नवल ख़ाली
भरतु ने बचपन में बहुत खैरी (परेशानियाँ) खाई थी। पिता बेरोजगार थे, माँ ग्रहणी, दोनों ने घी, दूध, घास, न्यार बेचकर भरतु को पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया था। हालांकि गाँव मे खाने-पीने की कमी सदियों से रही नही। पर बाज़ार की खट्टी-मीठी चीजो पर भला किस का मन नही मचलता, खासकर काले वाले गुलाब जामुन भरतु के फेवरेट थे। पर इतने पैसे नही होते कि छककर खाया जाय। अस्सी के दशक के गरीब का बच्चा था तो थोड़ा समझदार था, जानता था जब खुद करना है तभी खाना है।
ले देकर पहाड़ो में एक ही नौकरी की संभावना थी फौज में भर्ती। बहुत मेहनत की लैंसडौन से लेकर गौचर और उत्तरकाशी से लेकर हरिद्वार, रात में निने पेट (खाली पेट) रहा और एस्क्सिलेंट निकला। फौज की नौकरी आसान न थी, क्योंकि अफसरों का कड़क मिजाज और जी हजूरी चरम पर थी। आज भरतु हवलदार रेंक तक पहुंच गया था।
भरतु छुट्टी लेकर देहरादून पहुंचा तो रेलवे स्टेशन पर भरतु की ब्वारी काला चश्मा पहने स्कूटी में इंतज़ार कर रही थी। भरतु को उस पर बड़ा गर्व था क्योंकि देहरादून आने के बाद चटक हो गयी थी, स्कूटी दौड़ाने से लेकर मोहल्ले में धाक जमाने तक च्वां च्वां हो गयी थी।
भरतु खुश था, उसके बच्चे देहरादून वाली हिंदी टोन में बात करते थे, क्योंकि भरतु ने जब भी हिंदी बोली, सामने वाला फट से पहचानकर बोलता, भाई जी चमोली से हो ? लेट बाल (लाइट जला), मजा गाड़ दिया ( मजा निकाल दिया), भाड़ पड़ गया (उबल गया), एक्चवलता, नेचुरलता आदि शब्द अभी भी भरतु के मुँह से अनायास निकल पड़ते। अस्सी के दशक का गढ़वाली था तो हिंदी बोलते हुए रगर्याट हो जाता था।
भरतु की ब्वारी कहने लगी। अजी सुनो तो, आप आ ही रखे हैं तो आजकल देवता नचाते हैं। अब भरतु के घर मे गाँव के भूमि के भूम्याल इष्ट देव नाचने लगे। पूरा गाँव ही देहरादून में था तो सभी पहुँच गए। भरतु की ब्वारी पर देवता अवतरित हुआ और कहने लगा। पिछली बार मेरी एक ख्वाहिश अधूरी रह गयी थी, जो मांगोगे दोगे ? किसी की मजाल देवता मांगे और न दे ? सभी महिलाओं को भेंटते (गले लगाते हुए) कहने लगा। तुम सब मिलजुलकर अपने ही बीच की नारी को स्थापित करना। तभी मेरी सन्तुष्टि है। होर्त होर्त करते हुए देवता घर्या गया (शांत हो गया )। हमेशा की तरह किसी को समझ नही आया तो पण्डित जी ने ट्रांसलेशन करके बताया कि देवता कह रहे हैं कि अपने ही बिरादरी की नारी को यहां की प्रधानचारी देना अथार्त प्रधान बनाना।
प्रसाद वितरण हुआ, सब लोग बैठे चाय पी रहे थे तो पण्डित जी ने भी भरतु की ब्वारी का पक्ष रखा, क्योंकि वो पण्डित जी को कई बनियों के भी महामृत्युंजय जप के कॉन्ट्रेक्ट दिलाती थी। पण्डित जी बोले-देवता की जुबान औऱ तीर से निकला कमान वापस नही जाते। अब भरतु की ब्वारी राजावाला की निर्विरोध प्रधान अभी से बन गयी थी।
उन्हीं दिनों सरकार का पलायन आयोग बनाने पर केबिनेट का फैसला आया तो भरतु की ब्वारी अगले दिन पलायन पर एक फाइल लेकर सी.एम. कार्यालय पहुंच गई क्योंकि उस बीच वो ग्रामीण मण्डल अध्यक्ष भी बन चुकी थी। आखिर क्या प्लान था भरतु की ब्वारी की पलायन की फाइल में ? भरतु की ब्वारी का प्लान उत्तराखण्ड की दशा को किस दिशा की तरफ ले जाएगा ? जानने के लिए आपको थोड़ा इंतज़ार करना पड़ेगा।