राष्ट्रपति पुरस्कृत उत्तम दास जी के द्वारा ढोल सागर का ज्ञान..
उत्तराखंड: पहाड़ की संस्कृति को बढ़ावा देने व गांव से पलायन कर गए लोगों को गांव की ओर आकर्षित करने को लेकर प्रख्यात ढोल वादक उत्तमदास ने पहाड़ के पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल-दमाऊं की थाप पर लोगों को ढोल सागर विधा से परिचित कराया। प्रख्यात ढोल वादक उत्तमदास ने एक साथ ढोल व दमाऊं बजाकर ढोल सागर की विद्या की जानकारी से लोगों को अवगत कराया है।ढोल दमाऊ की इसी कला को देखते हुए उत्तम दास को राष्ट्रपति अवॉर्ड से भी नवाजा गया हैं
ऐसे सच्चे और समर्पित वाद्य कलाकार जिनकी वजह से ही हमारी संस्कृति थोड़ी बहुत बची हुई है उत्तराखंड की संस्कृति को बचाने मे ऐसे कलाकारों की सहायता करे। इस कला के संरक्षण हेतु उत्तम दास जी एक स्कूल खोलना चाहते हैं ताकि वह अपनी इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों को सौंप सकें। ढोल सागर में है गढ़वाल की संस्कृति, यह कहना गलत नहीं होगा।
पौराणिक समय से ही ढोल सागर को सर्वोच्च माना गया है। देवताओ को साक्षात् धरती पर लेकर आना उस कला में समाया है जहाँ ढोल सागर शुरू होता है। यह सिर्फ मनोरंजन ही नहीं शुभ कार्यो में भी इसका प्रयोग किया जाता है। धरती पर गढ़वाल की भूमि वह भूमि है जहाँ देवता साक्षात सभी लोगो की समस्याओ का निदान करते है।