आर्टिकल

तारे सिर्फ आसमान में नहीं होते : अजय पुन्डीर

लेखक – अजय पुन्डीर

उत्तराखंड: बचपन से ही न जाने हम दादा -दादी , नाना -नानी या अगल बगल से चाँद तारों की कहानियां सुनते आ रहे है। कही कहानियां में हम सुनते आ रहे हैं कि टूटते तारे से जो भी मांगो वह पुरा हो जाता है। यह कहानी किसी आसमान से टूटे तारे की नहीं है और न किसी आसमान में रहने वाले तारे की बल्कि एक ऐसे भले मानुष की है जो अपने नाम के साथ साथ काम से भी जगमगाता है। जो हर दुख में भी खुश रहने की सीख देता है।

बात उन दिनो कि है जब हेमवतीनंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव अपनी चरम सीमा पर था सभी छात्रनेता अपने प्रत्याशियों के लिये वोट अपील करने और वोटरो को लुभाने मे में व्यस्त थे ।

मैं भी (अजय पुन्डीर) BA के फीस काउंटर पर था अचानक एक ख़ुसड से व्यक्ति पर नजर पड़ी जो की मेरी तरफ़ ही आ रहा था , पहली नजर मे देखने पर कालेज का कोई प्राफ़ेसर लग रहा था । वही काली लम्बी पेंट कमर के उपर तक वही सफ़ेद कमीज काले जुते मानो पहली नजर में कोई भी देखे तो प्राफ़ेसर ही समझे ।

हेलो भाई !

मास कमुनिकेशन का शुल्क कहाँ जमा होता है?”,

ये पहले शब्द थे उसके। बात करने पर पता चला कि वह भी एम ए मास कम्युनिकेशन में मेरे ही कक्षा का ही छात्र था.

फ़ीस जमा करने के बाद वह मेरा नम्बर लेकर चला गया । घर जाकर भी मैं यही सोचता रहा कि वह सच में कितने साल का होगा । खैर चुनाव का समय था तो चुनावी व्यस्तता होने के कारण इस बात पर ज्यादा नहीं सोचा पर बात जहन में थी,  एक दो बार कक्षा में बात करने पर पता चला कि वह चमोली का रहने वाला है और नाम है तारा सिंह। बॉर्डर फ़िल्म का तारा सिंह तो नही परन्तु उत्तराखंड के बॉर्डर इलाके के गाँव में रहने वाला तारा सिंह

सेसनल पेपर सर पर थे अचानक फोन कि घन्टी बजी । हेलो भाई मैं तारा बोल रहा हूँ ! भैया मैं चमोली से निकल गया हूँ मेरे पास रहने के लिए कमरा नही है क्या मै आपके कमरे पर रुक सकता हूँ! हा में जवाब देने पर मैंने भी फोन काट दिया ।

दिन के 3 बजे थे अचानक दरवाजे पर एक व्यक्ति था भैया में आ गया इन्ही शब्दो के साथ ही मैं उसे कमरे में ले गया। चाय के साथ बातचीत शुरू हुई तो पता चला तारा जी चमोली जिले के अंतिम गाँव मिलखेत के निवासी थे । उम्र 32 साल शादीसुदा दो बच्चों के पिता ।

एक बालिका जो कक्षा 6 दर्जे में है। वही बालक हिमांशु 4 दर्जे में है। पिताजी कि मृत्यु हो गयी थी जो सेना से सेवानिवृत्ति थे घर मे एक बूढ़ी माँ हैं। पत्नी भी आंगनबाड़ी स्कूल में सेविका है, तारा स्वयं में किसान है जो जैसे तैसे घर का खर्चा चलाते है। सुनने में अजीब तो लगा कि गढ़वाल में जहाँ बच्चा 21 वर्ष का होते ही होटलों में बर्तन धोने चला जाता है । वही तारा घर में खेती करके भी पढ़ने की चाह रखता है सच कहूँ तो उसके लिये मन में उसके लिए और ज्यादा सम्मान का भाव आया। उसके आंखों में अलग सी चमक है मानो एक भुखे को खाने को देख कर आती हो । दिन गुजरते गये दोस्ती भी गहरी होती रही फ़िर एक दिन मै चोरास था दुसरे दिन कमरे पर पहुंचा तो पता चला तारा गाँव जा चुका था मन में तो था कि बिना बताये क्यों पर फ़िर दोबारा तो आयेगा ही यही सोच के बात को जाने दिया..

प्रेक्टिकल का समय आ चुका था तारा फ़िर से कमरे पर आ चुका था पर पता चला कि उसे खबर ही नही थी उसे घर से निकलने के बाद पता चला कि ये सब भी है ।

उसने बताया कि भैया गाँव में नेट कहाँ चलता है ।

यही जवाब था उसका। रोड से 5 किलोमीटर पैदल जाता हूँ कोई बीमार हो तो कन्धे में लाना पड़ता है । कई तो बिना इलाज के मर भी जाते हैं सुन के बुरा तो लगा । सोचा की उत्तराखंड के ज्यादातर गाँव का तो यही हाल है ।

उसका बेटा भी प्रामरी स्कूल में है जहां अध्यापक नहीं हैं ।

जो पैसे वाले थे वो देहरादून चले गये । जो बेचारे गरीब है गाँव में है गाँव की मिट्टी की खुशबू को महँगे परफ्यूम की खुशबू से ज्यादा महत्वपूर्ण समझ जी रहे है। राजनीतिक नेता वो सिर्फ वोट लेने के लिये आते हैे। चीनी मिलती थी गाँव में राशनकार्ड पर वो भी भाजपा सरकार आने पर वह भी नहीं मिल रही। इस बात पर तारा की आँखों का गुस्सा दिखता है। चीनी महज एक बात है जिनकी खरीदने की हैसियत है परंतु जो राहगुजारी में गुजरा कर रहे है उन्हें गुस्सा आता है जब उनके हिस्से से कुछ जाता है। तारा सच मे एक मेहनती किसान है जो एक लाजवाब इंसान भी है बात तो बात में हँसी दिलाता है । उसकी चाल पर लोग हँसते है पर उसकी कोई गलती नही है । उसके लिये ये माहौल बिल्कुल उसके गाँव से अलग है। तारा अकेला तारा नहीं है उसके जैसे न जाने कितने तारा इस उत्तराखंड में गुम है?

हम कब तक चुप्पी साधे रहेंगे हम अपने हको के लिए नही लड़ते।

क्या हम पहाड को बर्बाद होते हुए देखने रहेगे ?

आखिर कब तक हर कोई तारा कि तरह नही होता न जाने कितने लोगो का पलायन हो चुका है गांव के गाँव खाली हो चुके हैं क्यो सरकारे इस तरफ़ ध्यान नही देती? सवाल तो है जवाब नहीं। क्या हम सिर्फ़ वोट देने के लिये पैदा हुये है?

 

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