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पहाड़ के पानी को सहेजने के लिए मनरेगा से हुई ऐसी व्‍यवस्‍था, जिसे देख हर कोई रहा हैरान..

पहाड़ के पानी को सहेजने के लिए मनरेगा से हुई ऐसी व्‍यवस्‍था, जिसे देख हर कोई रहा हैरान..

देश-विदेश: बिहार के गया जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है नीमचक बथानी प्रखंड, सुदूरवर्ती इलाका होने के बाद भी इस प्रखंड मुख्यालय में मनरेगा से कुछ ऐसा सकारात्‍मक कार्य हुआ जिसने दुनिया में मिसाल कायम की है। यह काम हुआ है कि मनरेगा के कार्यक्रम पदाधिकारी नीरज त्रिवेदी की पहल से। जहां पर मनरेगा एवं जल जीवन हरियाली के माध्यम से 95 एकड़ में फैले पहाड़ के पानी को सहेजने की व्‍यवस्‍था की गई है।

 

प्रखंड मुख्यालय से सटे तलाशीन पहाड़ से वर्षा में बहकर आने वाले पानी का अब जाकर समुचित उपयोग किया जाने लगा है। जिससे पहाड़ पर होने वाली वर्षा की एक-एक बूंद उपयोग में आ रही है। दरअसल, पहाड़ से वर्षा का पानी नीचे आता है। उसके लिए 450 फीट लंबे, 3.5 फीट चौड़े और तीन फीट गहरे पक्के जल निकासी सारणी का निर्माण किया गया है। इसके माध्‍यम से पानी को रिचार्ज बोरवेल तक पहुंचाया जाता है। इस वर्षा जल से बोरवेल के माध्यम से भूगर्भ जल को रिचार्ज किया जाता है। लगभग 93 फीट गहरे बोरवेल में प्रतिवर्ष लगभग 45 लाख लीटर वर्षा जल को भूगर्भ में भेजकर भविष्य की विषमताओं को नियंत्रित करने की व्यवस्था की गई है।

रिचार्ज बोरवेल के चारों ओर आवरण के रूप में जल संचयन टंकी का निर्माण कराया गया है क्योंकि इस टंकी के दोनों और भवन है अतः तकनीकी दृष्टिकोण से एक पक्के आवरण का निर्माण करने से अधिक समय तक वर्षा के पानी को संग्रहित किया जा सकता है। रिचार्ज बोरवेल से अधिक पानी होने के बाद मुख्य जल संचयन टंकी के सटे हुए एक पूर्णउपयोग हेतु जल भंडारण टंकी का निर्माण किया गया है। उसमें पानी जाता है। इस टंकी की क्षमता लगभग 500 लीटर की है। तथा जल का निस्पंदन पूर्णरूपेण प्राकृतिक तरीके से किया जाता है।

 

तालाब में किया जाएगा मछली पालन..

इस जल को पीने के अलावा अन्य सभी चीजों के उपयोग में लाया जाता है। उदाहरण स्वरूप शौचालय, सफाई एवं बागवानी में जल देने में इसका उपयोग किया जाता है। प्राकृतिक निष्पादन के लिए मोटे बालू कंकड़ पत्थर चारकोल इत्यादि का उपयोग किया जाता है। इससे भी अधिक पानी हो जाता है तो जल निकासी सारणी के माध्यम से उस पानी को बाहर निकाला जाता है। बाहर एक कच्चा पईन के माध्यम से तालाब में पानी जाता है। तालाब मनरेगा से बनाया गया है। इस तालाब में मछली पालन किया जाएगा। मतस्य विभाग से बात कर ली गई है।

 

इस योजना को बनाने में लगभग एक वर्ष दो माह का समय लगा। इसकी कुल लागत 29 लाख 55 हजार 372 रुपये आई है। इस कार्य को देखने के बाद जिला पदाधिकारी ने मनरेगा कार्यक्रम पदाधिकारी को बधाई दी। उन्होंने बताया कि इस तरह के कार्य बिहार में पहला कार्य किया गया है। जिसमे वर्षा के पानी को प्रयोग में लाया गया है । जिसके बाद बिहार के मुख्यमंत्री ने इस कार्य को लाइव कास्टिंग से देखा।

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