उत्तराखंड के इन तीन शहरों में अब दौड़ेगी मेट्रो नियो, डीपीआर तैयार..
उत्तराखंड: राजधानी देहरादून में पहले मेट्रो, फिर रोपवे की योजना खटाई में पड़ने के बाद अब मेट्रो नियो चलाने की तैयारी पूरी कर ली गई है। इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने तैयार कर ली है। शुक्रवार को विधानसभा के कक्ष 120 में आयोजित शहरी विकास विभाग की समीक्षा बैठक में यूकेएमआरसी के एमडी जितेंद्र त्यागी ने कहा कि नियो मेट्रो की डीपीआर तैयार हो चुकी है। जिस पर 13 अप्रैल को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बोर्ड बैठक होगी, और इसका प्रस्ताव रखा जाएगा। जिसके बाद मेट्रो नियो 2051 तक ट्रैफिक लोड ले सकेगी।
शहरी विकास मंत्री बंशीधर भगत का कहना हैं कि लंबे समय से इस दिशा में केवल सर्वेक्षण आदि के काम चल रहे हैं। इसलिए मेट्रो नियो के काम में तेजी लाई जाए। आपको बता दें कि केंद्र को देहरादून के अलावा जम्मू, श्रीनगर, गोरखपुर, प्रयागराज, राजकोट, कोयम्बटूर, भिवाड़ी, बड़ौदा जैसे शहरों ने मेट्रो नियो के प्रस्ताव भेजे हैं। कैबिनेट मंत्री भगत ने मेट्रो कारपोरेशन के अधिकारियों को विभिन्न स्तर पर होने वाली औपचारिकताएं तेजी से पूर्ण करने के निर्देश दिए, ताकि इस परियोजना का निर्माण कार्य इसी साल से प्रारंभ हो सके।
मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने सरकार के निर्देश पर ऋषिकेश और हरिद्वार के बीच मुंबई की तर्ज पर लोकल ट्रेन चलाने पर काम शुरू कर दिया है। जिसके लिए रेल मंत्रालय से भी बातचीत की जा रही है। यूकेएमआरसी की योजना है कि या तो रेलवे का ट्रैक डबल किया जाए या फिर मेट्रो नियो के लिए अलग ट्रैक तैयार करने के लिए 30 साल के लिए रेलवे की जमीन को लीज पर लिया जाए। सामान्य मेट्रो के मुकाबले मेट्रो नियो को बनाने में काफी कम खर्च आता है।
अभी एक एलिवेटेड मेट्रो को बनाने में प्रति किलोमीटर का खर्च 300-350 करोड़ रुपये आता है। अंडरग्राउंड में यही लागत 600-800 करोड़ रुपये तक पहुंच जाती है। जबकि मेट्रो नियो या मेट्रो लाइट के लिए 200 करोड़ तक का ही खर्च आता है। चूंकि इसमें कम लागत आएगी, इसलिए इसमें यात्रियों को सस्ते सफर की सौगात भी मिलेगी। इसके लिए सड़क से अलग एक डेडिकेटेड कॉरिडोर तैयार किया जाएगा।
क्या है मेट्रो नियो..
1- मेट्रो नियो सिस्टम रेल गाइडेड सिस्टम है, जिसमें रबड़ के टायर वाले इलेक्ट्रिक कोच होंगे।
2- इसमें ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम होगा, स्पीड लिमिट भी नियंत्रण में रहेगी।
3- इसके कोच स्टील या एल्युमिनियम के बने होंगे। इसमें इतना पावर बैकअप होगा कि बिजली जाने पर भी ट्रेन 20 किमी चल सकेगी।
4- सामान्य सड़क के किनारों पर फेंसिंग करके या दीवार बनाकर इसका ट्रैक तैयार किया जा सकेगा।
5- इसमें टिकट का सिस्टम क्यू आर कोड या सामान्य मोबिलिटी कार्ड से होगा।
6- इसके ट्रैक की चौड़ाई आठ मीटर होगी। जहां रुकेगी, वहां 1.1 मीटर का साइड प्लेटफॉर्म होगा। आईसलैंड प्लेटफॉर्म चार मीटर चौड़ाई का होगा।