रभुपाल पार्टियों का पदाधिकारियों के लिए क्षेत्र सिर्फ कमाई का जरिया है। जब उन के परिवार शहरों में रहते है तो वे क्यों रिखणीखाल के जनसरोकार मुद्दों में शिरकत करेंगे। उन्हें क्या जरूरत कि वे इतने संवेदनशील मुद्दे पर अपनी दलगद राजनीतिक त्यागे।
रिखणीखाल में विपक्ष इस मालमे में 10 वे दिन हिस्सा लेने पहुचा अन्यथा घटना के दिन से विपक्ष चुप्पी सादे हुए था। विपक्ष भी आज 2 खेमों में बेंट चुका है। कोंग्रेसी अपने-अपने गुट बनाकर इस मामले का विरोध कर रहे है।
रिखणीखाल में कोंग्रेसी का शीर्ष नेतृत्व खुद अपने मकसद से भटका हुआ है जो न क्षेत्र को न पार्टी को मजबूती दे रहा है। धड़ों में बंटे राजनीतिक व्यक्ति समाज के मुद्दों को क्या उठाएगी यह सोचनीय विषय है।
इतने बड़े मामले में भी इन को राजनीति करनी है जब कि उत्तराखण्ड की हर राजनीतिक पार्टी समाजिक अंगठन आम नागरिक इस मुद्दे पर सरकार को घेरने में कामयाब रही। कोंग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दिल्ली अध्यक्ष व उत्तराखण्ड के समस्त ब्लॉक प्रभारी इस घटना को लेकर सड़कों पर उतरी थी। अकेले रिखणीखाल कांग्रेस कमेटी मुद्दे को रफादफा करने पर लगी हुई थी।
देवेश आदमी