उत्तराखंड

आठ सदस्यीय जापानी टीम ने रचा इतिहास, संतोपंत झील पहुंचकर किया हवन..

आठ सदस्यीय जापानी टीम ने रचा इतिहास, संतोपंत झील पहुंचकर किया हवन..

 

 

 

 

 

 

 

 

सतोपंथ झील पहुंचकर आठ सदस्यीय जापानी टीम ने इतिहास रच दिया। कहा जाता है की कोई जल्दी इन जगहों पर कोई ट्रैक नहीं कर पाता क्यूंकि यहाँ ऑक्सीज़न की कमी रहती है। सतोपंथ झील समुद्र तल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। लेकिन ट्रैकर्स के लिए यह पहला मौका है जब कोई दल घोड़ों और खच्चरों को लेकर सतोपंथ पहुंचा है। वहां पहुंचकर इस टीम ने न सिर्फ प्रकृति को करीब से देखा, बल्कि वहां पहुँचकर हवन भी किया।

 

उत्तराखंड: सतोपंथ झील पहुंचकर आठ सदस्यीय जापानी टीम ने इतिहास रच दिया। कहा जाता है की कोई जल्दी इन जगहों पर कोई ट्रैक नहीं कर पाता क्यूंकि यहाँ ऑक्सीज़न की कमी रहती है। सतोपंथ झील समुद्र तल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। लेकिन ट्रैकर्स के लिए यह पहला मौका है जब कोई दल घोड़ों और खच्चरों को लेकर सतोपंथ पहुंचा है। वहां पहुंचकर इस टीम ने न सिर्फ प्रकृति को करीब से देखा, बल्कि वहां पहुँचकर हवन भी किया। हैरानी की बात यह है कि इस टीम के साथ कोई कुली नहीं था। स्थानीय निवासियों सहित टूर ऑपरेटरों का दावा है कि आज से पहले इस मार्ग पर कोई भी पर्यटक या तीर्थयात्री दल घोड़े-खच्चर के साथ नहीं गया था। जापानी ट्रेकर हीरोका कहना हैं कि उसने दुनिया की यात्रा की है, लेकिन यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां हमें दिव्य महसूस हुआ और आध्यात्मिक शांति मिली।

बद्रीनाथ धाम से सतोपंथ की यात्रा दुर्गम मानी जाती है। इस ट्रैक पर एक भी गांव नहीं है। बद्रीनाथ धाम से आगे माणा गांव से 24 किमी पैदल चलकर निर्जन स्थानों से गुजरने वाली इस यात्रा का धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्व है। इस यात्रा में सतोपंथ तीन चरणों में पहुंचते हैं, जबकि लौटने में दो दिन लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी रास्ते से पांडव स्वर्ग में गए थे। स्वर्गारोहनी ग्लेशियर सतोपंथ से तीन किलोमीटर आगे है। धार्मिक मान्यता के अनुसार आज भी इस ग्लेशियर में एक सीढ़ी देखी जा सकती है, जिसे स्वर्गरोहनी मार्ग कहा जाता है। संतोपंत झील के पास अलकापुरी ग्लेशियर है जहाँ से अलकनंदा निकलती है। वही इन दुर्गम रास्तों में पहली बार खच्चरों का इस्तेमाल किया गया है।

ग्रांट एडवेंचर जोशीमठ के सीईओ राजेंद्र सिंह मार्तोलिया का कहना हैं कि कोलकाता के सात और जापान के आठ पर्यटकों के संयुक्त ट्रेकिंग अभियान में इस टीम ने पांच दिनों में इस ट्रैक को सफलतापूर्वक पूरा किया। इस अभियान दल के मार्गदर्शक दिनेश सिंह राणा ने कहा कि यह पहला मौका है जब इस ट्रैक पर कुली की जगह घोड़े का इस्तेमाल किया गया है। सतोपंथ के बारे में मान्यता है कि त्रिकोणीय सरोवर होने के कारण ब्रह्मा, विष्णु और महेश यहां स्नान करते हैं। इस झील के किनारे जापानी पर्यटकों ने हवन भी किया। कोविड के बाद पहली विदेशी टीम इस ट्रैक पर गई है। पर्यटकों ने बसुधारा, चक्रतीर्थ और धार्मिक महत्व के अन्य स्थानों का भी दौरा किया।

 

 

 

 

 

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