उत्तराखंड

पौड़ी जिले के इन गुरु जी ने की मिशाल कायम , घर को बनाया गुरुकुल

पौड़ी जिले के मंझेली गांव के 65 वर्षीय सेवानिवृत्त गुरु जी ने अपने सेवानिृत्त के बाद अपने घर को ही गुरुकुल में बदल दिया आज एक ओर शिक्षा जहा व्यापार बन गई व्ही गुरु जी निशुल्क शिक्षा दे रहे है , वह अपने गांव के करीब एक दर्जन बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं।

उत्तराखंड : पौड़ी जिले के इन गुरु जी ने की मिशाल कायम न किसी सम्मान की चाह और न किसी मंच के मोहताज। बस नेक मंशा है तो बच्चों की बुनियादी शिक्षा को मजबूत करना। इसी मुहिम में जुटे हैं मंझेली गांव के 65 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक सुरेंद्र सिंह। सेवा में रहे तो सरस्वती के आंगन को सजाते रहे और सेवानिवृत हुए तो अपने घर को ही पाठशाला बना दिया। मौजूदा समय में वह अपने गांव के करीब एक दर्जन बच्चों को मुफ्त शिक्षा और संस्कार की सीख देने की मुहिम में जुटे हुए हैं।

मुख्यालय पौड़ी से करीब 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है कोट ब्लॉक का मंझेली गांव। यहां के सेवानिवृत्त शिक्षक सुरेंद्र सिंह नेगी पिछले पांच साल से गांव के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने में जुटे हुए हैं। खास बात यह है कि इसके लिए कोई और स्थान नहीं, बल्कि वह अपने घर में ही बच्चों को पढ़ाते हैं। उन्होंने अपने घर में बकायदा एक कक्ष को सरस्वती के आंगन की तरह सजाया हुआ है। रोजाना शाम को इसी कक्ष में वह गांव के बच्चों को संस्कारवान बनाने की सीख देते हैं। शिक्षाविद् सुरेंद्र सिंह नेगी कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा खराब नहीं है। उसे अपने कौशल और विवेक से और भी रोचक बनाया जा सकता है। लेकिन, मौजूदा दौर में अभिभावक अपने पाल्यों को निजी स्कूलों में बेहतर शिक्षा दिलाने का सपना संजोने में जुटे हैं जबकि दूर गांव में एक सरकारी स्कूल से सेवानिवृत हुआ शिक्षक उसी सरकारी शिक्षा के बलबूते बच्चों का भविष्य संवारने की ललक पाले दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। शायद यही वजह है कि आज भी क्षेत्र में सारे लोग सेवानिवृत होने के बाद भी शिक्षक को गुरुजी के नाम से संबोधित करते हैं।

स्वच्छता की जगाई थी अलख

शिक्षाविद् सुरेंद्र सिंह नेगी दिसंबर 2013 में राजकीय प्राथमिक विद्यालय अठूल से बतौर प्रधानाध्यापक सेवानिवृत हुए। उनका कार्यकाल इस स्कूल के लिए संजीवनी के समान रहा। स्कूल का नजारा ऐसा कि चारों तरफ फुलवारी और स्वच्छ वातावरण सरस्वती के आंगन में चार चांद लगाने जैसा था। खुद क्षेत्र के लोग उनकी इस पहल के कायल भी हुए। खास बात यह है कि स्कूल में कोई भी संसाधन की कमी हो बजाय तंत्र का मुंह ताकने के शिक्षक अपनी सैलरी से ही स्कूल को सजाने में व्यय करते थे।

मुफ्त पढ़ाने की जताई थी इच्छा

वर्ष 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद शिक्षक ने घर में बैठे रहने के बजाय किसी सरकारी स्कूल में बच्चों को मुफ्त पढ़ाने की योजना बनाई। इसके लिए उन्होंने शिक्षा विभाग के सामने इच्छा भी जताई। लिखित रुप में अनुमति मिलना संभव न हुआ। फिर उन्होंने गांव के बच्चों को अपने ही घर में मुफ्त पढ़ाने की कार्ययोजना बनाई और इसी मुहिम में जुट हुए हैं। सुरेंद्र सिंह (शिक्षाविद्, ग्राम मंझेली, कोट, पौड़ी गढ़वाल) का कहना है कि बच्चों में शिक्षा की बुनियाद बचपन से ही मजबूत होनी चाहिए। मैं जब सेवारत था, तब भी इसी के अनुरूप कार्य करता चला आया। अब सेवानिवृत्त हो गया हूं, तो घर में ही गांव के बच्चों को मुफ्त पढ़ाता हूं। उन्हें संस्कार की सीख भी देने का प्रयास करता हूं। देखता हूं आगे कहां तक इस मुहिम को चला पाता हूं।

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