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नंदा की चिंता-1

नंदा की चिंता Part -1

Uk न्यूज़ नेटवर्क के सभी पाठको को नमस्कारUk न्यूज़ नेटवर्क टीम की यही कोशिश है कि सामाजिक रूप से जागरूक किया जाए और कुरीतियों पर प्रहार किया जाये। इसी कड़ी में महावीर सिंह जगवाण द्वारा रचित ‘नंदा की चिंता’ आपके बीच ला रहे हैं।

महाबीर सिंह जगवाण

मेरा नाम नंदा है ,मै कक्षा तीन मे पढती हूँ,बाबा ने जबसे दादा जी वाले पुराने मकान मे सीमेंट की छत डाली बहुत गर्म होता है,हम अक्सर बाहर आँगन मे सोते हैं एक ओर से दादी और दूसरी ओर से माँ जी ,बीच मे हम तीनों बहिनें,मेरे परिवार मे सबसे अधिक निडर मेरी दादी उसके बाद माँ और फिर मै हूँ।कभी कभी सब सो जाते और मैं आसमाँ के तारों को गिनती हूँ उनसे बतियाती हूँ ,मेरे घर पर एक कुत्ता ,एक बिल्ली,बहुत सारी घैंदुड़ी(गौरय्या)रहती हैं ,हमारी गौशाला है उसमे गाय ,बछिया, बैल हैं।

हमारे घर के सामने खुमानी का बड़ा पेड़ है,आँगन मे फूल मिर्च और काखड़ी(खीरा) और करेले की बेल हैं हम तीनों बहिनें माँ दादी और बाबा बहुत खुश रहते हैं बाबा काम के सिल सिले मे बाहर जाते रहते हैं।पिछली जून की छुट्टियों मे हमारे घर मेरी मौसी की लड़की नैना आई थी वह छठवीं मे पढती है मुझे बहुत बढिया मानती है,हम आपस मे बहुत गप्पें लगाती थी,जब से वह गई है मुझे उसकी याद आती है और सोचती हूँ क्या सच में पहाड़ और मैदान की जिंदगी मे इतना फर्क होता होगा,मै तो समझ नहीं पा रही हूँ ,इसलिये सोचा आप सबसे कहकर मै भी हल्की हो जाऊँगी और मुझे भी सत्य का पता चल जायेगा।

नैना ने कहा बहिन नंदा आपके दादा जी कहाँ गये,मै रोने लगी ,मेरे दादा मुझे प्यार से कहते थे यह हमारी अनमोल नंदा है,इसका विशेष ख्याल रखो,हर बार कहीं भी जाते तो वहाँ से लींची चना लेकर जरूर आते थे यही मेरी सबसे प्रिय मिठाई थी,मेरे दादा इक्कासी वर्ष के थे थोड़ा थोड़ा बीमार रहने लगे थे,गाँव से दूर अस्पताल है वहाँ आने जाने मे डेढ सौ रूपये लगता है,मेरे दादा जी को डाॅक्टर कहते हर हफ्ते अस्पताल आना पड़ेगा और आधी दवाई सरकारी मिलती आधी दवाई उस दुकान से खरीद कर लाते जहाँ डाॅक्टर साहब खाली समय पर सिगरेट पीने आते थे।

हमारे पास धान गेहूँ दाल दूध घीं तो है लेकिन रूपया तो था ही नहीं ,दादा एक महीने मे चार बार के बजाय एक ही बार अस्पताल जाते,क्योंकि दवाई और गाड़ी के किराये को रूपये कम पड़ते थे।धीरे धीरे दादा जी का स्वास्थ्य गिरने लगा और फिर एक दिन मुझे बोला नंदा तू खुश रहना मेरा आर्शीवाद तेरे साथ है,खूब पढाई करना मेरी याद आये तो आसमान के टिमटिमाते तारे देखना और समझना मेरे दादा मुझे देख रहे हैं,और फिर दादा सदा के लिये चले गये,मेरे और नैना की आँखों से आँसू बहने लगे। नैना बोली क्या दादा जी इसलिये अस्पताल नहीं जाते थे उनके पास गाड़ी का किराया नहीं होता था,नंदा मैदान मे सरकारी रोडवेज की बसों मे वृद्ध पुरूष महिलाऔं के लिये निशुल्क यात्रा की ब्यवस्था है,

हमारी स्कूल मे एक दिन वार्षिकोत्सव समारोह में नेता जी आये थे कह रहे थे पूरे उत्तराखंड मे हमने बुजर्गों को आने जाने की सुविधा निशुल्क कर रखी है हर साल सरकार करोड़ों रूपये खर्च करती है,नंदा भावुक हो गई उसने कहा हम भी तो उत्तराखंड के वासी हैं हम पहाड़ों मे रहते हैं इसलिये सरकार हमें सुविधा नहीं देती।काश पहाड़ों मे भी समय समय की रोडवेज बस होती तो मेरे दादा जी आज जिंदा होते।नैना कहती है नंदा क्या तुझे पता है मैदान मे हमारी स्कूल और बड़े काॅलेजो मे पढने वाली लड़कियों को भी स्कूल आना जाना फ्री है,नंदा आश्चर्य ब्यक्त करती है और कहती है मेरी बड़ी दीदी को काॅलेज जाने के लिये हर दिन अस्सी रूपये चाहिये,दूसरी दीदी को ग्यारहवीं मे पढाई के लिये भीअपनी स्कूल जाने के लिये प्रतिदिन चालीस रूपये चाहिये,बाबा के खून पसीने के कमाये रूपये कभी पूरे ही नहीं पड़ते,नैना कहती है इसी लिये तो माँ कहती है पहाड़ पर कोई पूछने वाला नहीं है,वो अच्छा हुवा तेरे बाबा को समय पर सन्नमत्ति आ गई,नंदा भावुक हो जाती और कहती है मुझे सब पता है हम पहाड़ियों की चिंता किसी को भी नहीं।

क्रमश:जारी…

नंदा की चिंता।

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