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सोशल मीडिया मन के उदगारों को प्रकट करने का एक सरल माध्यम….

आज के समय में सोशल मीडिया मन के उदगारों को प्रकट करने का एक सरल माध्यम बन गया है। लेकिन बिना तथ्यों के आधारहीन बातों का सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार करना कहीं न कहीं अंततः अपने आपको हास्य का पात्र बनाने से बढ़कर कुछ नहीं है।
अभी विगत कुछ दिन पहले सोशल मीडिया में जिन महिला द्वारा श्री केदारनाथ धाम के बारे में अनर्गल प्रलाप किया गया है वो निश्चित ही मुझे दीन प्रतीत होती हैं क्योंकि श्री केदारनाथ प्रभु के चरणों में पहुंचने पर भी जिसके अन्तर्मन में भक्ति,श्रद्धा,समर्पण और निर्मोह नही जागा तो उससे बड़ा अभागा इस पृथ्वी पर कोई नही है।

जहाँ तक प्रश्न धाम में तीर्थपुरोहितों के महत्व को जानने का है तो सूक्ष्म रूप में सबकी जानकारी हेतु प्रथम wikipedia से बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है।

यहां पड़े – पञ्चकेदार का विवरण निम्न प्रकार है

Kedarnath Teerth Purohit  are the ancient brahmin of this himalaya region of Kedarkhand, these are there from the end of treta yug and start of kaliyug, when pandava came to himalaya for finding moksh, and then went to mahapanth, after their journey to mahapanth, their grandson King Janmejay came to Kedarnth and gave the right of worshiping of Kedarnath temple to these brahmins. These lives near Guptakashi. At the start the total no of these brahmins were 360 numbers.

श्री केदारनाथ जी के तीर्थ पुरोहितों का इतिहास भी उतना ही पुराना है, जितना भगवान शिव का इस केदार भूमि से है। स्कंध पुराण के अनुसार इस केदार क्षेत्र के बारे में स्वयं भगवान देवाधिदेव महादेव माता पार्वती से कहते हैं कि…..

“पुरतानो यथाहं वै तथा स्थान मिदं किल।
यदा सृष्टि क्रियायांच मया वै ब्रह्ममूर्तिना।।
स्थितमत्रैव सततं परब्रह्मजिगीषया।
तदादिकमिदं स्थानं देवानामपि दुर्लभम।।

अर्थात जिस प्रकार मैं सबसे प्राचीन हूँ, उसी प्रकार यह केदार क्षेत्र भी उतना ही प्राचीन है। जब मैं ब्रह्ममूर्ति धारण कर सृष्टि रचना में प्रवृत हुआ तब मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना की थी,जो देवताओं को भी दुर्लभ है अर्थात यह तीर्थ अन्य सभी तीर्थों में सर्वोपरी है।

इसी प्रकार इस धाम के तीर्थ पुरोहित जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे एवं प्रजापति दक्ष के समय से इस केदार क्षेत्र में बाबा केदार की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। सर्व प्रथम यहाँ पर नर-नारायण ने भगवान शिव की तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप उन्होंने देवाधिदेव महादेव से लोक कल्याण हेतु इसी क्षेत्र में वास करने की प्रार्थना की एवं इस तीर्थ की स्थापना की। तत्पश्चात पांडव ब्रह्म हत्या एवं गौत्र हत्या के पाप से विमुक्त होने के लिए भगवान महादेव के दर्शनों हेतु इस क्षेत्र में आये एवं इस स्थान पर एक भभ्य मंदिर का निर्माण किया। उनके महाप्रयाण के पश्चात उनके पौत्र राजा जन्मेजय इस तीर्थ में आये एवं उन्होंने इन पुरोहितों को इस मंदिर की पुरोहिती का अधिकार दिया।

 

तीर्थपुरोहितों के महत्व को जानना हो तो भारतवर्ष के कोने कोने से आने वाले उन तीर्थयात्रियों से पूछिए जो अपने तीर्थपुरोहित के विश्वास के सहारे ही निश्चिन्त होकर श्री केदारनाथ धाम पहुंचते हैं क्योंकि तीर्थपुरोहित ही माइनस तापमान में विकट परिस्थितियों में भी धाम में तीर्थयात्रियों के रहने खाने पीने मार्गदर्शन से लेकर हर व्यवस्था हेतु छह माह तक धाम में तत्पर रहते हैं जहां एक सामान्य मनुष्य के लिए धाम की विकट परिस्थितियों में छह महीने का प्रवास करना तो दूर एक दो दिन का प्रवास ही बेहद दुष्कर कार्य है।सब श्री केदार की ही कृपा है।तीर्थयात्री और तीर्थपुरोहित के बीच का ये स्नेह बंधन ईश्वर का ही साक्षात आशीर्वाद और प्रेरणा है।

यह भी उल्लेख जानकारी हेतु अति आवश्यक है कि केदारनाथ आपदा में धाम में समयानुरूप अपनी जान की परवाह न करते हुए तीर्थयात्रियों का बचाव राहत कार्य एवं जीवित बचे तीर्थयात्रियों की यथासंभव सेवा भी तीर्थपुरोहितों द्वारा ही की गई थी।

आदि काल से अपनी परम्पराओं को हर परिस्थिति में निर्वहन करने हेतु प्रतिबद्ध धाम के सभी तीर्थपुरोहित अपनी प्रशंसा या महत्व के लिए श्री धाम में प्रवास नही करते हैं अपितु श्री केदार प्रभु के आशीर्वाद एवं भक्ति सेवा के भाव से ओत प्रोत होकर निरंतर अपने कर्मपथ पर प्रशस्त हैं।

अतः श्री केदारनाथ जी के चरणों में समर्पित सभी तीर्थ पुरोहितों के प्रति आदर और सम्मान का भाव परिलक्षित होना स्वाभाविक ही होना चाहिए।

जय श्री केदार।

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