उत्तराखंड

चौरास पुल की धींगामुश्ती

इन्द्रेश मैखुरी
बीते दो दिनों से श्रीनगर में चौरास पुल को लेकर जो घटनाक्रम हुआ,वह अफसोसजनक है.अगर इस पूरे मामले को गहराई से देखें तो उत्तराखंड सरकार की रीति-नीति ने ऐसे हालात पैदा हुए,जिसके चलते यह घटना हुई.

क्या आपको लग रहा है कि मैं पी.डब्ल्यू.डी. के अधिशासी अभियंता सुरेश तोमर और अन्य के साथ हुई मारपीट को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा हूँ ? जी नहीं,बिलकुल नहीं.इस तरह की कोई घटना,किसी रूप में स्वीकार्य नहीं हो सकती.यह छात्र राजनीति का विकृत मॉडल है जो अपनी जायज-नाजायज मांगों को गाली-गलौच और मारपीट के जरिये मनवाना चाहता है.विश्वविद्यालय पढ़े-लिखे लोगों की जगह है.वहां राजनीति करने वालों के पास इतना बौद्धिक कौशल तो होना ही चाहिए कि वे तार्किक रूप से अपनी बात कह पायें.यदि तर्क के जरिये बात कहने का कौशल छात्र राजनीति के पास नहीं है तो यह उनकी नेतृत्व क्षमता और विश्वविद्यालय के स्तर दोनों पर सवाल खड़ा करता है.किसी वाजिब सी दिखने वाली मांग के पक्ष में तर्क करने के बजाय हाथ-पैर चलाने पर उतर आ रहे हैं तो यह संदेह स्वतः ही पैदा होता है कि बात वही है,जो कही जा रही है,या उसके पीछे कोई और मंतव्य है?

मैं गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्र संघ का अध्यक्ष रहा हूँ,इस नाते तो छात्र राजनीति के इस हश्र पर मुझे और भी अफ़सोस होता है.निश्चित तौर पर हमारी धारा की छात्र राजनीति,आज भी अपना स्तर बरक़रार रखे हुए है पर तब भी जो हालात हैं,वे अच्छे तो नहीं कहे जा सकते.छात्र नेता यदि दो लाइन का प्रार्थना पत्र भी ठीक से न लिख पायें तो उनसे तार्किक होने की अपेक्षा करना बेमानी है.मारपीट की घटना के बाद अपनी तरफ से क्रॉस रिपोर्ट करवाने के लिए जो प्रार्थना पत्र,उन्होंने लिखा,उसे देख कर मुझे समझ नहीं आया कि मैं इस पर हंसू या अफ़सोस करूँ.प्रार्थना पत्र,सीधा “श्रीमान कोतवाली” को संबोधित था.कई बार सोचता हूँ कि पूर्व छात्र नेता होने के नाते छात्र नेताओं के लिए-वार्तालाप,ज्ञापन लेखन,प्रशासनिक अधिकारियों के साथ आचार-व्यवहार और बिना गाली-गलौच बात रखने आदि विषयों का कोचिंग कोर्स चलाऊं.
हाई कोर्ट ने परीक्षा को ध्यान में रखते हुए छात्र नेताओं की गिरफ्तारी पर 3 जनवरी तक के लिए रोक लगाई है.जो घटना के वक्त मौके पर मौजूद नहीं थे,उनको किनारे रखते हुए,यह विचारणीय है कि जितनी मासूमियत अदालत में अपने भविष्य का वास्ता देने में दिखाई गयी,उस मासूमियत का आधा भी नित्य प्रति के व्यवहार में होता तो ऐसे तनावपूर्ण हालात ही क्यूँ पैदा होते ?

लेकिन छात्र नेताओं के व्यवहार की आलोचना करते हुए भी मेरी स्पष्ट राय है कि यदि ऐसे हालात पैदा हुए तो उसका सारा जिम्मा-उत्तराखंड सरकार का है.यह उत्तराखंड सरकार की प्रशासनिक अक्षमता और पुल का उद्घाटन करनी की उसकी उतावली ही जिसके चलते,हालात मारपीट और पुल के मुहाने पर धरने तक पहुँच गये.यह कैसा पुल बना रहे हैं,सरकार जिसके पास आगे जोड़ने के लिए सडक ही नहीं है?पुल बना रहे हैं या कार पार्किंग कि लोग पुल तक गाड़ी में आयें और वहां गाड़ी खड़ी कर आगे जाएँ? यह सही बात है कि विश्वविद्यालय के चौरास परिसर को जोड़ने के लिए पुल का निर्माण प्रस्तावित हुआ.लेकिन करोड़ों रूपये के सार्वजनिक धन से निर्मित इस पुल का लाभ, चौरास क्षेत्र की व्यापक आबादी को क्यूँ नहीं मिलना चाहिए? विश्वविद्यालय परिसर के अंदर से वाहनों की आवाजाही न हो,यह तो ठीक बात है.लेकिन इसलिए चौरास क्षेत्र के निवासियों के लिए पुल की कोई उपयोगिता ही न रहे,यह तो तर्कसंगत बात नहीं है.चौरास क्षेत्र के वाशिंदे भी इस पुल का उपयोग कर सकें,इसके लिए वैकल्पिक मार्ग बनाने का जिम्मा किसका है? दरअसल प्राथमिकता के तौर पर तो यही विचार किया जाना चाहिए था कि पुल अधिसंख्य आबादी के लिए कैसे उपयोगी हो.लेकिन शासकीय और प्रशासकीय क्षमता का नमूना देखिये कि पुल बनने वाला है पर कनेक्टिंग रोड नहीं है.यह सरकार की,इस या उस सरकार की, आम कार्यप्रणाली है.

लोग स्कूल की मांग करें तो स्कूल के नाम पर भवन बना दो,शिक्षक मत नियुक्त करो.लोग अस्पताल मांगें,भवन बना दो,डाक्टर मत नियुक्त करो.तुमने स्कूल माँगा- दे तो दिया. तुमने ऐसा कहा ही नहीं कि स्कूल में शिक्षक भी चाहिए ! तुमने अस्पताल माँगा,दे तो दिया अस्पताल.तुमने ऐसा कब कहा कि अस्पताल में डाक्टर भी चाहिए! ऐसा ही चौरास पुल भी है.श्रीनगर और चौरास दोनों जगह लोग पुल बनाये जाने पर जोर देते रहे.लो बना दिया पुल.ऐसा कब कहा कि पुल के साथ कनेक्टिंग रोड भी चाहिए !और इसलिए कनेक्टिंग रोड हो न हो,लेकिन डबल इंजन वाले तुले हैं,इस बात पर कि जनवरी प्रथम सप्ताह में उद्घाटन करेंगे पुल का.डबल इंजन वालों के बयान बहादुर मंत्री धन सिंह रावत जी तो पहले ही कई तिथियाँ घोषित कर चुके हैं-उद्घाटन की.वे सारी तिथियाँ बीते हुए महीनों हो गए.इसलिए अब की बार वे चाहते हैं कि उद्घाटन हो ही जाए.वरना ‘भेड़िया आया-भेड़िया आया’ कि तर्ज पर ‘उद्घाटन हुआ-उद्घाटन हुआ’, हो जाएगा ! यह तो अच्छा है कि आप पुल के उद्घाटन को ‘भेड़िया आया-भेड़िया आया’ नहीं बनाना चाहते,मंत्री जी पर यह तो बताइए कि पुल के साथ कनेक्टिंग रोड क्यूँ नहीं बनाना चाहते ? पुल की इस योजना को दशक भर से ज्यादा हो गया है.उद्घाटन करने को बेताब मुख्यमंत्री महोदय और धन सिंह भाई यह सवाल तो करिए कि भाई यह योजनाकार कौन था,जिसने बिना कनेक्टिंग रोड के पुल की योजना बनायी.2012 में यह पुल पूरा होते-होते धराशायी हुआ और 2013 की आपदा में जब चौरास की सड़क बही तो तब से आजतक किसी ने क्यूँ नहीं सोचा कि पुल बनने पर चौरास के लोग आवाजाही कैसे करेंगे?

सरकार को ये सब सोचने की फुर्सत ही नहीं है.बच्चा मेले में खिलौने लेने के लिए जैसे अड़ता है,वैसे ही सरकार उद्घाटन के लिए उतारू है. बच्चे की तरह पैर पटक रही है, “न,न,न..मैं तो उद्घाटन करूँगा.” नतीजा इंजीनियर पिट रहे हैं,छात्र नेता मुकदमे झेलेंगे और सरकार रिबन काटेगी.लेकिन यह याद रखिये कि आपने कितने रिबन काटे और उद्घाटन किये,इससे कोई सरकार या मंत्री बड़ा नहीं होता.मौका लगता है तो लोग उन शिलापटों को भी चूर-चूर कर देते हैं.चौरास पुल पर भी यह हो चुका है.कल ही इस पुल पर एक प्रशासनिक अफसर ने ठीक ही कहा, “पिछली सरकार वाले रावत जी ने कितने उद्घाटन किये तो,उनका क्या हुआ ?” यह सवाल भी है,सबक भी.पर सत्ता सबक सीखेगी इसमें संदेह है.

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

To Top