उत्तराखंड

प्रोजेक्ट घट्ट पर फिर वायरल हो रहे आशीष डंगवाल…

घराट को नया रूप देने की कोशिश आशीष डंगवाल…

लुप्त होती पहाड़ की लाइफ लाइन को जिंदा रखने की कोशिश

स्कूली बच्चों को प्रैक्टिकली समजाया  घराट की तकनीक 

लुप्त हो रही घराट संस्कृति को सहेजने का एक छोटा सा प्रयास प्रोजेक्ट घट्ट….

मेरा घट्ट बुलाए रे..

कुलदीप बगवाड़ी

देहरादून: देवभूमि के घराट हमारी पारंपरिक पहचान के साथ ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकते है । इसके तहत घराट हब को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित कर बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित किया जा सकता है,  पर आज घराट हमारी पारंपरिक संस्कृति लुप्त होने की कगार में है,  घराट संस्कृति को सहेजने का एक छोटा सा प्रयास अध्यापक आशीष डंगवाल और उनके बच्चों द्वारा किया गया है  आशीष वही अध्यापक है जिन्हे कुछ समय पहले विदा करने के लिए  उत्तरकाशी के भंकोली पूरा गांव आंखों में आंसू लिए थे…

आशीष डंगवाल ने घराट संस्कृति को सहेजने के लिए अपने स्कूली बच्चों के साथ पास के किसी गधेरे में पुराने घराट को नया रूप दिया,और इसको प्रोजेक्ट घट्ट नाम दिया..  लोग आज पौष्टिक तत्वों से भरपूर घराट के आटे के स्वाद को पूरी तरह से भूल चुके हैं,  जिसके चलते घराट चलाने वालों को अपने परिवार का पेट पालने के लिए घराट संस्कृति को छोड़कर अन्य व्यवसाय करना पड़ रहा,पुरातन समय में आटा पीसने के लिए मशीनें आदि नहीं होती थी इस विशेष विधि की खोज की गई थी…

श‍िक्षा व्‍यवस्‍था में अध्यापको द्वारा प्रैक्टिकली ज्ञान देना और साथ ही पहाड़ की पौराणिक संस्कृति को जिन्दा रखना सच्च में काबिलियत कारी प्रयास है…

क्या होता है घराट (watermill)

 

घराट (watermill) उत्तराखण्ड में परम्परागत रूप से सदियों से प्रयोग में लाई जाने वाली एक प्रकार की पानी से चलाई जाने वाली गेहूं, मक्का, चावल व अन्य प्रकार के खाद्य पदार्थों को पीसने की मशीन है जिसको पहाड़ी भाषा में ‘घट’ भी ही कहा जाता है। आजकल बिजली द्वारा चलाई जाने वाली आटा-चक्कियों के अधिकाधिक प्रयोग से घराट का प्रचलन बिल्कुल खत्म सा हो गया है। इन पौराणिक धरोहर का प्रयोग सदियों से मानव जाति द्वारा तब से लगातार किया जाता रहा है जब से गाँवों में आटा पीसने की कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं थे। जब सूदूर गांवों में, जहां सड़क-बिजली जैसी सुविधाएं मौजूद नहीं पहुंची थीं, वहां उस दौर में गांव के पास से निकलने वाली सदाबहार नदी, नालों के सहारे आटा पीसने का काम ‘घराट’ के किया जाता था और जो आज भी चल रहा है। घराट एको फ्रेंडली भी होते हैं तथा बिजली से चलने वाली चक्कियों के मुकाबले में इनसे पीसे हुए आटे की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। इनके पीसे हुआ आटा ज्यादा पौष्टिक होता है।

 

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