बाज़ारो में 120 रुपए प्रति किलो के भाव से बिक रही कंडाली,बिच्छू घास..
उत्तराखंड: बिच्छू घास एक प्रकार का जंगली पौधा है इसे छूने से करंट जैसा अनुभव होता है यह पौधा उत्तराखंड के हिमालयी इलाको में पाया जाता है| बिच्छू घास एक प्रकार की बारहमासी जंगली जड़ी-बूटी है। जिसे अक्सर खरपतवार या बेकार पौधा समझा जाता है। लेकिन अपने गुणों के कारण यह विभिन्न प्रकार के अध्ययनों का विषय बन चुका है।
इसका वैज्ञानिक नाम अर्टिका डाइओका (urtica dioica) है।यह मुख्य रूप से हमारे लिए एंटीऑक्सीडेंट का काम करता है। इस पौधे के उपयोगी हिस्सों में इसके पत्ते, जड़ और तना होते हैं।यह औषधीय जड़ी-बूटी नेटल परिवार से संबंधित है। बिच्छू बूटी के पौधे आमतौर पर 2 से 4 फीट तक ऊंचे होते हैं।
कंडाली इन दिनों रोजगार का जरिया बन गई है। पहाड़ी जिलों में इसका साग बड़े चाव से खाया जाता है। इसमें कई औषधीय गुण हैं। कभी स्वाद और दवा के तौर पर इस्तेमाल होने वाली कंडाली अब आय का जरिया भी बन रही है। कोटद्वार व अन्य बाजारो में कंडाली की जबर्दस्त बिक्री हो रही है। कभी सिर्फ घास समझी जाने वाली कंडाली यहां 120 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रही है। दाम ज्यादा होने के बावजूद लोग इसे हाथों-हाथ खरीद रहे हैं। इसके पीछे एक बड़ी वजह है। दरअसल कंडाली यानी बिच्छू घास में रोग प्रतिरोधक गुण पाए जाते हैं।
कोटद्वार में बड़ी मात्रा में पहाड़ी लोग रहते है। जो कंडाली की सब्जी को बहुत पसंद करते है।वही कंडाली या बिच्छू घास कोटद्वार जैसे गर्म शहर में नही पायी जाती।यही बात है कि जब पहाड़ी लोगों ने कंडाली को देखा तो उन्होंने एकाएक इसे खरीद लिया। आपको बता दे कि कंडाली हरी सब्जियों की सूची में सबसे पौष्टिक और ताकतवर मानी जाती है।इसमें विटामिन्स,मिनरल,एन्टी ऑक्सीडेंट और पर्याप्त मात्रा में आयरन होता है।
पहाड़ो में सर्दियों में ठंड से बचने के लिए कंडाली काफी कारगर होती है। इसकी ताशीर गर्म होने के कारण ठंड कम लगती है। पिछले दिनों एक वैज्ञानिक शोध भी प्रकाशित हुआ था, जिसमें कंडाली में कोरोना से लड़ने वाले 23 यौगिक होने की बात कही गई थी। इस तरह कंडाली कोरोना से लड़ने में भी मददगार साबित हो सकती है। पहाड़ के लोग इसकी मेडिशनल वेल्यू जानते हैं, यही वजह है कि कंडाली पहाड़ियों के खान-पान का अहम हिस्सा रही है। अब तो बाजारों में इसकी बिक्री भी होने लगी है। माना जाता है कि बिच्छू घास में काफी आयरन होता है। जिसे हर्बल डिश कहते हैं।
आम तौर पर दो वर्ष की उम्र वाली बिच्छू घास को गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊं में सिसूण के नाम से जाना जाता है. अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है. बिच्छू घास स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है. इसमें ढेर सारे विटामिन और मिनरल्स हैं. इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइट्रेड, एनर्जी, कोलेस्ट्रोल जीरो, विटामिन ए, सोडियम, कैल्शियम और आयरन हैं।
अल्मोड़ा के निकट चितई के पंत गांव में स्थापित कंपनी पिछले डेढ़ साल में बिच्छू घास से बनी 500 किलो चाय देश भर के बड़े शहरों में बेच चुकी है. अभी सालाना उत्पादन करीब चार क्विंटल है. इसका फ्लेवर खीरे की तरह होता है। बिच्छू घास की चाय के 50 ग्राम के एक पैकेट की कीमत 110 रुपए है और इसकी काफी मांग है।