उत्तराखंड

खुफिया तंत्र की लापरवाही बेकसूर जनता पर पड़ी भारी

पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं भीड़ में शामिल रहे असामाजिक तत्व
पूरी तैयारी के साथ आए थे नकाबपोश दंगाई
रुद्रप्रयाग। सोशल मीडिया में एक झूठी खबर से अगस्त्यमुनि शहर की दुकानों में हुई आगजनी की घटना से खुफिया विभाग सवालों के घेरे में है। घटना के बाद से ही पुलिस और उसके खुफिया विभाग पर अंगुली उठ रही है। आम लोगों के बीच यह सवाल चर्चा का विषय बना है कि सोशल मीडिया में एक समुदाय विशेष के प्रति आपत्तिजनक पोस्ट के बावजूद खुफिया तंत्र हरकत में क्यों नहीं आया। बताया जा रहा है कि इस घटना में शामिल वास्तविक लोग अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं।

आगजनी से एक दिन पूर्व छह अप्रैल को व्हाट्सएप और फेसबुक के जरिए एक समुदाय विशेष को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट की जाने लगी। किसी ने खबर फैलाई कि दस साल की बच्ची का रेप हुआ है और इस घटना के पीछे एक समुदाय विशेष के लोगों का हाथ है। सोशल मीडिया में यह सूचना आग की तरह फैल गई। साथ ही यह भी तय हुआ कि सात अप्रैल के दिन अगस्त्यमुनि में बाजार बंद होगा और जुलूस निकाला जाएगा। इसके बावजूद खुफिया तंत्र हरकत में नहीं आया। यहां तक कि जिलाधिकारी को भी घटना के बाद जानकारी मिली। छेड़छाड़ और प्रेम प्रसंग की जिन घटनाओं को आधार बनाकर आगजनी की गई, उन घटनाओं ने पुलिस प्रशासन की लापरवाही और गैर जिम्मेदारी सामने आई है। घटनाओं का कोई धार्मिक आधार नहीं था। लेकिन इन घटनाओं को धर्म विशेष के प्रति हथियार बनाकर झूठी अफवाहों के जरिए अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया।

सवाल यह उठता है कि जिले में होने वाली किसी भी तरह की छोटी-बड़ी गतिविधियों की स्थानीय अधिसूचना इकाई (एलआईयू) और इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) को सूचना रहती है। साफ है कि सोशल मीडिया में अफवाह उड़ाने की सूचना को खुफिया तंत्र ने गंभीरता से नहीं लिया। यही वजह है कि अगस्त्यमुनि में बाजार में पुलिस बल तैनात नहीं हुआ। इसकी परिणति आगजनी के रूप में देखने को मिली। अगस्त्यमुनि में हजारों की संख्या में छात्र-छात्राओं के प्रदर्शन के दौरान बीच में दंगा करने की मंशा से आए असामाजिक तत्व घुस गए। बताया जा रहा है कि यह लोग आगजनी करने के लिए पूरी तैयारी के साथ आए थे और इनके पास पैट्रोल, ताला तोड़ने के औजर मौजूद थे। यह नकाबपोश तत्व सुनियोजित तरीके से चुन-चुनकर दुकानों को निशाना बना रहे थे। घटना के बाद हरकत में आए पुलिस ने सात लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। इनमें दो लोगों को सोशल मीडिया में भ्रामक जानकारी फैलाने और पांच लोगों को आगजनी की घटना के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इस मामले में 16 और लोग नामजद हैं, जिनकी अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई। सदभावना और भाईचारे के लिए जाना जाने वाले शहर में आगजनी की घटना किसके इशारे पर हुई या फिर इस घटना का मास्टरमाइंड कौन था, पुलिस अभी तक इसका पता नहीं लगा पाई है। आगजनी करने वाले कई नकाबपोश घटना को अंजाम देने के बाद से पुलिस की गिरफ्त से दूर हैं।

अगस्त्यमुनि की घटना पुलिस की कार्यप्रणाली पर तो सवाल खड़े करती है, साथ ही समाज का विध्वंसक चेहरा भी सामने लाती है। सोशल मीडिया में एक समुदाय विशेष के प्रति जहर भरी पोस्ट होते ही दंगा होना आम बात हो गई है। एक अफवाह पर ही भीड़ किसी भी तरह की घटना को अंजाम देने के लिए तैयार हो रही है। दंगाई भीड़ का सहारा लेकर दंगा कर लेते हैं। कुल मिलाकर अगस्त्यमुनि जैसे शांत वातावरण में साम्प्रदायिक विद्वेश, विभाजन और नफरत पैदा हुई है। शायद ही यह दाग कभी धुल पाए। वहीं पुलिस अधीक्षक प्रहलाद नारायण मीणा का कहना है कि घटना की पूरी जांच की जा रही है। अभी तक जो तथ्य सामने हैं, उनके अनुसार कार्यवाही की गई है। जगह-जगह आम जनता को समझाया जा रहा है।

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