किरनजीत कौर की आपबीती आपको भी रुला देगी…
सोशल : मैं 20 साल की थी और ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रही थी. मेरा भाई प्लस वन में था. मेरे पिता, पिता ही नहीं मेरे दोस्त भी थे जो हमेशा मुझे पढ़ाई के साथ ही खेलकूद में भी भाग लेने के लिए प्रेरित करते रहते थे. पिता हमेशा कहते थे कि तुझे दुनिया में नाम कमाना है. लेकिन वह कर्ज में दबकर किस तरह जी रहे थे यह तब पता चला जब उन्होंने आत्महत्या कर ली. यह आपबीती सुनाई पंजाब की किरनजीत कौर ने.
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2019 में पहुंचीं किरनजीत कौर ने बताया कि पिता के जाने के बाद उनकी दुनिया उजड़ गई. घर में खाने के लाले पड़ गए. उनके पिता के पास 3 एकड़ खेत था और 8 एकड़ उन्होंने किराए पर लेकर कपास उगाए थे लेकिन 2014 में पूरी फसल खत्म हो गई. तकरीबन ढाई लाख रुपये उन पर कर्ज था. सूदखोर और बैंक उन्हें परेशान कर रहे थे. वह न कर्ज दे पा रहे थे न सूदखोरों का सामना कर पा रहे थे. आखिर में परेशान होकर उन्होंने अपनी जान दे दी.
किरनजीत कौर ने बताया कि पिता की आत्महत्या के बाद वह डिप्रेशन में चली गईं. लेकिन परिवार को चलाने के लिए उन्होंने हिम्मत बांधी और सिलाई-कढ़ाई करने लगीं. पूरे दिन में 200-250 रुपये मिल जाते थे जिससे घर का खर्च किसी तरह चलता था.
उन्होंने बताया कि उनकी उनकी ग्रैजुएशन की पढ़ाई भी छूट गई. भाई को प्लस वन की पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी क्योंकि इसके अलावा कोई चारा नहीं था. इस मुश्किल हालात में किस तरह रिश्तेदारों और सोसायटी के लोगों ने एक-एक कर उनका साथ छोड़ दिया यह सबसे तकलीफ देने वाली बात थी.
किरनजीत कौर के मुताबिक इससे भी बड़े दुख की बात यह थी कि पिता तो चले गए थे लेकिन कर्ज जहां का तहां था. तगादा करने वाले सुबह-सुबह घर का चक्कर लगाया करते थे. मां को यह भी पता नहीं था कि पिता ने किससे कितना कर्ज लिया था. बैंक के कर्ज का तो पता भी चल गया लेकिन सूदखोर अलग से दबाव बनाने लगे.
इन मुश्किल हालात से गुजरने के बाद किरनजीत ने हिम्मत से काम किया और ऐसे परिवारों को जोड़ने में लग गईं जिसके परिवार के किसी सदस्य ने कर्ज की वजह से आत्महत्या कर ली हो. आज यह संगठन बड़ा आकार ले चुका है.
