क्यों वापस लौटाना चाहती हैं शौर्य चक्र
देश-विदेश : जहां पूरे देश में शहीद हुए जवानों को कई तरह की तमाम सुविधाएं सरकार देने की बात करती है, वहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहने वाले शौर्य चक्र विजेता शहीद विवेक सक्सेना का परिवार देश के हुक्मरानों से सपूत की शहादत के बदले मिलने वाले सम्मान के लिए 17 साल बाद भी अधिकारियों और सरकारी विभागों के चक्कर काट रहा हैं।
बीएसएफ के सहायक कमांडेंट विवेक सक्सेना, जो 8 जनवरी 2003 को चंदेल ‘मणिपुर’ में करीब ढाई सौ विद्रोहियों से टक्कर लेते हुए शहीद हो गए थे, उन्हें अदम्य साहस और बहादुरी के लिए भारत सरकार ने शौर्य चक्र से सम्मानित किया था। यह सम्मान, शहीद के पिता फ्लाइट लेफ्टिनेंट रामस्वरूप सक्सेना ने तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद के हाथों प्राप्त किया था। शहीद के परिवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित सम्मान राशि आज तक नहीं मिली।
कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे अपने पत्र में कहा है कि यूपी सरकार ने इस मामले में शहीद अफसर के परिवार का अपमान किया है। यूपी सरकार 17 साल से इस मामले में टालमटोल कर रही है। शहीद की मां कहती हैं कि इन पदकों को रखा देख मुझे बेटे की याद आती रहेगी, लेकिन मैं सेवा के दौरान मिले मेडल एवं शौर्य चक्र सरकार को वापस लौटाना चाहती हूं।
एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में भी इस बात का जिक्र किया है कि शहीद का परिवार 1967 से लखनऊ में स्थाई तौर पर रह रहा है। शहीद विवेक सक्सेना का जन्म और शिक्षा-दीक्षा लखनऊ में हुई थी। शहीद का अंतिम संस्कार भी लखनऊ में हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित सम्मान राशि, जो शहीद परिवार को मिलनी थी, वह फाइल पिछले 17 साल से अधर में लटकी हुई है।
शहीद की मां सावित्री सक्सेना भी कार्यालयों के चक्कर लगाकर थक गई हैं। वे कहती हैं कि मैं अब हिम्मत हार गई हूं। मेरे बेटे को सरकार ने पदक तो दिया, लेकिन साथ ही परिवार को कार्यालयों के चक्कर काटने पर भी मजबूर कर दिया। अब मैं उसके सेवाकाल के सभी पदक सरकार को वापस लौटाना चाहती हूं। एसोसिएशन के महासचिव का कहना है कि शहीद की मां भीख नहीं, बल्कि बेटे ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था, वह उसकी सम्मान राशि की मांग कर रही हैं। वह सम्मान राशि, जिसकी घोषणा यूपी सरकार ने की थी।
अधिकारी कहते हैं कि आप यहां की निवासी नहीं हो इसलिए हम सरकारी मदद नहीं दे सकते, जबकि लखनऊ में हम 1967 से रहे हैं. मेरे बच्चे भी यहीं पैदा हुए. यहीं लखनऊ के केंद्रीय विद्यालय से पढ़े और उसके बाद सर्विस में गए. मेरे शहीद बेटे का मृत शरीर भी यहीं लखनऊ में आया और दाह संस्कार भी यहीं हुआ। उस समय मायावती की सरकार थी।उन्होंने भी कुछ नहीं दिया और वह उस समय अपना बर्थडे मना रही थीं।
अगर मेडल वापस होते हैं तो राष्ट्र के लिए यह एक शर्मशार करने वाली घटना होगी। पत्र में कहा गया है कि भारत की तीनों सेनाओं और केंद्रीय सुरक्षा बलों के सर्वोच्च सेनापति होने के नाते, एसोसिएशन की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि जहां हमारे शहीद परिवारों के साथ नाइंसाफी हो तो ऐसे मामले आपके संज्ञान में लाए जाएं। उम्मीद है कि देश के महामहिम की ओर से शहीद असिस्टेंट कमांडेंट विवेक सक्सेना की मां को न्याय मिलेगा।